बहुत पहले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी विनायक दामोदर सावरक को भारत रत्न देने की सिफारिश तत्कालीन अटल सरकार में हुई थी। लेकिन तब राष्ट्रपति के आर नारायणन ने प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया था। इसलिए यह कहना कि पहली बारमोदी सरकार अपने दूसरे कार्यकाल में ऐसे प्रस्ताव की सार्वजनिक चर्चा कर रही है, यह यथार्थ से परे है। हां, यह जरूर सच है कि मौका इस सरकार में चुनाव का चुना गया है। वीर सावरकर को महाराष्ट्र में आइकन के रूप में देखा जाता है। उनका वहां के जनमानस में एक सकारात्मक प्रभाव है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता। तभी कोई भी पार्टी या नेता सीधे तौर पर विरोध नहीं कर पा रहा है। वैसे इतना जरूर कहा जा रहा है कि बीते पांच साल से बीजेपी को यह ख्याल क्यों नहीं आया। महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में स्वतंत्रता सेनानी विनायक दामोदर सावरकर एक बड़ा मुद्दा बनकर सामने आए हैं।
बीजेपी ने घोषणा की है कि सत्ता में आने पर वह वीर सावरकर के नाम की सिफारिश देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न के लिए करेगी। इसके बाद से कांग्रेस समेत विपक्षी दलों का पारा चढ़ गया है। कांग्रेस नेताओं का तर्क है कि कालापानी से वापस आने के लिए उन्होंने अंग्रेजों को माफीनामा लिखकर दिया था, इसलिए वह भारत रत्न के हकदार नहीं हैं। भले ही कांग्रेस आज सावरकर का मुखर विरोध कर रही है, लेकिन अतीत में उनके सम्मान में कसीदे भी पढ़ चुकी है। मुंबई में गुरुवार को पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी कहा कि कांग्रेस वीर सावरकर के खिलाफ नहीं है। उन्होंने कहा कि आपको याद होगा कि इंदिराजी ने उनके (सावरकर) सम्मान में डाक टिकट जारी किया था। हम सावरकर के खिलाफ नहीं हैं, हम उस हिंदुत्व के खिलाफ हैं जिसे उन्होंने संरक्षण दिया और जिसके लिए वह खड़़े हुए।
सावरकर के पोते रंजीत का दावा है कि इंदिरा सावरकर की समर्थक थीं। इंदिरा गांधी ने सावरकर के सम्मान में डाक टिकट जारी क रने के अलावा अपने निजी खाते से सावरकर ट्रस्ट को 11 हजार रुपये दान किए थे। दावे के मुताबिक, इंदिरा गांधी ने फिल्म्स डिवीजन को महान स्वतंत्रता सेनानी पर डॉक्युमेट्री बनाने का निर्देश दिया था और इसे उन्होंने खुद ही क्लीयर भी किया था। सावरकर की उपलब्धियों का बखान करते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने वाराणसी में एक रैली में कहा था कि अगर सावरकर नहीं होते तो हम 1857 के स्वतंत्रता संग्राम को अंग्रेजों के नजरिए से देख रहे होते। उन्होंने कहा कि वीर सावरकर ही वह व्यक्ति थे, जिन्होंने 1857 की क्रांति को पहले स्वतंत्रता संग्राम का नाम दिया था।
तथ्य यह है कि मूल रूप से मराठी में लिखी गईअपनी किताब द हिस्ट्री ऑफ द वॉर ऑफ इंडियन इंडिपेंडेंस में सावरकर ने 1857 की लड़ाई को भारत की आजादी की पहली लड़ाई करार दिया था। इस बात को देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने भी माना और इसे देश की आजादी की पहली लड़ाई मानने की वकालत करते रहे। बाद में भारत सरकार ने आधिकारिक रूप से भी 1857 की लड़ाई को देश के स्वतंत्रता की पहली लड़ाई का दर्जा दिया। यह बात अलग कि कई मुद्दों पर अपने समय के नेताओं से सावरकर के विचार उलट थे लेकिन उनका जो भी चिंतन था वो देश को आजाद करने की भावना पर आधारित था। इस तरह वैचारिक भिन्नता के आधार पर किसी को कमतर नहीं आंका जाना चाहिए। यही वजह रही कि मतभेद के बावजूद सावरकर के योगदान के प्रति तत्कालीन नेताओं में एक समझ थी जिसका इस दौर में अभाव दीखता है।