शक्ति का पर्व नवरात्रि शुरू होने में अब कुछ दिन रह गए हैं। साल में चार बार नवरात्रि आती है लेकिन सबसे अधिक जोश और उमंग अश्विन माह की नवरात्रि में देखने को मिलती है। इसमें मां दुर्गा के सभी नौ रूपों की साधना कर उत्सव मनाया जाता है। जगह-जगह माता की प्रतिमा स्थापित की जाती है। फिर दशहरे के दूसरे दिन विसर्जन किया जाता है।
पितृ पक्ष में एक तिथि दो दिन पड़ने से पितृ पक्ष 16 दिनों तक मनाया जा रहा है, वहीं सात अक्टूबर को शुरू हो रही शारदीय नवरात्र में दो तिथि एक ही दिन पड़ेगी। एक ही दिन दो तिथि पड़ने से नवरात्रि आठ दिनों की रहेगी। आठ दिनों में ही नौ देवियों की पूजा-अर्चना की जाएगी। पंडित अखिलेश शुक्ला के अनुसार इस बार नवरात्रि सात अक्टूबर को शुरू होकर 14 अक्टूबर को समाप्त होगी। नौ अक्टूबर को तृतीया और चतुर्थी तिथि एक साथ मनाई जाएगी। इसी दिन माता के तीसरे स्वरूप चंद्रघंटा और चौथे स्वरूप कुष्मांडा देवी की पूजा एक साथ की जाएगी।
पूजा स्थान पर कलश की स्थापना करने से पहले उस जगह को गंगा जल से शुद्घ कर कलश को पांच तरह के पत्तों से सजाएं। उसमें हल्दी की गांठ, सुपारी, दूर्वा, आदि रखें व कलश को स्थापित करने के लिए उसके नीचे मिट्टी की वेदी बनाएं। जिसमें जौ बोये, जौ बोने की विधि धन-धान्य देने वाली देवी अन्नपूर्णा को खुश करने के लिए की जाती है। मां दुर्गा की फोटो या मूर्ति को पूजा स्थल के बीच स्थापित करें। जिसके बाद मां दुर्गा को श्रृंगार, रोली ,चावल, सिंदूर, माला, फूल, चुनरी, साड़ी, आभूषण अर्पित करें। कलश में अखंड दीप जलाया जाए, जिसे व्रत के आखिरी दिन तक जलाया जाना चाहिए।
नवरात्रि में क्या करें, क्या न करें
इन दिनों व्रत रखने वाले को जमीन पर सोना चाहिए। ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। व्रत करने वाले को फलाहार ही करना चाहिए। नारियल, नींबू, अनार, केला, मौसमी आदि फल तथा अन्न का भोग लगाना चाहिए। व्रत करने वाले को संकल्प लेना चाहिए कि हमेशा क्षमा, दया, उदारता का भाव रखेगा। इन दिनों व्रती को क्रोध, मोह, लोभ आदि दुष्प्रवृत्तियों का त्याग करना चाहिए। देवी का आह्वान, पूजन, विसर्जन, पाठ आदि सब प्रातःकाल में शुभ होते हैं, अतः इन्हें इसी दौरान पूरा करना चाहिए।
नवरात्र पर्व में भी रहेगा कोरोना असर, जिला प्रशासन ने जारी किया निर्देशः नोवेल कोरोना वायरस के संक्रमण के नियंत्रण एवं रोकथाम को दृष्टिगत रखते हुए तथा आगामी माह में जिले में कोरोना पॉजिटिव प्रकरणों की संख्या में वृद्घि की संभावना को रोकने एवं नियंत्रण में रखने के लिए कलेक्टर रमेश शर्मा ने नवरात्र पर्व के संबंध में निर्देश जारी किया गया है।जारी आदेश में कहा गया है कि मूर्ति की अधिकतम ऊंचाई आठ फीट होगी परंतु पीओपी (प्लास्टर आफ पेरिस) से निर्मित मूर्ति बिक्री एवं स्थापित करना प्रतिबंधित रहेगा। मूर्ति स्थापना वाले पंडाल का आकार 15 बाइ15 फीट से अधिक नहीं होना चाहिए। पंडाल के सामने कम से कम 500 वर्ग फीट की खुली जगह हो। पंडाल एवं सामने 500 वर्गफीट की खुली जगह में कोई भी सड़क अथवा गली का हिस्सा प्रभावित न हो। मंदिर प्रांगण के भीतर नियत स्थान पर सभी ज्योत का प्रज्वलन किया जाएगा। उक्त नियत स्थान पर अग्निशमन सुरक्षा के सभी उपाय किया जाना अनिवार्य होगा। ज्योत दर्शन के लिए दर्शनार्थियों व अन्य व्यक्तियों का प्रवेश पूर्णतः वर्जित रहेगा।
