वैदिक ज्ञान पर अभिमान

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आज ‘पश्चिमी’ ज्ञान के अलावा शायद ही किसी ज्ञान को खोजने लायक समझा जाता है। यह दुखद है कि पढ़े-लिखे लोग यही सोचते हैं और मुझे यह कहने में शर्म नहीं है कि मैं भी उनमें से ही था। लेकिन हमारी वैज्ञानिक विरासत के बारे में मेरी गलतफहमी जल्द दूर हो गई जब मेरे बॉस एम वेंकटरमन ने मुझे 942 पन्नों की एक किताब भेंट की, जिसकी कीमत 126 डॉलर है। यह देते हुए उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि तुम यह किताब रखने के लिए सही व्यक्ति हो।’ तब से मैं यह किताब कई बार पढ़ चुका हूं और रोजाना दो पेज पढ़ता ही हूं। एमएस श्रीधरन द्वारा लिखित ‘भारतीय विज्ञान मंजुषा-ट्रेजऱ ट्रोव ऑफ एंशियंट इंडियन साइंसेस’ भारतीय विज्ञानों का पहला एनसायलोपीडिया है। यह रही उसकी एक झलक। वैदिक ज्ञान के मूलस्रोत अगस्त्य ऋषि ने कहा है कि दुख या चिंता या अन्य कारण से इंसान को मिलने वाले घाव, चोट या विकृति का इलाज ‘वर्मा कलाई’ उपचार से हो सकता है। हड्डियों, नसों, मांसपेशियों, धमनियों और शरीर के अन्य अंगों की कार्यप्रणाली समझने के अध्ययन को ‘वर्मा कलाई’ कहते हैं। इस तंत्र के हिसाब से 108 वर्मा बिंदुएं हैं और जब ये बिंदु प्रभावित होते हैं, शरीर के संबंधित हिस्से में पीड़ा होती है, जिससे कोई समस्या होती है। वर्मा के ज्ञान से उस युग के कई ‘सिद्धों’ को शरीर के प्रबंधन की क्षमता मिली थी। वर्मा दवाएं वायु की महत्वपूर्ण भूमिका पर आधारित होती हैं क्योंकि इसमें बिजली जैसी ताकत होती है। वे सिर से लेकर एड़ी तक, नर्वस सिस्टम के जरिए पूरे शरीर में संचालित होते हैं। मांस और हड्डियों से बनी बनावटों के संपर्क में आकर वायु सभी क्रियाओं को दिशा देती है। इस तरह तथा-कथित ऊर्जा दरअसल गैस हैं, अदृश्य रसायन। वे तरल पदार्थों संग घोल बनाती हैं और सूखने पर क्रिस्टल बन जाती हैं।

यानी वायु मानव शरीर की मुख्य उत्प्रेरक है और हमारी सभी गतिविधियों के लिए जिमेदार है। हमारे जीवन को नियंत्रित करने वाली 10 वायु में तीन महत्वपूर्ण हैं। 1. ‘धनंजय वायु’ गर्दन के ऊपर और सिर में होती है, जो नर्वस सिस्टम तथा मानसिक प्रक्रिया नियंत्रित करती है। कहते हैं कि मृत्यु के तीन दिन बाद तक यह शरीर में रहती है। यह जोडऩे वाली ऊर्जा प्रदान करती है, जो आंतरिक और बाहरी अंगों के अणुओं को जोड़े रहती है और जीवित शरीर को अक्षुण्ण रखती है। 2. ‘प्राण वायु’ नाभि के ऊपर होती है। इसके बिना कोई और वायु शरीर में नहीं रह सकती। यह फेफड़े और दिल नियंत्रित करती है। 3. ‘अपान वायु’ नाभि के नीचे होती है और पेट में सक्रिय होती है। यह मलत्याग की क्रिया और मूत्राशय तथा गर्भाशय की क्रियाओं में मदद करती है। इसीलिए सिद्ध भोजन को ऐसे प्रबंधित करते थे, जो शरीर को ऊर्जा (गैस) देने वाले हों। इस किताब को याद करने का कारण यह है कि इस हफ्ते गुजरात टेनोलॉजिकल यूनिवर्सिटी (जीटीयू) ने घोषणा की है कि जीटीयू से संबद्ध कॉलेजों में पांचवें, छठवें और सातवें सेमेस्टर के छात्रों को नए अकादमिक सत्र से संस्कृत, वैदिक गणित, योग और भारतीय पारंपरिक ज्ञान तंत्र पढ़ाया जाएगा। नई शिक्षा नीति में अंतर्विषयक पढ़ाई का प्रावधान है और यह उस ओर पहला कदम है। पूर्वजों के ज्ञान को पाकर छात्र न सिर्फ अपनी जड़ों को जानेंगे बल्कि विषय का ज्ञान भी मजबूत होगा। फंडा यह है कि कई वैदिक ज्ञान पढऩे से व्यक्ति न सिर्फ ज्ञानी बनता है, बल्कि उसे गहराई में जाने में और भविष्य में विशेषज्ञ बनने में भी मदद मिलती है।

