मैंने लभी जगह खोजा, पर ऐसा व्यक्ति नहीं मिला। सभी मुझसे कहते हैं-मूर्ख, परलोक में साथ कुछ नहीं जाता।
“तुम्हें देखा तो लगा कि ये सब महल, सोना, चांदी, हीरे-जवाहरात, जो तुमने अर्जित किए हैं, अवश्य ही तुम इन्हें अपने साथ ले जाओगे। तभी तो इतनी तन्मयता से जमा करने में लगे हो। तो उसमें यह सुईं भी साथ रख लेना। मैं तुमसे वहां आकर ले लूंगा।”
सेठ जी से स्वामी जी की बात सुन रहे थे। अवाक् रह गए। सेठ जी की आंखे खुल गईं।
पूरा वातावरण शान्त था। स्वामी जी ध्यान की मुद्रा में थे व सेठ और सेठानी चुपचाप सोच रहे थे कि स्वामी जी क्या कह गए। सेठ जी अब यह समझ पा रहे थे कि उनके पुरखे भी जो सम्पत्ति जोड़ते रहे, सब कुछ यही… इसी धरती पर रह गई। वे भी तो खाली हाथ गए। फिर ये सब जोड़ने और वह भी आवश्यकता से अधिक सम्पत्ति इकट्ठा करने से क्या लाभ।
स्वामी जी के सहज भाव से दिए गए संदेश से सेठ जी के ह्रदय के पट खोल दिए। सेठ जी व सेठानी, स्वामी जी के सामने नतमस्तक होकर बोल उठे, “स्वामी जी, हम भी कुछ नहीं ले जा सकतें।”
“तो फिर यह अथाह संग्रह क्यों कर रहे हो? इसको जनता के हित में व्यय क्यों नहीं करते? इसका जनसेवा में सदुपयोग करोगे तो अवश्य ही परलोक में मोझ को प्राप्त होगे।”
सेठ ने अपने भण्डार खोल दिये….
पूरे क्षेत्रवासियों को भोजन करवा कर स्वामी जी, सेठ व सेठानी ने एक साथ भोजन किया।
साभार
उन्नति के पथ पर (कहानी संग्रह)
लेखक
डॉ. अतुल कृष्ण