सब आस्था केन्द्रों के लिए अयोध्या ट्रस्ट की दरकार

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खबर है कि संसद के शीतकालीन सत्र में राम मंदिर के ट्रस्ट का बिल पेश होगा। साधु-संतों में ट्रस्टी बनने की लॉबिंग शुरू हो गई है। साधु-संतों में कईयों का मत है कि नए ट्रस्ट की बजाय राम जन्मभूमि आंदोलन को ले कर पहले से जो ट्रस्ट हैं उनसे मंदिर का निर्माण हो। रामजन्म भूमि न्यास, रामालय ट्रस्ट, श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण न्यास जैसे ट्रस्ट के पदाधिकारी अपनी-अपनी जुगाड़ कर रहे हैं। सवाल है क्या यह ट्रस्ट भी वैसा ही होना चाहिए, जैसे सोमनाथ ट्रस्ट या वैष्णो देवी या तिरूपति ट्रस्ट हैं? अपना मानना है कि अयोध्या मंदिर पर हिंदू आस्था के संघर्ष की जो दास्तां है, उसकी जो ऐतिहासिकता है, उससे भारत राष्ट्र-राज्य, उसके संविधान, कानून, राजनीति आदि का जो समुद्र मंथन हुआ है उस सबके परिप्रेक्ष्य में ट्रस्ट अकेले राम के मंदिर के लिए नहीं होना चाहिए, बल्कि वह सनातनी हिंदू के सभी आस्था केंद्रों के रखरखाव, निर्माण, पुनर्निर्माण, हिंदू धर्म के मान-सम्मान, गरिमा के संरक्षण-संवर्धन का बनना चाहिए।

भला क्यों? क्या तर्क बनता है? तो जरा विचार करें कि हिंदू आस्था, उसके धर्म-कर्म, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक व भौगोलिक एकता को सूत्र में बांधने का जाग्रत इतिहास में कब काम हुआ? अपना मानना है कि आठवीं सदी में आदि शंकराचार्य के एक अकेले महाप्रयास के बाद कभी नहीं हुआ। वह अकेला महाप्रयास था और उसके बाद ध्वंस, विध्वंस और संघर्ष ही संघर्ष! उस नाते नौ नवंबर 2019 का सुप्रीम कोर्ट का फैसला हिंदुओं के इतिहास का निर्णायक मोड़ है। इतना लंबा संघर्ष और इतना बड़ा फैसला और बावजूद इसके अंत परिणाम में महज मंदिर निर्माण का मकसद लिए हुए एक ट्रस्ट और उसमें स्थानीय साधु-संतों की लॉबिंग व राजनीति!

इसके बजाय ट्रस्ट क्या हिंदू देवस्थानों, आस्था के प्रमुख सनातनी केंद्रों के पुनर्निर्माण, संरक्षण-संर्वधन का उद्देश्य लिए हुए नहीं बन सकता है? यदि राम मंदिर के लिए अयोध्या में लंबा चौड़ा परिसर, पूरे इलाके का धर्मनगरी के रूप में विकास करना है तो वाराणसी में भी मंदिर परिसर का स्थानीय-राज्य स्तर पर अभी जो काम हो रहा है वह इस ट्रस्ट का हिस्सा क्यों नहीं बन सकता है? हिंदू की सनातनी आस्था का एपिसेंटर गंगा-यमुना दोआब है, काशी-मथुरा-अयोध्या है और तीनों उत्तर प्रदेश राज्य में हैं। तीनों तीर्थ शहर फिलहाल अच्छा-सुखद-सुकून-चैन-शांति और आध्यात्मिकता का अनुभव नहीं कराते हैं। सो, यदि अयोध्या में राज्य सरकार, केंद्र सरकार को भूमि अधिग्रहण कानून के तहत जमीन लेने और फिर मंदिर निर्माण, रखऱखाव के नियम-कायदे वाले फैसले करने हैं, नए कायदे बनाने हैं और ट्रस्ट के दायरे, जिम्मेवारी आदि के निर्णय होने हैं तो पूरी कवायद को राज्य-केंद्र मिलकर समग्रता से हिंदू आस्था देवस्थान कानून जैसे किसी खांचे में क्यों नही कर सकते हैं? ऐसी कवायद जो भारत राष्ट्र-राज्य की बहुसंख्यक आबादी की आस्थाओं की प्रतिनिधि सरंक्षक हो!

