शाह और मात

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उन्नति के पथ पर
उन्नति के पथ पर

रूप किशोर बड़ी हारी आवाज में बोले, “तो मीटिंग हौ गई क्या?” रूप किशोर अब बहुत कुछ भांप चुके थे। उनके साथ धोखा हुआ है। मन में आक्रोश पैदा होने लगा था।

“और नहीं तो क्या। साढ़े तीन बजे तक प्रतीक्षा की, फिर जब आप आए ही नहीं तो हम सबको बड़ा दुःख हुआ। आपके घर फोन किया। फोन की घंटी बजती रही, बजती रही, किसी ने उठाया ही नहीं। हमने सोचा, आप बाहर चले गए। आप कह रहे थे न कि शायद दिल्ली जाना पड़े।”

“पर मैं तो घर पर ही था…।”
“तो फोन क्यों नहीं उठाया?”
“घंटी तो बजी नहीं……।”

“ये कैसे हो सकता है? फोन तो मैंने स्वयं मिलाया…घंटी स्वयं सुनी। एक बार नहीं तीन-चार बार फोन मिलाया, भाई साहब”

“तुमने स्वयं फोन की घंटी सुनी तो हो सकता है वह फाल्स रिंग हो।”

श्याम सुन्दर ने आगे की कहानी बताते हुए कहा, “मेरी तो स्थिति बड़ी खराब हो गई। मैंने सबसे कह रखा था कि अबकी बार रूप किशोर को ही अध्यक्ष बनाएंगे। कोई नामांकन नहीं भरना। रूप किशोर जी का सर्वसम्मति से ही चयन करेंगे।”

रूप किशोर को अभी भी यह आशा थी कि अध्यक्ष तो उन्हीं को बनना है। अतः श्याम सुन्दर की बात से सहमति जताते हुए, पर कुश शंकित स्वरों में बोले, “वो तो ठीक ही है। मेरी भी तुम से बात हो ही चुकी थी। सबकी इच्छा यही तो थी कि इस बार मेरे नाम का चयन किया जाए।”

शाह और मात
शाह और मात

“मैंने तो यही कहा पर अश्वनी कुमार कहने लगे कि रूप किशोर जी ने मुझसे कहा था कि वे अध्यक्ष नहीं बनना चाहते। उन पर बहुत काम है। उनका सारा समय तो छात्रों को पढ़ाने में निकल जाता है। क्लब का दायित्व कैसे सम्भालेंगे।”

“मैंने यह केवल इसलिए कहा था ताकि किसी को यह न लगे कि मैं अध्यक्ष बनने को बड़ा लालायित हूं। तुमसे तो मैं कह चुका था कि मैं अध्यक्ष बनने को तैयार हूं। अच्छा बताओं, फिर क्या हुआ?”

“होना क्या था सब यही समझे कि तुम अध्यक्ष बनना नहीं चाहते और तभी यहां न आकर दिल्ली चले गए हो। तब हमने चरन सिंह को तैयार किया।”

अभी श्याम बता ही रहे थे कि रूप किशोर जी बोल उठे,”…. तो क्या इलैक्शन भी हो गया…?”

“जी हां, सब हो गया। जब आप थे ही नहीं तो चरन सिंह को अध्यक्ष बनाया। एक प्रस्ताव और पास हुआ है। अब से अध्यक्ष का कार्यकाल एक वर्ष से बढ़ाकर तीन वर्ष कर दिया गया है। कोई और प्रस्ताव तो था नहीं इसलिए बैठक जल्दी ही समाप्त हो गई।”

रूप किशोर पश्चात्ताप की अग्नि में जलाते हुए घर लौटने को विवश थे।

शिक्षा – अच्छा समय बार-बार नहीं आता अगर हम समय के हिसाब से नहीं चलेंगे तब पछताने के अलावा कुछ हाथ नहीं आएगा अतः समय की बरबादी असफलता का महत्वपूर्ण कारण है। “जीवन में सफलता प्राप्त करने समय की पाबंदाी अति आवश्यक है।”

साभार
उन्नति के पथ पर (कहानी संग्रह)

लेखक
डॉ. अतुल कृष्ण

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