संकष्टी चतुर्थी भगवान गणेश को समर्पित है। श्रद्धालु इस दिन अपने बुरे समय व जीवन की कठिनाइयों को दूर करने के लिए भगवान गणेशजी की पूजा करते हैं। हिन्दू पंचांग में प्रत्येक चंद्र मास में दो चतुर्थी होती हैं। पूर्णिमा के बाद आने वाले कृष्णपक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं। इस दिन भगवान गणेश और चंद्र देव की उपासना करने का विधान है। जो कोई भी इस दिन श्रीगणपति की उपासवा करता है, उसके जीवन के संकट टल जाते हैं।
पूजा विधि
श्रद्धालु इस दिन सुबह जल्दी उठकर भगवान गणेश जी की पूजा करते हैं एवं व्रत रखते हैं। जो व्यक्ति इस दिन व्रत रखते हैं वह पूरे दिन केवल दूध या फल ही खाते हैं। इसके अलावा कुछ लोग कच्ची सब्जियां, फल, मूंगफली एवं आलू भी खाते है। शाम को फिर सूर्यास्त के पहले स्नान किया जाता है। इसके बाद गणेशजी की प्रतिमा को ताजे फूलों से सजाया जाता है। चन्द्र दर्शन के बाद पूजा की जाती है। एवं व्रत कथा पढ़ी जाती है। इसके बाद ही संकष्टी चतुर्थी का वर्त पूर्ण होता हैं।
इस व्रत का महत्व
चतुर्थी के दिन चन्द्र दर्शन को बहुत ही शुभ माना जाता है। चन्द्रोदय के बाद ही व्रत पूर्ण होता है। मान्यता यह है कि जो व्यक्ति इस दिन व्रत रखता है उसकी संतान संबंधी समस्याएं भी दूर होती हैं। अपयश और बदनामी के योग कट जाते हैं। हर तरह के कार्यों की बाधा दूर होती है। धन तथा कर्ज संबंधी समस्याओं का समाधान होता है।