श्रीशीतला अष्टमी : व्रत-पूजा से मिलेगा आरोग्य सुख

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भारतीय संस्कृति के हिन्दू सनातम धर्म में धार्मिक पौराणिक मान्यता के अनुसार माँ श्रीशीतला देवी की महिमा अनंत है। स्कन्दपुराण के अनुसार देवी श्रीशीतला माता जी की पूजा चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ एवं आषाढ़ मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि के दिन करने की मान्यता है । भारतवर्ष के कई अंचलों में यह पर्व विधि-विधानपूर्वक मनाया जाता है। ज्योतिषविद् श्री विमल जैन ने बताया कि इस बार 13 अप्रैल, गुरुवार को मनाया जाएगा। हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की अष्टम के दिन श्रीशीतला अष्टमी का पर्व मनाया जाता है। कहीं-कहीं पर पारिवारिक परम्परा के मुताबिक बसि औरा के रूप में भी श्रीशीतला अष्टमी का पर्व विधि-विधानपूर्वक मनाने की परम्परा है। वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 12 अप्रैल, बुधवार को अर्द्धरात्रि के पश्चात् 3 बजकर 55 मिनट पर लगेगी जो कि 13 अप्रैल, गुरुवार को अर्द्धरात्रि के पश्चात् 1 बजकर 35 मिनट तक रहेगी। उदया तिथि के अनुसार अष्टमी तिथि 13 अप्रैल, गुरुवार को होने से श्रीशीतला अष्टमी का व्रत इसी दिन रखा जाएगा।

स्कंदपुराण के अनुसार श्रीशीतला माता गधे (गर्दभ) की सवारी करती हैं और हाथों में कलश, झाडू, नीम की पत्तियाँ तथा मस्तक पर सूप धारण किए रहती हैं। ऐसी मान्यता है कि माता शीतला की पूजा करने से संक्रमण से होने वाले समस्त रोगों से छुटकारा मिलता है। बच्चों को निरोग रहने का आशीर्वाद तो मिलता ही है साथ ही बड़े-बुजुर्गों को भी आरोग्य सुख का लाभ मिलता है। बच्चों की बुखार, खसरा, चेचक, आंखों के रोग से रक्षा होती है। माँ को शुद्ध सात्विक बासी भोजन का भोग लगाया जाता है, जिसका उद्देश्य यही है कि अब सम्पूर्ण गर्मी के मौसम में ताजे भोजन का ही प्रयोग करना चाहिए। यह व्रत माताएँ प्रमुख रूप से बच्चों के बेहतर स्वास्थ्य और उनकी दीर्घायु की कामना के लिए रखती हैं।

शीतला माता जी की पूजा का विधान – ज्योतिषविद् श्री विमल जैन ने बताया कि व्रतकर्ता को प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त होकर शीतल जल से स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। अपने आराध्य देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना के पश्चात् श्रीशीतला माता के समक्ष हाथों में फूल, अक्षत और एक सिक्का लेकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए। शीतला अष्टमी के दिन पूर्व रात्रि में बने विभिन्न प्रकार के व्यंजनों का बासी भोग लगाने का विधान है। शास्त्रों के अनुसार भोजन बनाने की जगह को साफ व स्वच्छ कर गंगा जल छिड़क लें। प्रेम, श्रद्धा के साथ भोग स्वरूप चावल-दाल व अन्य मीठे पकवान बनाकर उनका भोग लगाया जाता है।

ज्योतिषविद् श्री विमल जैन ने बताया कि श्रीशीतला सप्तमी पर माँ दुर्गा के स्वरूप शीतला माता की पूजा की जाती है। माँ शीतला को फूल, माला, सिंदूर, सोलह शृंगार की सामग्री आदि अर्पित करने के साथ ही उन्हें शुद्ध और सात्विक बासी या ठंडे भोजन का भोग लगाकर जल अर्पित करें। फिर घी का दीपक और धूप जलाकर शीतला स्त्रोत का पाठ करें। विधिवत् पूजा करने के बाद आरती कर लें और अंत में भूल चूक के लिए माफी माँग लें। रात्रि में दीपमालाएं और जगराता करके श्रीशीतला माता की महिमा में श्री शीतलाष्टक स्तोत्र तथा श्रीशीतला जी से सम्बन्धित अन्य मन्त्र का जाप व लोकगीतों का गायन भी किया जाता है। इसके साथ ही बासी भोजन को प्रसाद के रूप भक्तों में बाँटकर स्वयं ग्रहण करना चाहिए। इस व्रत को करने से आरोग्य का वरदान मिलता है। माता शीतला आपके बच्चों की गंभीर बीमारियों एवं बुरी नजर से रक्षा करती हैं। इस त्योहार को कई स्थानों पर बासौड़ा (बसिऔरा) भी कहते हैं। माताएँ इस दिन गुलगुले बनाती हैं और शीतला अष्टमी के दिन इन गुलगुलों को अपने बच्चों के ऊपर से उबारकर कुत्तों को खिलाने से विविध प्रकार की बीमारियों से रक्षा होती है।

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