सरकार, कब तक झेलें ये मार?

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भारत में एक बड़ी आबादी के साहूकारों के चकर में फिर फंस जाने का खतरा मंडरा रहा है। इनमें ज्यादातर दिहाड़ी मजदूर हैं। बड़ी मुश्किल से साहूकारों के दुश्चक्र को एक हद तक तोड़ा गया था, लेकिन अब हालत बदल गई है। भारत की 45 करोड़ श्रमिकों की आबादी में अनियमित कामगारों की 90 प्रतिशत हिस्सेदारी है। कोरोना महामारी के दौरान हुए लॉकडाउन का सबसे बुरा असर इन्हीं लोगों की आजीविका पर ही पड़ा है। हाल में को प्रधानमंत्री को 15 लाख लोगों के हस्ताक्षर वाली एक याचिका भेजी गई। इनमें प्रवासी श्रमिक, रेहड़ी-पटरी वाले और घर से काम करने वाले श्रमिक भी शामिल हैं। याचिका में मांग की गई है कि उन्हें कम से कम अगले चार महीनों तक 6000 रुपए नकद दिए जाएं, ताकि वे साहूकारों के महंगे कर्ज, मानव तस्करी और बाल श्रम से बच पाएं। अगर सरकार ने उनकी सुनी तो उससे गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले कमजोर परिवारों को नकद रुपए मिल पाएंगे। याचिका के अभियान के आयोजकों के मुताबिक उस पर 23 राज्यों के लोगों ने हस्ताक्षर किए हैं। मगर सरकार का कहना है कि महामारी की शुरुआत से ही हर श्रेणी के श्रमिकों के लिए कई कदम उठाए गए हैं।

इन कदमों में आगे चल कर स्थिति के अनुसार बदलाव भी लाए गए, ताकि लोगों की जरूरतों को पूरा किया जा सके। मोदी सरकार ने प्रवासी श्रमिकों के लिए खाने के इंतजाम पर 35 अरब रुपए खर्च करने का संकल्प लिया है और ग्रामीण रोजगार योजना (मनरेगा) के तहत स्थानीय रोजगार के कुछ अवसर भी दिए हैं। लेकिन कई अनियमित श्रमिकों को डर है कि चूंकि उनके पास कागजात नहीं हैं और बैंक में खाता भी नहीं है, तो उन्हें सरकारी मदद मिलने में दिक्कत होगी। श्रम अधिकार कार्यकर्ताओं के मुताबिक बड़ी संख्या में श्रमिकों ने अनियमित साहूकारों से कर्ज लिया है, जो असर काफी ऊंची दर पर ब्याज वसूलते हैं। गौरतलब है कि गृह मंत्रालय ने जुलाई में एक एडवाइजरी जारी कर राज्य सरकारों से कहा था कि वो तस्करी के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाएं, क्योंकि इस बात का डर था कि काम, खाना और पैसों के अभाव में अनगिनत लोग तस्करों का शिकार बन जाएंगे। प्रधानमंत्री को भेजी गई याचिका में कहा गया है कि मांगी गई मदद एक सेफ्टी नेट की तरह काम करेगी, जो भुखमरी को कम करने, तथा मानव तस्करी, बाल विवाह और बाल श्रम की संभावनाओं को घटाने में सहायक होगी।

सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए। वैसे कितना अजीब है,लोग गरीब होते जा रहे हैं और अमीर और अमीर। दुनिया में आर्थिक गैर-बराबरी का हाल यह है कि संकट का समय भी धनवान लोगों के लिए अवसर बनने लगा है। लोकतांत्रिक देशों में इस वक्त जो राजनीतिक उथल-पुथल है, उसके पीछे इस परिघटना का बड़ा रोल है। इसके बावजूद उन देशों में इस समस्या को कैसे हल किया जाए, इसको लेकर कोई सहमति नहीं बनी है। ताजा खबर यह है कि जर्मन कंपनी पीडब्ल्यूसी और स्विस बैंक यूबीएस की कंसल्टिंग फर्मों का एक रिसर्च जारी हुआ है। उससे यह बात सामने आई है कि कोरोना महामारी के दौरान दुनिया भर के अरबपति पहले से भी ज्यादा अमीर हो गए हैं। जुलाई के अंत में दुनिया के दो हजार से भी ज्यादा अरबपतियों की संपत्ति रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच कर दस हजार करोड़ डॉलर से भी ज्यादा हो गई। 2017 में यह नौ हजार करोड़ डॉलर से भी कम थी। उस समय यह रिकॉर्ड संख्या थी। 2018 और 2019 में यह कम होती गई। लेकिन 2020 में महामारी के दौरान अरबपतियों को एक बार फिर खूब मुनाफा होता देखा गया है। इस स्टडी के अनुसार स्टॉक मार्केट में बेहतरी इसकी एक वजह है और दूसरी वजह तकनीक और स्वास्थ्य सुविधाओं में ज्यादा निवेश है। दुनिया भर में कुल 2,189 ऐसे लोग हैं, जिनकी संपत्ति एक अरब डॉलर से अधिक है।

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