महिलाओं के काम का मोल ज्यादा: अगर आप एक महिला हैं, जो खुद का परिचय ‘मैं तो बस हाऊसवाइफ हूं’ कहकर देती हैं या आप किसी ऐसे व्यक्ति से मिले हैं, जो खराब सेवा या कार्यकुशलता को सही ठहराने के लिए मजाक करता है कि ‘चार आने की चाय में मखी नहीं, तो या हाथी मिलेगा’, तो इसपर खुद की राय बनाने के लिए आपको इन जानकारियों की जरूरत है। हर महिला, जिसे कभी-कभी हम गृहणी कहते हैं, प्रतिदिन करीब 299 मिनट अपने परिवार के सदस्यों को अवैतनिक (जिनका भुगतान नहीं होता) घरेलू सेवाएं देती हैं। जबकि पुरुष ऐसे काम 97 मिनट करते हैं। इसी तरह, प्रतिदिन महिलाएं 234 मिनट अवैतनिक देखभाल सेवाओं पर खर्च करती हैं, जबकि पुरुष 76 मिनट की सेवाएं देते हैं। इन गतिविधियों पर रोजाना खर्च होने वाला कुल वक्त भारत में यह तस्वीर स्पष्ट करता है कि महिलाएं प्रतिदिन क्रमश 16.9 फीसद और 2.6 फीसद समय अवैतनिक घरेलू सेवाओं और परिवार के सदस्यों की देखभाल सेवाओं पर खर्च करती हैं। जबकि पुरुषों के लिए यह आंकड़ा 2 फीसद से भी कम है। ये आंकड़े राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा ‘टाइम यूज इन इंडिया-2019’ शीर्षक के तहत जारी किए गए हैं।

इस मंगलवार सुप्रीम कोर्ट के जज एनवी रमण और जज सूर्य कांत ने इसका जिक्र करते हुए कहा कि घर में महिलाओं के काम का मोल उनके ऑफिस जाने वाले पति से कम नहीं है। साथ ही कोर्ट ने उस दंपती के रिश्तेदारों का मुआवजा बढ़ा दिया, जो दिल्ली में अप्रैल 2014 में मारे गए, जब उनकी स्कूटर को कार ने टक्कर मार दी थी। जस्टिस रमण ने कहा, ‘एक व्यक्ति, जो आमतौर पर महिला ही होती है, का घरेलू कार्यों में इतना ज्यादा समय और मेहनत लगती है कि उसे देख आश्चर्य नहीं होता क्योंकि होममेकर (घर के काम करने वाले/वाली) को ढेरों काम होते हैं। होममेकर के पास असर पूरे परिवार के लिए खाना बनाना., किराना और अन्य जरूरी चीजें खरीदना, घर साफ और व्यवस्थित रखना, सजावट करना, सुधार और मेंटेनेंस के कार्य करना, बच्चों की जरूरतें पूरी करना और न जाने कितने काम होते हैं।’ उन्होंने कहा कि ग्रामीण परिवारों तो में वे असर कटाई, बुवाई और जानवरों की देखभाल आदि भी करती हैं। कोर्ट ने कहा कि इसलिए होममेकर के लिए अनुमानित आय तय करने का मुद्दा एक जरूरी कारक है और यह उन असंख्य महिलाओं को पहचान देता है, जो मर्जी से या सामाजिक/सांस्कृतिक नियमों के कारण इस गतिविधि में लगी हैं।

इसी दिन, प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि आज दुनिया सस्ते और टिकाऊ उत्पादों की तलाश में है। उन्होंने कहा कि ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान, मात्रा और स्तर के दो सिद्धातों पर टिका है। उन्होंने कहा, ‘हम ज्यादा बनाना चाहते हैं। साथ ही हमें गुणवत्तापूर्ण उत्पाद बनाने हैं। भारत केवल अपने उत्पादों से बाजारों को भरना नहीं चाहता, बल्कि हम चाहते हैं कि भारतीय उत्पाद दुनियाभर के लोगों के दिल में जगह बनाएं। दुनिया बतौर राष्ट्र भारत पर भरोसा करती है। मैं निवेदन करता हूं कि आप जो भी उत्पाद या सेवा प्रदान करें, उसमें ‘जीरो डिफेट (शून्य खामी) के बारे में सोचें।’ सुप्रीम कोर्ट की राय और प्रधानमंत्री का बयान हमारे समाज को स्पष्ट संकेत देता है कि इस देश का कानून और अदालतें मानती हैं कि होममेकर्स के बलिदान और उत्पादों या सेवाओं में ‘जीरो डिफेट’ से ही दुनिया हमें स्वीकारेगी। यही सिद्धांत परिवार और आगे जाकर राष्ट्र को मजबूत बनाएंगे। फंडा यह है कि इस देश के हर व्यक्ति को इन दो मतों को गंभीरता से लेना चाहिए क्योंकि एक हमारे परिवार को मजबूत कर खुशी देता है और दूसरा हमारे देश को आर्थिक व सांस्कृतिक रूप से मजबूत बनाता है। और याद रखें कि कई खुश परिवार ही मिलकर देश को खुशहाल बनाते हैं।

एन. रघुरामन
(लेखक मैनेजमेंट गुरु हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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