हिंसा के पाठ सीखता नाबालिग मन

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हमारे समाज में प्रेम के नाम पर हिंसा और बर्बरता के मामले नए नहीं हैं। नई बात यह है कि अब कच्ची उम्र के बच्चे भी ऐसी घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। हाल ही दिल्ली में तेरह साल की एख लड़की को जिंदा जलाने की घटना सामने आई। लड़की के पिता ने उस शख्स के साथ अपनी नाबालिग बेटी की शादी करने से इनकार कर दिया था लड़की का कसूर यह था कि अमानवीय सोच वाला यह इंसान उसे पसंद करने लगा था। बीते दिनों ऐसा ही एक मामला विदिशा में भी हुआ, जिसमें आरोपी आधी रात को नाबालिग लड़की के घर आया और शादी का दबाव बनाने लगा। इनकार करने पर पहले लड़की के साथ ज्यादती की, फिर मिट्टी का तेल डालकर उसे जिंदा जला दिया। आरोपी की उम्र 17 साल बताई जाती है।

हमारे समाज में प्रेम के नाम पर हिंसा और बर्बरता के मामले नए नहीं हैं। नई बात यह है कि अब कच्ची उम्र के बच्चे भी ऐसी घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। खौफ नाक वारदात को अंजाम देने वाला यह सरफिरापन उस उम्र में दस्तक दे रहा है, जब प्रेम के मायने भी पता नहीं होते। सवाल यह है कि आखिर एक तरफा प्रेम जैसी भावनाएं लडक़ों को लड़कियों के प्रति इतना हिंसक क्यों बना रही हैं? लड़कियों की पसंद- नापसंद को लेकर, उनकी आजादी को लेकर आज भी युवाओं का मन इतना संकीर्ण क्यों है कि उसे स्वीकार ही नहीं कर पाता? प्रेम में पागल हुए इन लोगों को यह अहसास क्यों नहीं हो पा रहा कि प्रेम किसी पर थोपने की चीज नहीं है? सही मायनों में देखा जाए तो इन कम उम्र बच्चों को प्रेम का अर्थ ही नहीं पता।

अपनी विकृत सोच को प्रेम समझने वाले लोगों के लिए ही यह बर्बरता भरा व्यवहार कर पाना संभव है। कोई और कारण नहीं कि ‘ना’ सुनने पर ऐसे सनक भरे कृत्य प्यार के नाम पर अंजाम दिए जा रहे हैं। बीते डेढ़ दशक में देश में आतंक वादी घटनाओं के मुकाबले प्यार के चलते ज्यादा जानें गई हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2001 से 2015 के बीच प्यार के मामलों में 38,585 लोगों ने हत्या और गैर-इरादतन हत्या जैसे अपराध किए हैं। प्यार में नाकामी या अन्य वजहों से 79,189 लोगों ने आत्महत्या की है। इसे त्रासदी ही कहेंगे कि जिंदगी में प्यार का दखल सकारात्मक छाप छोडऩे के बजाय नकारात्मक प्रभाव दर्ज कर रहा है। एक तरफा प्रेम के नाम पर कुछ भी कर जाने की यह समस्या चिंताजनक स्तर तक बढ़ गई है।

गौर करें तो इस बर्बरता के पीछे वही पुरानी सोच काम करती दिखती है, जिसके मुताबिक किसी लडक़ी को ना कहने का अधिकार नहीं है। पितृसत्ता पर आधारित सोच, दरअसल यह स्वीकार नहीं कर सकती कि कोई महिला अपना स्वतंत्र फैसला कर सकती है। ऐसे हर फैसले को यह सोच महिला की दगाबाजी या बेवफाई के रूप में लेती है। यही कारण है कि महिला के ऐसे स्वतंत्र फैसलों पर इसकी सहज प्रतिक्रिया गुस्से वाली होती है। यही गुस्सा इनकार के जवाब में हिंसक व्यवहार के रूप में सामने आता है। एक तरफा प्रेम को हिंसक व्यवहार से जोडऩे वाली यह पुरातन सोच इतनी गहराई से जड़ें जमाए है कि इन घटनाओं को अंजाम देने वालों में अशिक्षित और निचले तबके के बेरोजगारों से लेकर संभ्रांत वर्ग के उच्च शिक्षित पुरुष तक सभी शामिल हैं।

हैरानी नहीं कि बीते पंद्रह सालों के आंकड़ों के मुताबिक हर दिन प्यार से जुड़े मामलों में लगभग 7 हत्या, 14 आत्महत्या और 47 अपहरण के केस दर्ज होते हैं। लेकिन ऐसे मामलों में किशोरों के लिप्त होने के पीछे कुछ और भी कारण हैं। एकल परिवारों में बड़े हो रहे बच्चों में अब सहनशीलता कम होती जा रही है। हर हाल में अपनी बात मनवाने की सोच बचपन से ही उनके मन में घर करती जाती है। स्मार्ट फोन के जरिए हर उम्र के बच्चों तक पहुंच रही अश्लील सामग्री ने भी उनमें नकारात्मकता को बढ़ाया है। हमारे यहां परिपक्व लोगों से कहीं ज्यादा संख्या ऐसे अर्धविकसित मस्तिष्क वाले बच्चों और युवाओं की है, जो अश्लील कंटेंट के जाल में फंसे हैं। नतीजा हम सबके सामने है। कम उम्र में ही बच्चों की मासूमियत गुम हो रही है।

मोनिका शर्मा
(लेखिका स्तंभकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)

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