शर्मनाक! टीम हारी- धंधा जीता!

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क्रिकेट विश्वकप के फाइनल मैच में अंपायर, तीसरे अंपायर, मैच रेफरी, आयोजक, क्रिकेट का धंधा चलाने वाली आईसीसी आदि सबने मिल कर जो किया है, उसने भलेमानुषों का खेल कहे जाने वाले क्रिकेट की गरिमा को तार-तार कर दिया है। मेजबान इंग्लैंड को चैंपियन बनाने के लिए सारे नियम और नैतिकता किनारे कर दिए गए। इस आधार पर कि अपनी पारी में इंग्लैंड ने ज्यादा चौके-छक्के मारे हैं, उसको क्रिकेट का विश्व विजेता घोषित कर दिया गया। यह शर्मनाक है। खेल में जीत-हार हमेशा खेल के आधार पर होनी चाहिए, किसी जोड़-तोड़ के आधार पर नहीं।

क्रिकेट का मक्का कहे जाने वाले लॉर्ड्स में रविवार को जब मेजबान इंग्लैंड को चैंपियन बनाने के लिए जोड़-तोड़ का जब खेल हो रहा था तो उसी समय लॉडर्स से थोड़ी ही दूरी पर विंबलडन के इतिहास का सबसे लंबा फाइनल खेला जा रहा था। इस मैच में दो महान खिलाड़ियों- रोजर फेडरर और नोवाक जोकोविच ने इंसान के अंदर की सबसे बेहतरीन प्रतिभा, योग्यता और क्षमता का प्रदर्शन किया। लगभग पांच घंटे तक चले इस मैच का फैसला अंततः खेल के आधार पर ही हुआ। इस आधार पर नहीं हुआ कि फेडरर ने ज्यादा एसेज मारे हैं या फेडरर ने ज्यादा विनर्स मारे हैं या फेडरर ने कम फॉल्ट किए हैं। इन सारे पैमानों पर जोकोविच बहुत पीछे थे। पर अंत नतीजे में जोकोविच ने ज्यादा गेम जीते और इसलिए मैच भी जीता।

फुटबाल के खेल में भी मैदानी गोल बराबर रहे तो अतिरिक्त समय दिया जाता है। अतिरिक्त समय में भी फैसला नहीं हुआ तो पेनाल्टी कार्नर दिया जाता है और उसके बाद सडन डेथ के जरिए फैसला होता है। यानी फैसला गोल की संख्या के आधार पर ही होता है। यह नगर निकाय या विधानसभा का चुनाव नहीं है, जो वोटों की संख्या बराबर हो जाने पर टॉस के जरिए फैसला कराया जाए। फिर क्यों क्रिकेट के मक्का में मेजबान को चैंपियन बनाने के लिए ऐसा जोड़ तोड़ किया गया, जिसकी मिसाल नहीं रही है?

पचास-पचास ओवर के मैच में दोनों टीमों- इंग्लैंड और न्यूजीलैंड ने बराबर स्कोर किया। मैच के बाद नतीजा निकालने के लिए सुपर ओवर का विकल्प आजमाया गया। उसमें भी दोनों टीमों का स्कोर बराबर रहा। अगर निष्पक्ष तरीके से नतीजा निकालने की सोच होती तो उसका सबसे उपयुक्त आधार यह हो सकता था कि 241 रन बनाने में जिस टीम के कम विकेट गिरे हैं वह विजेता होगी। इस आधार पर न्यूजीलैंड की टीम विजेता होती। उसने 50 ओवर में आठ विकेट के नुकसान पर 241 का स्कोर बनाया था, जबकि इस स्कोर तक पहुंचने में इंग्लैंड की पूरी टीम आउट हो गई। सो, इस आधार पर जीत-हार का फैसला करना था।

पर हैरानी की बात है कि इसकी बजाय यह पैमाना बनाया गया कि जिस टीम ने ज्यादा चौके-छक्के मारे हैं वह जीतेगी! इससे ज्यादा बेहूदा पैमाना नहीं हो सकता है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि इंग्लैंड की टीम ने पूरे टूर्नामेंट में शानदार प्रदर्शन किया। उसने जिस अंदाज में सेमीफाइनल में पांच बार की चैंपियन ऑस्ट्रेलिया को हराया वह बेमिसाल था। इस टूर्नामेंट में अपने प्रदर्शन के आधार पर इंग्लैंड विश्व विजेता बनने की स्वाभाविक दावेदार टीम थी। पर क्रिकेट को तो गौरवशाली अनिश्चितता का खेल कहा जाता है और जिस दिन जो टीम अच्छा खेलती है वह जीतती है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि फाइनल मुकाबले में न्यूजीलैंड की टीम ने बेहतर खेल दिखाया था। उसने लक्ष्य तक पहुंचने में इंग्लैंड की पूरी टीम को आउट कर दिया था। उसे इस आधार पर विश्वविजेता का खिताब मिलना चाहिए था। पर चूंकि अब क्रिकेट सिर्फ खेल नहीं है और वह सिर्फ एक धंधा है सो, फैसला खेल के हिसाब से नहीं बल्कि धंधे के हिसाब से हुआ है।

अजित द्विवेदी
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं…

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