ब्रिटेन में हुए एक सर्वे में तकरीबन एक चौथाई लोगों का मानना है कि चलते हुए कुछ और सोचते रहने कारण उनके साथ कोई न कोई हादसा हो चुका है। स्मार्ट फोन से चिपके रहने के कारण अब यह आम हो गया है। यह सवाल अहम है कि लोगों की नींद में सेंधमारी हो रही है। और विसंगति यह कि इसकी शियाकत हो तो किससे? बेशक यह तकनीक का दौर है, इसके कई फायदे हैं। पहुंच के लिहाज से विश्व एक गांव में तब्दील हो गया है। दूरियां अर्थहीन हो चुकी है, पल भर में आमने-सामने संवाद की सुविधा हर किसी को है। यह बातत और कि इसके चलते रिश्ते रियल कम वर्चुअल ज्यादा होते जा रहे हैं। नेटफिलक्स जैसी कंपनियां नींद में अपना प्रतिद्वन्द्वी मानती है। तो अब सोचने का वक्त आ गया है कि हम कहां जा रहे है। नींद में लगातार होती कमी प्रकृत्ति प्रदत्त गैजेट्स को बेहततीब कर रही है, जिससे तमाम तरह की दैहिक और मानसिक कमियां हो रही हैं।
यह कमी चिंता जनक है कि तकनीकी लत की फेर में हम अपनापा भी खो रहे है। हाल यह है कि करीबी रिश्तों में भी व्हाट्सअप कल्चर प्रवेश कर गया है। जिसमें अनुभूतियों का जरिया भला कैसे कोई तकनीक हो सकती है, पर उसी तरह बढ़ते कदम इस बात का संकेत है कि अब भी नहीं चेते होंगे। भारतीय परिप्रेक्ष्य में भी स्मार्ट गजेट्स को लेकर यही देखने-सुनने में आ रहा है। प्रायः लोग बाइक पर हों या फिर कार में कान में लीड लगाये ना जाने ऐसा क्या सुनते रहते हैं कि कहीं इत्मिनान से बैठने तक का भी इंतजार नहीं करते। खुद तो हादसे का शिकार होते ही हैं, दूसरों के लिए भी दिक्कत का सबब बन जाते हैं। स्थिति ये है बच्चे, युवा और वृद्ध-सभी के बीच डिजिटल तकनीक ने अपनी जगह बना ली है।
जिसको देखिये वो एण्ड्राइड फोन पर अंगुली फिराता मिल जाएगा। यह सच है कि इससे ध्यान बंटता है, किसी विषय विशेष पर सोचने की क्षमता में गिरावट आती है, जिसके परिणाम के बारे में अंदाजा लगाया जा सकता है। ऐसे समय में, जब स्मार्ट क्लासेस का प्रचलन है, नोटबुक वर्चुअल है और विकल्पों की भरमार है, तब विषयान्तर से बचने की चुनौती बड़ी हो जाती है। वक्त आ गया है कि तकनीक से स्मार्ट दौर में उपयोगिता की आदत डाले ताकि बेवजह चिपके रहने की प्रवत्ति से छुटकारा मिल सके। विशेष रूप से बच्चों को इस बारे में सजह और जागरूक किये जाने की आवश्यकता है। इसमें दो राय नहीं, हमारे समय की बड़ी उपलब्घि है ये स्मार्ट तकनीकी गैजेट्स लेकिन साध्य बन गई तो ढरों समस्याएं आ खड़ी होंगी।
हमारे यहां भी इसी बात पर प्रारम्भ से बल दिया जाता रहा है कि समय सबसे बड़ी दौलत है और विरोधाभास ये कि इसी दौलत को डिजिटल गैंगेस्टर्स सरेआम लूट रहे हैं और हम खुद को लुटते हुए देखने को शायद अभिशप्त हैं। इसी आपाधापी में असीम संभावनाओं से भरपूर ये मनो-दैहिक गैजेस्ट भी अपनी चमक खोता जा रहा है।