सरकार की नाक तक पानी

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उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में रविवार को जिस तरह से किसानों का सैलाब उमड़ा है, उसे राजनीतिक दल भी अभूतपूर्व मान रहे हैं. किसानों ने अपनी ताकत की जो नुमाइश की है, उसे देखते हुए राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि केंद्र सरकार को बातचीत का दरवाजा खोलने पर अब फिर से मजबूर होना पड़ सकता है. किसानों की इस कदर एकजुटता की तस्वीरें सरकार के लिए इसलिये भी चिंता की बात है क्योंकि अगले छह महीने के भीतर उत्तरप्रदेश में चुनाव हैं और पश्चिमी यूपी ही किसान आंदोलन का मुख्य गढ़ है.

हालांकि सरकार और किसानों के बीच अब तक हुई कई दौर की बातचीत बेनतीजा रही है, क्योंकि दोनों ही पक्ष अपनी-अपनी बात पर अड़े हुए हैं और झुकने को कोई भी तैयार नहीं है. लेकिन रविवार की महापंचायत ने ये संकेत दे दिया है कि पानी सरकार की नाक तक आ पहुंचा है, लिहाज़ा उसे अपने बचाव का रास्ता तलाशने के लिए फिलहाल अहंकार को त्यागते हुए सियासी फायदा उठाने की कोशिश करनी चाहिये. कुछ महीने पहले जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ये कहा था कि मेरे व किसानों के बीच सिर्फ एक फ़ोन कॉल की दूरी है, तब किसान नेताओं को ये उम्मीद जगी थी कि पीएम खुद इस मामले में दख़ल देकर शायद आंदोलन को खत्म करवाने के प्रति गंभीर हैं लेकिन ऐसा हुआ नहीं.

दरअसल, किसानों के तेवर देखकर सरकार को ये अहसास हो चुका है कि वे तीनों कानून वापस लेने के सिवा और कुछ भी सुनने को तैयार नहीं हैं, तो वहीं सरकार किसी भी सूरत में इन्हें वापस लेकर सियासी शतरंज की बाज़ी हारकर कमजोर नहीं पड़ना चाहती है. इसलिये सरकार और किसानों में बीच का कोई रास्ता निकलना लगभग असंभव नजर आ रहा है. पिछले नौ महीने में ये आरपार की ऐसी लड़ाई बन चुकी है जिसे ख़त्म करने के लिए सफेद झंडा दिखाने की जवाबदेही अब सरकार पर आ चुकी है. लेकिन सरकार को लगता है कि किसान उन्हें ब्लैकमेल कर रहे हैं, इसलिये वह उनके आगे भला क्यों झुके. इसी जिद के चलते दोनों के बीच कड़वाहट इस कदर बढ़ चुकी है कि फिलहाल कोई नहीं जानता कि ये लड़ाई कितनी लंबी चलेगी और इसमें फतह किसकी होगी.

शायद यही वजह है कि राकेश टिकैत ने आज केंद्र सरकार को एक तरह का अल्टीमेटम देते हुए दो टूक कहा कि, “किसान आंदोलन तब तक चलेगा, जब तक भारत सरकार चलवाएगी. जब तक वे बात नहीं मानेंगे ,आंदोलन चलता रहेगा. जब सरकार बातचीत करेगी तो हम करेंगे. देश में आज़ादी की लड़ाई 90 साल तक चली, यह आंदोलन कितने साल चलेगा, हमें तो जानकारी नहीं है.”

दरअसल, इस महापंचायत के जरिये किसानों ने बीजेपी के खिलाफ मिशन यूपी का आगाज़ कर दिया है और पूरे आंदोलन ने अब खुलकर सियासी शक्ल भी ले ली है. टिकैत ने ऐलानिया कह भी दिया कि जो सरकार हमारे खिलाफ काम करेगी, हम उसके खिलाफ काम करेंगे. यही कारण है कि आज वहां विपक्षी पार्टियों के बैनर-पोस्टर भी बड़ी संख्या में नज़र आये. हालांकि टिकैत ने इसे सिर्फ मिशन यूपी की बजाय देश से जोड़ते हुए कहा कि ‘संविधान खतरे में है और अब हमें देश बचाना है क्योंकि सरकार हर चीज बेच रही है और इससे साढ़े चार लाख लोग बेरोजगार हो जाएंगे.” उनके इस बयान से साफ है कि किसान आंदोलन के जरिये अब समाज के विभिन्न वर्गों में भी सरकार की नीतियों के खिलाफ माहौल तैयार किया जा रहा है.

महापंचायत के मंच से राकेश टिकैत ने अल्लाहु अकबर और हर-हर महादेव के नारे भी लगवाए. इस दौरान उन्होंने कहा कि अल्लाहु अकबर और हर-हर महादेव के नारे पहले भी लगते थे और आगे भी लगेंगे. इसके जरिये ये संदेश देने की कोशिश की गई है कि आंदोलन के साथ हर मज़हब के लोग जुड़े हुए हैं और साप्रदायिक भाईचारा खराब करने वाली ताकतों के मंसूबों को पूरा महीना होने दिया जायेगा. इस महापंचायत से बीजेपी को ज्यादा फिक्रमंद इसलिये होना चाहिये कि पश्चिमी यूपी के 15 जिलों में विधानसभा की 73 सीटें हैं, जहां किसान आंदोलन का असर उसकी जीत के समीकरण को काफी हद तक बदल सकता है.

नरेंद्र भल्ला
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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