नवरात्र के पहले दिन कलश स्थापना की जाती है और इसी दिन अखंड दीपक जलाया जाता है। इसके बाद नौ दिनों तक ये कलश स्थापित रहता है। आखिरी दिन इसका विसर्जन किया जाता है। इस बार शारदीय नवरात्र पर कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 9ः33 बजे से 11ः31 बजे तक रहेगा। इसके बाद दोपहर 3ः33 बजे से शाम 5ः05 बजे तक रहेगा। लेकिन बेहतर है कि आप सुबह के समय ये स्थापना करें।
वैसे तो भगवान की पूजा कभी भी की जा सकती है, लेकिन कुछ विशेष पूजा में शुभ मुहूर्त देखा जाता है। मान्यता है कि शुभ ोमुहूर्त में ग्रह और नक्षत्र शुभ फल देने की स्थिति में होते हैं। ऐसे में पूजन के समय किसी भी कार्य को करने में बाधा नहीं आती। शुभ मुहूर्त में आप जिस कामना के साथ पूजन को सफल तरीके से करते हैं, आपको उसके बेहतर फल भी प्राप्त होते हैं और मनोरथ सिद्घ होते हैं। यही वजह है कि ज्यादातर ज्योतिष विशेषज्ञ किसी भी काम को शुभ मुहूर्त में करने की सलाह देते हैं।
ऐसे करें कलश स्थापना
पूजा स्थान पर कलश की स्थापना करने से पहले उस जगह को गंगा जल से शुद्घ किया जाता है। कलश को पांच तरह के पत्तों से सजाया जाता है और उसमें हल्दी की गांठ, सुपारी, दूर्वा, आदि रखी जाती है। कलश को स्थापित करने के लिए उसके नीचे बालू की वेदी बनाई जाती है। जिसमें जौ बोये जाते हैं। जौ बोने की विधि धन-धान्य देने वाली देवी अन्नापूर्णा को खुश करने के लिए की जाती है। मां दुर्गा की फोटो या मूर्ति को पूजा स्थल के बीचोंबीच स्थापित करते है। जिसके बाद मां दुर्गा को श्रृंगार, रोली ,चावल, सिंदूर, माला, फूल, चुनरी, साड़ी, आभूषण अर्पित करते हैं। कलश में अखंड दीप जलाया जाता है जिसे व्रत के आखिरी दिन तक जलाया जाना चाहिए।
नियम का पालन नहीं करने पर होगी कार्रवाई
जारी आदेश में कहा गया है कि मंडपध्पंडाल के सामने दर्शकों के बैठने के लिए पृथक से पंडाल नहीं होना चाहिए। दर्शकों एवं आयोजकों के बैठने के लिए कुर्सी नहीं लगाये जाएंगे। किसी भी एक समय में मंडप एवं सामने मिलाकर 50 व्यक्ति से अधिक न हो। मूर्ति दर्शन अथवा पूजा में शामिल होने वाला कोई भी व्यक्ति बिना मास्क के नहीं जायेगा। ऐसा पाये जाने पर संबंधित एवं समिति के विरुद्घ वैधानिक कार्रवाई की जाएगी। मूर्ति स्थापित करने वाले व्यक्ति अथवा समिति एक रजिस्टर संधारित करेगी, जिसमें दर्शन के लिए आने वाले सभी व्यक्तियों का नाम, पता, मोबाइल नंबर दर्ज किया जाएगा ताकि उनमें से कोई भी व्यक्ति कोरोना संक्रमित होने पर कान्टेक्ट ट्रेसिंग किया जा सके।