राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत के अनुसार हिंदू और मुस्लिम अलग नहीं, सभी भारतीयों का डीएनए एक, बयान को सकारात्मक रूप में व समग्रता में लिया जाना चाहिए। भागवत ने बहुत सोच समझ कर भारतीयत पर फैले भ्रम को दूर करने का प्रयास किया है। भारतीयता का मतलब हिंदू, मुस्लिम समेत सभी समुदायों से है। संघ और भाजपा को लेकर एक भ्रम बन गया है कि वह मुस्लिमों के खिलाफ है,जबकि हकीकत में ऐसा कतई नहीं है। नागरिकता, जनसंया, राष्ट्रीय एकता, अखंड भारत, एक देश एक विधान व सांस्कृतिक राष्ट्रीयता की बात करना कहीं से भी किसी अल्पसंयक के खिलाफ नहीं है। हर देश को अपनी नागरिकता कानून बनाने का हक है, भारत ने भी ऐसा किया, यह कहीं से भी मुस्लिम विरोधी नहीं है। अखंड भारत का सपना हम सब नागरिकों का होना चाहिए। भारत का विभाजन सबके लिए कष्टकारी था। अफगानिस्तान सीमा से यांमार तक भारत एक हो, ऐसा सपना देखना मुस्लिम विरोधी तो नहीं है। एक देश में एक विधान तो होना ही चाहिए। अलग-अलग समुदाय के अलग-अलग विधान से राष्ट्र तो मजहब नहीं होगा।
जनसंख्या विस्फोट रोकने के लिए देश को जनसंया पर कानून बनाने का हक होना चाहिए, यह किसी समुदाय विशेष के खिलाफ तो नहीं है। हालांकि अभी इस पर कोई बात नहीं है। संघ कभी भी मुस्लिमों के खिलाफ नहीं रहा है, लेकिन उसके अखंड भारत हिंदुत्व पहचान आदि बयानों से देश में एक गलत धारणा बन गई है कि वह मुस्लिमों के खिलाफ है। संघ संचालित अनेक स्कूलों में मुस्लिम समेत सभी समुदाय के बच्चे पढ़ते हैं। प्राकृतिक आपदा, किसी महामारी या बड़ी विपदा के समय संघ ने हमेशा धार्मिक भेदभाव से ऊपर उठ कर सबके कल्याण के लिए काम किया है। संघ की इकाई राष्ट्रीय मुस्लिम मंच मुस्लिमों के उत्थान के लिए गंभीरता से काम कर रहा है। भाजपा सरकारों की जन कल्याणकारी योजनाओं के लाभार्थी सभी समुदाय के लोग समान रूप से है। मनरेगा, उज्ज्वला गैस, सब्सिडी डीबीटी, छात्रवृत्ति, कन्या विवाह अनुदान राशि आदि बिना भेदभाव सभी पात्रों को समान रूप से दिया जाता है। कुप्रथाओं का अंत तो सभी चाहते हैं। संघ ने हमेशा कुप्रथाओं का विरोध किया है। हिंदू-मुस्लिम सभी चाहते हैं कि उनमें व्याप्त कुप्रथाओं का अंत हो।
सख्ती प्रथा, दहेज प्रथा, बाल विवाह जैसी कुप्रथाएं हिंदुओं के लिए अभिशप थी, तो तीन तलाक के एक नियम तलाक-ए-बिदत व मुस्लिमों के लिए परेशान करने वाली थी। भाजपा सरकार ने हिमत दिखाते हुए अगर तीन तलाक के इस विधान का कानून बनाकर अंत किया तो यह प्रगतिशील कदम ही है। देश हमेशा नियम कानून से चलना चाहिए। यूरोप, अमेरिका, चीन, अरब सभी देश एक विधान से चलते हैं, इसलिए भारत को भी एक विधान से ही चलना चाहिए। और हमारा तो प्रगतिशील संविधान है, जिसमें सभी को समान हक प्राप्त है। क्या देश में एक राष्ट्रीय शिक्षा नीति नहीं होनी चाहिए, जिसमें सभी के लिए एक जैसा पाठ्यक्रम हो? मजहबी पाठ्यक्रम से देश प्रगतिशील नहीं बनेगा। जब हम भारतीय कहते हैं, या हिंदुस्तान कहते हैं तो इसमें सभी समुदाय के लोग आते है, केवल हिंदू नहीं।
सुप्रीम कोर्ट हिंदुत्व को एक जीवन पद्धति के रूप में परिभाषित कर चुका है। हिंदुत्व का अर्थ व्यापक है, वह धार्मिक अर्थ में नहीं है। ये किसी धर्म के विरोधी नहीं हैं। ये सबके आत्मिक विकास के लिए हैं। मोहन भागवत के बयान को बेशक विधानसभा चुनाव से जोडऩे का प्रयास किया जा रहा हो, लेकिन उन्होंने संघ के मुस्लिम विरोधी होने के मिथक को तोडऩे की कोशिश की है। पीएम नरेंद्र मोदी, भाजपा व संघ ने हमेशा इसकी निंदा की है। सजिशन या जबरन धर्मातरण भी अच्छी बात नहीं है। सभी समुदाय की मेहनत से राष्ट्र का निर्माण होता है। हिंदू-मुस्लिम एकता से ही भारत मजबूत राष्ट्र रहेगा व वह अखंड का सपना साकार कर सकेगा। इसलिए मोहन भागवत के बयान का स्वागत किया जाना चाहिए।