हां, क्यों इस प्रयास में अयोध्या के स्थानीय साधु-संत या विहिप, संघ परिवार के साधु-संत ही रहें? सर्व सनातनी हिंदुओं का ट्रस्ट क्यों नहीं बने? आदि शंकराचार्य की परंपरा वाले सनातनी हिंदुओं के चारों शंकराचार्य क्यों न ट्रस्ट में लिए जाएं? इन शंकराचार्यों में भाजपा या कांग्रेस पक्षधरता की कसौटी पर क्यों भेद हो? क्यों न इस ट्रस्ट में भारत का प्रधानमंत्री, गृह मंत्री स्थायी तौर पर पदेन ट्रस्टी हों? सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल के घर जो साधु-बाबा इकठ्ठे हुए यदि उन्हें या उन जैसे चेहरों को ही संघ, मोदी, शाह ने ट्रस्ट में रखा तो उससे सर्वहिंदू समाज की आस्था की जन्मभूमि के मंदिर की वह प्राण-प्रतिष्ठा नहीं बनेगी जो बननी चाहिए। चारों प्रमुख शंकराचार्यों के साथ अध्यात्म-दर्शन के नामी अध्येता व दार्शनिक ट्रस्ट में होंगे तो गरिमा बनेगी और चंहुमुखी सर्वमान्यता बनेगी।

हां, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को महापुण्य मिलेगा यदि ट्रस्ट क्षुद्रताओं व राजनीति से निरपेक्ष हो कर सनातनी हिंदू की आस्थाओं का सर्वजन संकल्प बने। इससे हिंदू देवस्थानों के पुनरोत्थान और नवनिर्माण की शुरुआत बने। बहुसंख्यक नागरिकों के धर्म, उनकी आस्था की आधुनिक तस्वीर बने। अयोध्या में राम मंदिर धंधे की, राजनीति की दुकान न बने, बल्कि पवित्रता, शुद्धता, स्वच्छता, सुंदरता और धार्मिकता, सांस्कृतिक, दार्शनिकता, आध्यात्मिकता का वह स्थान बने, जिस पर पूरा हिंदू समाज गर्व कर सके और हर हिंदू मन से संतोष की सहभागिता लिए हुए हो। भले फिर वह किसी भी पार्टी या विचार का हो।

अयोध्या में जन्म स्थान की आस्था पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला ऐतिहासिक सर्वमान्यता लिए हुए है। उस आधार पर दूरदृष्टि में व्यापकता से सर्वभागीदारी से आगे काम होना चाहिए। हिंदू आस्था को राजनीतिक बंटवारे में न बंटने दिया जाए। राष्ट्र-राज्य का सर्वानुमति, आम राय से अब फैसला है कि धर्म की सनातन आस्था सार्वभौम है। इसलिए केंद्र सरकार और खासकर गृह मंत्री अमित शाह को ट्रस्ट के निर्माण में न केवल उद्देश्य व्यापक बनाने चाहिए, बल्कि धर्म-समाज की एकजुटता को ध्यान में रख कर धर्म की गरिमा व प्रतिष्ठा बढ़वाने वाले नजरिए में निर्णय लेने चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के ट्रस्ट बनाने की बात भले अयोध्या में जन्मभूमि को ले कर है मगर केंद्रीय मंत्रिमंडल व्यापक दायरे और मकसद में फैसला ले कर ट्रस्ट की कवायद को नया आयाम दे सकता है। ट्रस्ट अपने आप में नरेंद्र मोदी और अमित शाह का वह मौका, वह योगदान हो सकता है, जिसे राष्ट्र-राज्य की तासीर में कभी नहीं भुलाया जा सकेगा।

हरिशंकर व्यास
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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