सुनवाई टालने की भूमिका तैयार

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श्रीराम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद की सुनवाई टालने के लिए फिर से पृष्ठभूमि तैयार की जा रही है। सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़े ने एक बार फिर बातचीत से विवाद हल करने का मन बनाया है। सुप्रीमकोर्ट की बनाई तीन सदस्यीय कमेटी बातचीत से विवाद का हल निकालने में फेल हो गई थी। इसी लिए पिछले एक महीने से कोर्ट में दैनिक सुनवाई हो रही है। डेढ़ सौ दिनों की कोशिशों के बाद भी जब कोई समाधान निकलता नहीं दिखा तो सुप्रीमकोर्ट ने खुद एलान किया था कि बातचीत फेल हो गई है इसलिए अब दैनिक आधार पर सुनवाई होगी।

अब जब सुनवाई अंतिम दौर में है तो बातचीत फिर से शुरू करने का शिगूफा छोड़ दिया गया है। बातचीत के लिए उसी कमेटी को लिखा गया है जो 2 अगस्त को उस समय अपने आप ही भंग हो गई थी। जब कोर्ट ने सुनवाई शुरू कर दी थी तो सवाल पैदा होता है कि क्या कोर्ट फिर से क्या बातचीत का दरवाजा खोलेगा? ऐसे संकेत इसलिए नहीं मिलते क्योंकि बातचीत फिर शुरू करने की खबरों के बीच अदालत ने केएन गोबिन्दाचार्य की याचिका का संज्ञान लेते हुए कोर्ट के रजिस्ट्रार से यह पूछ लिया है कि क्या अयोध्या मामले की सुनवाई का सीधा प्रसारण किया जा सकता है।

यह नहीं भूलना चाहिए कि सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकीलों ने तरह तरह के बहाने लगा कर सुनवाई को टलवाने की बहुत कोशिश की थी। दैनिक सुनवाई का भी विरोध किया था। लेकिन कोर्ट ने उन की एक नहीं सुनी, सवा महीने से चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ सुनवाई कर रही है। हिन्दू पक्ष की दलीलें पूरी हो चुकी हैं। जिन में सब से ज्यादा जोर इलाहाबाद हाईकोर्ट की ओर से करवाई गई खुदाई में मंदिर के अवशेष मिलने पर दिया गया है| हाई कोर्ट में पेश किए गए दस्तावेज और खुदाई में मिले अवशेषों का सारा रिकार्ड सुप्रीम कोर्ट में आ चुका है। सच यह है कि खुदाई में मंदिर के अवशेष मिलने के बाद मुस्लिम पक्ष कमजोर हो चुका है क्योंकि इस्लाम में ही अन्य धर्म स्थान पर मस्जिद बनाने की मनाही है।

मुस्लिम पक्ष यह कहता भी रहा है कि अगर यह साबित हो जाए कि बाबरी मस्जिद किसी मंदिर को तोड़ कर बनाई गई थी तो वे दावा छोड़ देंगे। सुन्नी वक्फ बोर्ड के कुछ सदस्य मानते हैं कि बाबरी ढाँचे के नीचे मंदिर के अवशेष मिलने के बाद सद्भावना दिखाते हुए जमीन पर दावा छोड़ देना चाहिए था लेकिन कुछ अन्य सदस्यों की दलील है कि मंदिर के अवशेषों से यह साबित नहीं हुआ है कि वहां श्रीराम मंदिर था , और वह जन्म स्थान है, क्योंकि वहां शिव पूजा होने के संकेत मिले हैं।

अब तक 24 दिन सुनवाई हो चुकी है। बाबरी मस्जिद के पक्ष में दलीलों से ज्यादा मुस्लिम पक्ष के वकील अपनी सुरक्षा और धमकियों की शिकायतें करते रहे। उन की दलीलें राम के अस्तित्व को नकारने वाली थी, यह वही स्टेंड है जो यूपीए सरकार ने रामसेतू को तोड़ने के पक्ष में कोर्ट के सामने रखा था। मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन उस समय कांग्रेस के सांसद थे| जहां एक तरफ सुप्रीम कोर्ट की बेंच कह चुकी है कि यह 1500 वर्ग फुट जमीन का मामला नहीं है धार्मिक आस्थाओं का भी मामला है वहीं मुस्लिम पक्ष की दलील है कि यह मामला 70 साल से अदालत में है और सुप्रीमकोर्ट में मुस्लिम पक्ष के वकील ने कहा कि जन्मस्थान के लिए अदालत में याचिका दाखिल ही नहीं हो सकती क्योंकि जन्म स्थान कोई कानूनी व्यक्ति नहीं है। उनकी दूसरी दलील थी कि नदियों, पहाड़ों, कुओं के लिए प्रार्थना की जाती है और यह एक वैदिक अभ्यास है, अगर कल को चीन मानसरोवर में जाने से मना कर देता है तो क्या कोई पूजा के अधिकार का दावा कर सकता है ? हिन्दू पक्ष का मानना है कि यह हारे हुए पक्ष की ये बेतुकी दलीले हैं।

अजय सेतिया
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, यह उनका निजी विचार हैं

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