साहब की चापलूसी

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इन दिनों से चल रही नए साहब और बड़े बाबू के अटका लटका के नच बीच और कल वही हुआ, जिसका डर था। फाइनली बड़े बाबू को अब सबक सिखाने के बुरे हरादे से साहब ने नोटिस निकाला कि कल से उनका हर मातहत उन्हें सारे दिन को प्रोग्रेस रिपोर्ट पेश करेगा कि सारा दिन उसने ऑफिस में क्या कि क्या? तो अब हुआ क्यों कि सुबह-सुबह पीउनयारे लाल साहब के कमरे में गए। उन्होंने साहब से हाथ जोड़कर पूछा सहबजी! मुझे भी आज डेली प्रोग्रेस रिपोर्ट देनी है क्या? यह सुन घर से गुस्से में आए साहब तुनकते बोले, क्यों, क्या तुम इसी ऑफिस में काम नहीं करते? मेरे बॉस हो क्या? करता हूं सहब जी! आपके बॉस तो भगवान भी नहीं हो सकते साहब जी! तो रिपोर्ट देकर जाना शाम को! वर्ना आज की छुट्टी लगेगी। हरामबा खाने वालों को इस देश में कोई जगह नहीं। बात-बात पर सबके आगे हाथ जोडऩे वाले पीउन प्यारे लाल ने साहब जी के आगे एक बार फिर हाथ जोड़े और कमरे से बाहर आकर रोज की तरह कामों में जुट गए।

पांच बजने के पांच मिनट पर साहब जी के घर जाने से पहले प्यारे लालपी उनने उस दिन की अपनी प्रोग्रेस रिपोर्ट साहब जी को यो पेश की प्यारे लाल उन आज नौ बजे घर से ऑफिस के लिए रवाना हुआ जनाब जी! कल के आदेश के मुताबिक वह ऑफिस आने से पहले सीधा छोटे बाबू जी के घर गया। वहां से उनकी बीवी जी ने उनको चकी पर ताजा आटा लाने को घेला धमाया साहब जी! वहां से वह सीधा बाजार गया। छोटे बाबूजी की बीवी की हिदायत के चलते ताजा गेहूं का बीस किलो आटा उनके घर छोड़ा, मजदूर के पैसे बचाते हुए। उसके बाद बारह बजे उसे साहब जी ने बुलाया। साहब जी ने आदेश दिया कि उनके बेटे को स्कूल से छुट्टी होने वाली है। सो, प्यारे लाल पीउन सरकारी गाड़ी के ड्राइवर के साथ उनके बेटे के स्कूल गया। उसके बाद वह साहब जी के बेटे जी को स्कूल से ऑफिस की गाड़ी में लेकर उनको छोडऩे उनके घर पहुंचा। बीच में उनके बेटे जी ने गोल गप्पे खाने की बहुत जिद की। एक बजे उनके बेटे को लेकर पीउन प्यारे लाल साहब जी के सरकारी आवास पर पहुंचा। वहां बीवी जी जैसे उसका ही इंतजार बड़ी देर से कर रही थीं।

उन्होंने पीउन प्यारे लाल को कपड़े धोने लगा दिया। साहब जी के घर के कपड़े धोते धोते तीन बज गए। तीन बजे जब साहब जी के घर के कपड़े धोकर खत्म हए तो बीबीजी ने चाय पिलाई साहब जी! हालांकि पीउन प्यारे लाल चाय पीना नहीं चाहता था। उसे चाय पीने के बाद के काम का पता था। पर बीबी जी के प्यार के आगे ना नहीं कर सका। चाय पीने के बाद पीउन प्यारे लाल ने अपना गिलास साफ करने के बहाने सिंक में पड़े ढेर बरतन धोए। उसके बाद वह पैदल ही वहां से ऑफिस के लिए आया। बीच में बारिश भी लगी। छाता न होने के वजह से भीगा भी, पर बारिश इतनी अधिक न थी कि उसे किसी दुकान पर रुकना पड़ता। साहब जी! ऑफिस पहुंचते पहुंचते चार बज गए। अभी आराम करने को झपकी भर ली ही थी कि चार बजकर पांच मिनट पर फिर साहब जी का फोन आ गया। उनके जो जूते पीउन प्यारे लालकल ठीक करने को छोड़ आया था, उन्हें लाने को। साढ़े चार बजे पीउन प्यारे लाल साहब के जूते रिपेयर पॉलिश करवा कर बाजार से ऑफिस लाया। आज भी या पांच बजे के बाद आपके साथ आपके घर जाना है साहब जी? पांच बजने को पांच मिनट पर पांच बजकर पांच मिनट तक की आज की प्रोग्रेस रिपटि तैयार कर साहब जी के चरणों में सादर सौंपी जाती है। साहब जी के चरणों में, सबके प्यारे पीउन प्यारे लाल!

-अशोक गौतम

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