छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्रियों ने आज वह काम करके दिखा दिया है, जिसका अनुकरण भारत के ही नहीं, सभी पड़ौसी देशों के प्रधानमंत्रियों और मुख्यमंत्रियों को करना चाहिए। इनमें से एक मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कांग्रेसी हैं और दूसरे शिवराज चौहान भाजपाई हैं। ये दोनों परस्पर विरोधी पार्टियों के प्रांतीय नेता हैं लेकिन कोरोना के संघर्ष में वे अपनी पार्टियों के केंद्रीय नेताओं से भी आगे निकल गए हैं। पुराने मध्यप्रदेश के इन दोनों नेताओं को मैं उनके छात्र-जीवन से जानता हूं। उनका कृतित्व गर्व करने लायक है।
क्या किया है उन्होंने ऐसा ?
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री बघेल ने घोषणा की है कि वे अपने प्रदेश के 19 लाख किसानों को 5750 करोड़ रु. की अनुदान राशि देंगे। पहले 1500 करोड़ रु. किसानों के खाते में सीधे चले जाएंगे। गन्ना-किसानों को प्रति एकड़ 13000 रु. और धान- किसानों को 10,000 रु. प्रति एकड़ दिए जाएंगे। यह पूछिए कि इस मदद से किसको फायदा होगा ? छत्तीसगढ़ के आदिवासी, अनुसूचित, पिछड़े और गरीब किसान, जो कि 90 प्रतिशत हैं, इससे लाभान्वित होंगे। जो भूमिहीन खेती में लगे हुए हैं, उन लाखों विपन्न मजदूरों की भी शीघ्र ही सुध लेने की घोषणा बघेल-सरकार ने की है। क्या केंद्र सरकार अपनी 20 लाख करोड़ रु. की चमक-दमकदार घोषणा में कुछ ऐसे प्रावधान देश के किसानों और प्रवासी मजदूरों के लिए नहीं कर सकती थी ? यदि हमारे केंद्रीय नेता आम जनता से सीधे जुड़े होते और नौकरशाहों की घेराबंदी से निकल पाते, तो वे भी ऐसे कई चमत्कारी कदम उठा सकते थे। उनकी निष्ठा और परिश्रम में किसी को शक नहीं है, लेकिन ये सदगुण अनुभव के विकल्प नहीं बन सकते।
मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान से मैं काफी नाखुश था, क्योंकि उन्होंने उप्र की नकल पर श्रमिक कानून में कई अनुचित संशोधन कर दिए थे लेकिन शिवराज की विनम्रता और लचीलापन लाजवाब है। उन्होंने मेरे-जैसे कई छोटे-मोटे मित्रों की आलोचना का प्यारा-सा प्रतिकार कर दिया। उन्होंने अपने संशोधित श्रमिक कानून को दुबारा संशोधित करके ऐसे प्रावधान कर दिए हैं कि किसी भी मजदूर को उसकी सहमति के बिना 12 घंटे रोज की पाली नहीं करनी पड़ेगी और यदि वह करेगा तो उसे दुगुनी मजदूरी मिलेगी। महिला मजदूरनीयों को समस्त सुविधा दी जाएंगी। इसी तरह के कई अन्य सुधारों से मजदूरों को अब काफी राहत मिलेगी। शिवराज चौहान ने आयुर्वेदिक काढ़े के दो करोड़ पूड़े बंटवाए हैं और करोड़ों लोगों को आसन-प्राणायाम करने की सीख भी दी है। यदि वे और भूपेश भेषज-होम का विज्ञानसम्मत प्रयोग भी शुरु करवा दें तो सारे विश्व को विषाणुओं से छुटकारा मिल सकता है और भारत को अरबों—खरबों रु. की आमदनी भी हो सकती है।
डॉ वेदप्रताप वैदिक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)