शान्ति बहाली की कोशिश

0
234

जम्मू-कश्मीर पर बदली वैधानिक स्थिति से पाकिस्तान बौखलाया हुआ है। गुलाम कश्मीर में एलओसी मार्च की अपील के बाद जहां पाक पीएम इमरान खान ने पीओके में लोगों से सीमा पार ना करने की सार्वजनिक गुजारिश की, वही भारतीय फौजों की तत्परता ने भी घोषित मार्च की हवा निकाल दी। हालांकि पाकिस्तान की हरचंद यही कोशिश रहती है कि किसी तरह भारत के अभिन्न अंग जम्मू-कश्मीर में सियासी और समाजी स्थिरता ना आ सके । पर कश्मीर नेतृत्व लगातार कश्मीर के लिए वो सारे प्रयास कर रहा है, जिससे अमन के साथ विकास का मार्ग प्रशस्त हो सके। बड़े नेताओं को छोड़ दें तो अब पार्टियों के दूसरे दर्जे के नेताओं की नजरबंदी खत्म कर दी गयी है। तकरीबन दो महीने बाद नेशनल कांफ्रेंस के दूसरे पदाधिकारी अपने नेता फारुख अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला से मिल आए हैं। यह सरकार की तरफ से एक अच्छा प्रयास है। राज्य में सियासी माहौल को नई रंगत के इरादे से पंचायत चुनाव में सभी पार्टियों की भागीदारी बढ़ाने की पहल की जा रही है।

ताकि देश और दुनिया में कुछ ताकतें जो भ्रम फैला रही हैं, उन्हें निरुत्तर किया जा सके। फिलहाल सरकार की इस कोशिश पर एनसी के नेताओं का मलाल खत्म नहीं हुआ है पर कम जरूर हुआ है। इसी तर्ज पर पीडीपी के लोगों को भी अपनी नेता महबूबा मुफ्ती से मिलने का मौका मिलेगा। जम्मू-कश्मीर की यह पहल इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाओं में आरोप लगाया गया है कि बीते दो महीने से राज्य के बाशिंदे अपने घरों में नजरबंद हैं और सामान्य दिनचर्या बाधित हो गई है। इंटरनेट सेवाएं बंद किए जाने से लोग-बाग अपने लोगों से कटे हुए हैं। इस तरह उनके मौलिक अधिकार अभिव्यक्ति की आजादी पर पहरा लगा दिया गया है। इस पर कोर्ट ने राज्य और केन्द्र सरकार को चार हफ्ते में जवाब दाखिल करने का वक्त दिया है। हालांकि कोर्ट ने भी सरकार की इस मंशा से सहमति जताई है कि राष्ट्र की सुरक्षा के लिए उठाए गए कदमों को अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर पीछे नहीं हटाया जा सकता।

इसलिए राजनीतिक दलों के नेताओं पर से धीरे-धीरे पाबंदी हटाने का सिलसिला शुरू हुआ है ताकि स्थानीय पंचायत चुनावों में उनकी भागीदारी से पाकिस्तान को भी एक कड़ा संदेश दिया जा सके। जहां तक पार्टी के बड़े नेताओं की नजरबंदी खत्म किए जाने का सवाल है तो उसमें अभी वक्त लग सकता है। इसी 31 अक्टूबर को राज्य का पुनर्गठन पाकिस्तान को इसलिए भी नागवार गुजरती है कि आने वाले वर्षों में जम्मू-कश्मीर के बेहतर सियासी समाजी हालात का पीओके पर असर पड़ सक ता है। यदि उनकी मांग भारतीय प्रक्षेत्र का हिस्सा बनने के लिए उठी तो पाकिस्तान के सारे किए कराए पर पानी फिर जाएगा। उनकी शंका इसलिए भी निर्मूल नहीं है कि जिस तरह पीओके की जनसंख्यकीय स्थिति बदली जा रही है। उससे पाक अधिकृत कश्मीर के बाशिंदे पाक हुक्मरानों से खुश नहीं है। इसके अलावा चीन को उसी प्रेक्षेत्र का एक हिस्सा बिना विश्वास में लिए दिए जाने की भी पीड़ा पीओके के बाशिंदों को है। जिस पर भारत शुरू से यह मानता आया है कि पीओके भारत का हिस्सा है। इन स्थितियों में नक्शे का स्वरूप बदल सकता है। यह आशंका पाक पीएम इमरान खान को ही नहीं, फौज को भी सता रही है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here