बहुत पुरानी बात है। किसी नगर में एक राजा राज करते थे। राजा का राजपाठ ठीकठाक चल रहा था। परंतु राजा को किसी कार्य से अपने राज्य से बाहर जाना पड़ गया। उस दौरान राजा के दो पुत्रों ने जन्म लिया। दोंनों बड़े हो गये। अब राजा बहुत खुश था। क्योंकि उसे अपने राजपाठ की कोई फिक्र नहीं थी। राजा बुढ़ा हो चला। दोनों बच्चे आपस में लड़ते-झगड़ते रहते थे। इस बात से राजा और रानी बहुत दुखी रहते थे। दोनों बेटों में राजपाठ के बंटवारे को लेकर विवाद रहने लगा। इससे तंग आकर राजा ने अपना राजपाठ बांटने की बात कह डाली। सभी लोग राजदरबार में बैठ गये और आपस में बात करने लगे कि राजपाठ किस लड़के को दिया जाये। क्योंकि दोनों संतान एक समान थे। राजा के दोनों बेटों को सभा में बुलाया गया कि सिंहासन पर कौन बैठेगा। राजा के दोनों ही लड़कों ने सिंहासन पर बैठने की जिद कर डाली और सभा में ही लड़ने और झगड़ने लगे।
इस बात को लेकर सभा में उपस्थित सभी बुद्धिजीवि लोग दुविधा में पड़ गये। अंत में एक समझदार राजदरबारी उठा और बोला कि राजा के दोनों बच्चों को यहां बुलाइये। पहले से बोला गया कि आप राजा का राजपाठ संभालागो ऐसा ही दूसरे लड़के से कहा गया परंतु दोनों ही सिंहासन पर बैठने की जिद पर अड़े रहे। अंत एक पंच ने कहा कि इस समस्या का हल हो सकता है। यदि आप लोगों को मेरी बात अच्छी लगे तो मैं यह कहता हूं कि इन दोनों लड़कों से यह बात कहियेगा कि जो भी अपने बाप को पांच जूता गिनकर मारेगा उसी के सिर पर राजपाठ सौंप दिया जायेगा। अब सारी सभा में सन्नाटा छा गया कि राजा के दरबार में यह कैसी बात हो रही है। अब राजा के बड़ा बेटा आया और वह अपने परिवार की लोकलाज के कारण तथा एक राजा बेटा होने के कारण समझ गया कि पंच क्या चाहते हैं वह बोला कि मैं अपने पिताश्री को पांच जूते नहीं मार सकता क्योंकि मेरे लिए माता पिता ही ईश्वर हैं और भला मैं ईश्वर को कैसे जूते मार सकता हूं।
मुझे राजपाठ नहीं चाहिए मैं तो ऐसे ही अपने राजपाठ की देखभाल कर लूंगा और अपने माता-पिता की सेवा करूंगा। मुझे राजपाठ नहीं चाहिए। अब सभा में दूसरे बेटे को बुलाया गया। उससे भी सभा में यही बोला गया कि यदि आप अपने पिता को पांच जूते मारोगे तो तभी आपको राजपाठ मिलेगा यदि आपने ऐसा नहीं किया तो आपको राजपाठ नहीं मिलेगा। अब क्या था वह बेवकूफ लड़का भरी सभा में उठा और पंच बिना सोच विचार के ही उसने भरी सभा में अपने पिता के सिर पर पांच जूत मार दिये। जिससे भरी सभा में सन्नाटा छा गया और इस बात से राजा और रानी तथा सारी प्रजा बहुत दुखी हुए। अंत में सभी में रानी को बुलाया गया कि बोलो यह सब क्या हो रहा है। रानी बोली पहला लड़का अपने पिता का है और दूसरा लड़का किसी और का। क्योंकि कोई भी औलाद अपने माता-पिता की इज्जत नहीं उछालते।
इसीलिए मेरे बड़े बेटे को राजपाठ सौंप दिया जाये और छोटे बेटे को सूली पर चढ़ा दिये। जब प्रजा को इस बात का पता चला कि यह बेवकूफ बेटा राजा का नहीं ऐसी औलाद का तो मर जाना ही अच्छा है जो अपने माता-पिता का नहीं होता तो वह दुनियादारी का क्या होगा। आज हमारे समाज में ऐसे अनगिनत उदाहरण भरे पड़े है। रोज समाचार पत्रों में समाज की गिरी हुई खबरे छपती हैं। इस कहानी का मतलब यह है कि ‘‘पूत सपुत सुने हैं, सबने माता-पिता न कुमाता’’ जो औलाद अपने माता-पिता का आदर नहीं करते उनका समाज में भी कहीं आदर नहीं होता। ऐसी औलाद मरे के समान है। वह तो जीते जी मर ही जाता है बल्कि उसके माता-पिता व रिश्तेदारों तथा गांव, शहर का नाम भी गंदा हो जाता है।
और तो आने वाले परिवार पर भी उसकी छवि की छाप छुट जाती है। इसीलिए प्यारे बच्चों आप सदैव अच्छा सोचों, अच्छी पढ़ाई करों। माता-पिता का भी दायित्व बनता है कि हमें अपने बच्चों की परवरिश ठीक प्रकार से करनी चाहिए और उनमें अच्छे संस्कार डालने चाहिए। यही अच्छे परिवार की पहचान होती है। रूपये पैसे या धनाढ़य बनने से अच्छा सभ्य परिवार नहीं बनता। बल्कि परिवार बनता है सुशासन से अच्छे संस्कार से। यदि किसी का बच्चा गलत कार्य करता है तो उसमें कहीं न कहीं माता-पिता भी दोषी हैं क्योंकि उसकी परवरिश अच्छे संस्कारों से नहीं की गई। आज के समय में हम पढ़ लिख तो बहुत गये परंतु संस्कार हमारे से लाखों कोसों दूर हैं।