वीआईपी फील हाय

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भारत में आम आदम की इज्जत वैसे दो कौड़ी की है यानी कौड़ी की ना कीमत भी कुछ ज्यादा ली लगा दी, इसलिए आम आदमी हर उस जगह से जबर्दस्ती इज्जत खींचने के चकर में रहता है, जी वह इज्जत की रहजनी टाइप कुछ कर सके। दामाद अपने ससुराल में इज्जत पाते हैं आम तौर पर कुछ इस तरह से जैसे रहजनों के हवाले ज्वेलरी कर दी जाती है, कहीं ज्यादा नुकसान ना पहुंचा दो इज्जत आम तौर पर भारत में छीनी ही जाती है। ऐसे में कोई यह कह दे कि मिस यू तो लगता है कि हाय कितने वीआईपी टाइप हो लिए हैं हम। मोबाइल में मैसेज आया उस वख कंपनी का, आशय था कि हाय आप 543 दिनों से कुछ खरीदने हमारी वेबसाइट पर नहीं आए। कोई तो मिस करता है आपको, यह पता लगता है तो बंदे की निगाह में अपनी इज्जत थोड़ी बढ़ जाती है। तकनीक ने बहुत खेल कर दिए हैं, 543 दिनों से नहीं गया उस वेबसाइट पर, उस कंपनी को मालूम है। पत्नी, प्रेमिका भी इस स्तर का कैलकुलेशन नहीं रखती कि आखिरी बार आपने आई लव यू 564 दिनों पहले बोला था। सही है जी। कामधंधा करने वालों से बड़ा प्रेमी कोई नहीं होता। कोई है जो मिस करता है।

हमारी औकात तब ही है, जब तक हम खरीदते हैं। बंदे को कोई मिस नहीं करता, ग्राहक को निस करते हैं, यह बाजार का, दुनिया का सत्य है। मेरे बर्थडे पर वो इंश्योरेंस कंपनियां मेल के जरिये हैप्पी बर्थ डे बोलती हैं, जिनसे मैंने इंश्योरेंस पालिसी खरीदी है। शादी के पांच सात साल बाद ते पत्नी भी बर्थ डे पर शुभकामनाएं नहीं देती, इंश्योरेंस कंपनियां यों दे रही हैं। हिंदी लेखक को आम तौर पर सितंबर के हिंदी दिवस के आसपास मिस किया जाता है, भाव यही रहता है कि बुला लाओ किसी हिंदी वाले को शॉल वगैरह देकर निपटाएं। हिंदी दिवस के अलावा हिंदी के लेखक मिस नहीं किया जाता। दिनों की गिनती बताकर मिस कर रहा है कोई। हाय कितने वीआईपी हुए हमा तकनीक इस कदर मारक हो गई है कि कोई नासमझ हो तो खुद को वीआईपी टाइप समझने लगे। यह समझने लगे कि हम कितने बड़े और महत्व पूर्णकस्टमर हैं उस कंपनी के, हमको मिस करते हैं कंपनी वाले। कोई किसी को मिस नहीं करता, कामधंधे के मुनाफे को मिस करते हैं, तो हमें मिस कर लेते हैं, यह ज्ञानही सत्य है, पर इस सच को समझने से बंद की वैल्यू खुद की निगाह में गिर जाती है।

हमारी औकात तब ही है, जब तक हम खरीदते हैं। बंदे को कोई मिस नहीं करता, ग्राहक को निस करते हैं, यह बाजार का, दुनिया का सत्य है। मेरे बर्थडे पर वो इंश्योरेंस कंपनियां मेल के जरिये हैप्पी बर्थ डे बोलती हैं, जिनसे मैंने इंश्योरेंस पालिसी खरीदी है। शादी के पांच सात साल बाद ते पत्नी भी बर्थ डे पर शुभकामनाएं नहीं देती, इंश्योरेंस कंपनियां यों दे रही हैं। कोई दिल पेनाले, तकनीकी मामला हैए सब रिकार्ड में होता हैए मशीन ही भेज देती है हैप्पी बर्थ डे। वैसे इंश्योरेंस कंपनियों के हैप्पी प्राफिट तबही मोटे होते हैं, जब तक ग्राहक हैप्पी बर्थ डे मनाकर जीवित रहे। ग्राहक निकललेए तो लेन देना पड़ जाता है। कुतें बेचने वाली कंपनी मिस कर रही है। वह होटल भी निस कर रहा है जो कोरोना काल के बाद खुला है, उस होटल ने ईमेल लिखकर बताया है कि खुल गया है होटल और हम आपको मिस कर रहे हैं, आपके बिना मन नहीं लग रहा है टाइप। चलो इस फानी दुनिया में कोई तो इज्जत बछा रहा है आम आदमी को।

आलोक पुराण्कि

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