हम लोग कितने बड़े ढोंगी हैं? हम डींग मारते हैं कि हमारे भारत में नारी की पूजा होती है। नारी की पूजा में ही देवता रमते हैं। ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते तत्र रमन्ते तत्र देवता:।’ अभी-अभी विश्व बैंक की एक रपट आई है, जिससे पता चलता है कि नारी की पूजा करना तो बहुत दूर की बात है, उसे पुरूष के बराबरी का दर्जा देने में भी भारत का स्थान 123 वां है। याने दुनिया के 122 देशों की नारियों की स्थिति भारत से कहीं बेहतर है।190 देशों में से 180 देश ऐसे हैं, जिसमें नर-नारी समानता नदारद है। सिर्फ दस देश ऐसे हैं, जिनमें स्त्री और पुरुषों के अधिकार एक-समान हैं। ये हैं-बेल्जियम, फ्रांस, डेनमार्क, लातविया, लग्जमबर्ग, स्वीडन, आइसलैंड, कनाडा, पुर्तगाल और आयरलैंड ! ये देश या तो भारत के प्रांतों के बराबर हैं क्या जिलों के बराबर ! इनमें से एक देश भी ऐसा नहीं है, जिसकी संस्कृति और सभ्यता भारत से प्राचीन हो। ये लगभग सभी देश ईसाई धर्म को मानते हैं।
ईसाई धर्म में औरत को सभी पापों की जड़ माना जाता है। यूरोप में लगभग एक हजार साल तक पोप का राज चलता रहा। इसे इतिहास में अंधकार-युग के रूप में जाना जाता है लेकिन पिछले ढाई-तीन सौ साल में यूरोप ने नर-नारी समता के मामले में क्रांति ला दी है लेकिन भारत, चीन और रूस जैसे बड़े देशों में अभी भी शासन, समाज, अर्थ-व्यवस्था और शिक्षा आदि में पुरूषवादी व्यवस्था चल रही है। केरल और मणिपुर को छोड़ दें तो क्या वजह है कि सारे भारत में हर विवाहित स्त्री को अपना उपनाम बदलकर अपने पति का नाम लगाना पड़ता है ? पति क्यों नहीं पत्नी का उपनाम ग्रहण करता है? विवाह के बाद या वजह है कि पत्नी को अपने पति के घर जाकर रहना पड़ता है ? पति क्यों नहीं पत्नी के घर जाकर रहता है ?
पैतृक संपत्ति तो होती है लेकिन ‘मातृक’ संपत्ति क्यों नहीं होती? पिता की संपत्ति का बंटवारा उसके बेटों को तो होता है, बेटियों को क्यों नहीं ? बच्चों के नाम के आगे सिर्फ उनके पिता का नाम लिखा जाता है, माता का क्यों नहीं? दुनिया के कितने देशों में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री महिलाएं हैं ? इंदिराजी भारत में प्रधानमंत्री इसलिए नहीं बनीं कि वे महिला थीं, बल्कि इसलिए बनीं कि वे नेहरूजी की बेटी थीं। भारत में कुछ ऋषिकाएं और साध्वियां जरूर हुई हैं लेकिन दुनिया के देशों और धर्मों में लगभग सभी मसीहा और पैगंबर पुरुष ही हुए हैं। दुनिया के सभी समाजों में बहुपत्नी व्यवस्था चलती है, बहुपति व्यवस्था क्यों नहीं ? स्त्रियां ही ‘सती’ क्यों होती रहीं, पुरूष ‘सता’ क्यों न हुए ? इस पुरुषप्रधान विश्व का रूपांतरण अपने आप में महान क्रांति होगी।
डा. वेदप्रताप वैदिक
(लेखक भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष और वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)