सुधार होगा कैसे?

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भारतीय अर्थव्यवस्था बहुत बुरे हाल में है, ये बात हाल में जारी हुए आंकड़ों ने साफ कर दी है। अब अहम सवाल यह है कि आखिर सुधार का नुस्खा क्या है? आरबीआई ने हाल में कहा है कि खपत को प्रोत्साहन देने के लिए निवेश बढऩा जरूरी है। निजी क्षेत्र को इसी उद्देश्य से कॉर्पोरेट टैस में छूट दी गई थी, लेकिन कंपनियों ने उस छूट का उपयोग अपनी उधारी कम करने में और अपने नकदी भंडार को बढ़ाने के लिए किया। सरकारी खर्च से भी खपत को प्रोत्साहन दिया जा सकता है, लेकिन आरबीआई का कहना है कि कोविड-19 के असर को कम करने में सरकारी खर्च बहुत बढ़ गया है। अब और खर्च करने की सरकार के पास गुंजाइश नहीं बची है। गौरतलब है कि रिजर्व बैंक ने और कर्ज लेने से भी मना किया है, योंकि उसके अनुसार केंद्र और राज्य सरकारों पर पहले से कर्ज का भार काफी बढ़ा हुआ है। ऐसे में समय घाटे और कर्ज को कम करने का है। आरबीआई ने सरकार की कमाई बढऩे के लिए टैस डिफॉल्टरों की पहचान कर उनसे टैस वसूलने, लोगों की आय और संपाि को ट्रैक कर करदाताओं की संख्या बढ़ाने और जीएसटी तंत्र में आवश्यक सुधार करने का प्रस्ताव दिया है।

इसके अलावा उसने स्टील, कोयला, बिजली, जमीन, रेलवे और बंदरगाह जैसे क्षेत्रों में सरकारी हिस्सेदारी को बेचने की भी सलाह दी है। बैंक का कहना है कि इससे सरकार के पास पैसे आएंगे और निजी क्षेत्र को भी निवेश करने का प्रोत्साहन मिलेगा। सवाल है कि या ये सभी व्यावहारिक विकल्प हैं और या इनके लिए जरूरी साहस सरकार जुटाएगी? खास बात यह है कि खपत का गिरना सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ है। भारत में खपत महामारी के पहले से गिर रही थी। महामारी की रोकथाम के लिए लगाई गई तालाबंदी ने इसे पूरी तरह से बैठा ही दिया। हर आय वर्ग में सिर्फ जरूरत की चीजों पर ही खर्च के प्रमाण नजर आ रहे हैं। ना गांवों में मोटरसाइकिलें बिक रही हैं, ना शहरों में गाडिय़ां। आरबीआई के अनुसार जुलाई में कंज्यूमर कॉन्फिडेंस अपनी इतिहास में सबसे नीचे के स्तर पर पहुंच गया था। इसी का परिणाम है कि अप्रैल से जून तक की इस अवधि में उत्पादन क्षेत्र में 39.3 फीसदी और निर्माण क्षेत्र में 50.3 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। सेवा क्षेत्र 5.3 फीसदी गिरा है। केवल कृषि क्षेत्र में 3.4 फीसदी वृद्धि हुई है।

आजादी के बाद भारत ने बड़ी मेहनत से विकास की वो राह पकड़ी थी, जिसकी वजह से इस सदी में आकर उसे सबसे तेजी से उभरी अर्थव्यवस्थाओं में गिना जाने लगा। गुजरे दशकों में भारत ने करोड़ों लोगों को गरीबी रेखा से ऊपर उठाया, यह उसकी एक खास उपलब्धि रही। रिजर्व बैंक ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि खपत को जो झटका लगा है, वो गंभीर है। इससे जो सबसे गरीब हैं, उन्हें सबसे ज्यादा चोट लगी है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि मई और जून में अर्थव्यवस्था ने जो गति पकड़ी थी, वो अब राज्यों द्वारा स्थानीय तालाबंदी लगाने की वजह से जा चुकी है। जानकार मानते हैं कि यूं तो अभी भी आरबीआई पूरी हकीकत नहीं दिखा रहा है। फिर भी यह रिपोर्ट स्थिति की एक ईमानदार समीक्षा के करीब है। कुछ अर्थशास्त्रियों का कहना कि हालात इतने खराब हैं कि अगर हम एक बहुत ही आशावादी परिदृश्य लेकर चलें, तब भी आर्थिक विकास दर माइनस 10 प्रतिशत से अधिक होने की संभावना है। कई रेटिंग एजेंसियों और समीक्षकों ने तालाबंदी की वजह से विा वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में जीडीपी में 20 प्रतिशत तक की गिरावट का पूर्वानुमान लगाया है। आरबीआई का कहना है कि इतिहास में पहली बार भारतीय अर्थव्यवस्था के सिकुडऩे के आसार हैं और इसके महामारी से पहले के स्तर तक वापस पहुंचने में काफी वत लगेगा।

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