सत्ता के शे में चूर, होकर भरपूर
कर रहे नासमझी संविधान के साथ फूल बतमीजी
सूरज कभी न कभी डूबता है
पिछलों का डूबा, अबकी हो शायद तुम्हारी तुम्हारी बारी है
धरती पर कुछ भी शास्वत नहीं है
जनता जर्नादन होश में है
पर लगता है हमारे रहनुमा मदहोश में हैं
आने वाले कल के लिये, बचाकर रखलो कुछ लोक लाज
नहींतो जनता खुद मांगेगी आपसे हिसाब
लोग जब पूछेंगे प्रश्न तो आप हो जाओगे पूरे बेनकाब
आज जो चढ़ा तुम ये सत्ता का खुमार
कुछ तो शर्म करो, न किसी बात की फुलंग, न जड़
उड़ा हवा में तीर और तलवार
दे रहे उपदेश और आदेश हजार
सत्ता आप लोगों के लिये साधने की चीज हो सकती है
पर सत्ता ही अंतिम अवसर नहीं
बिन पानी सब सून एक मुहावरा है
लेकिन आज चरितार्थ है
जय जवान, जय किसान एक नारा है
लेकिन दोनों को सरकारों ने मारा है
मंहगाई और महिलाओं की आबरू को
दोनों को हमारी सरकारों ने मारा है
महंगाई और आबरू की जीडीपी की भागम भाग है
बेरोजगारों के लिये मझधार है
दलितों का छीना जा रहा संवैधानिक अधिकार है
लो यह थी सबसे अच्छी सरकार है
अंबेडकर पसंद लेकिन अंबेडकर वादी नहीं
यह कैसा विरोधाभास है
फिर भी अम्बेडकर को अपनाने की मारममार है
लो फिर से आ गई अंगे्रजों की सरकार है
शिक्षा व्यवस्था का बंटवारा है
निजीकरण का दबाव है
बढ़ती फीस लालों की जी का जंजाल है
उलजलूल चीजों पर हो रहा महासंग्राम है
सीबीआई प्रमुख कहता, मुझे बचा लो,
इलेक्शन कमीशन कहता मुझे बचा लो,
अभिनेता कहता मुझे बचा लो,
सुप्रीम कोर्ट का न्यायधीश कहता मुझे बचा लो,
रिजर्व बैंक का गर्वनर कहता मुझे बचा लो,
देश-विदेश नीति कहती मुझे बचा लो,
बाकी सारा लोकतंत्र कहता मुझे बचा लो,
अब जब वे ये न कहें हे प्रभु अबकी बार हमें बचा लो,
सत्ता के नशे में होके भरपूर।
– सुदेश वर्मा