विश्व-हिंदीः नौकरानी है, अब भी

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10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस था लेकिन क्या हिंदी को हम विश्व भाषा कह सकते हैं? हां, यदि खुद को खुश करना चाहें या अपने मुंह मियां मिट्ठू बनना चाहें तो जरुर कह सकते हैं, क्योंकि यह दुनिया के लगभग पौने दो सौ विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाती है (इनमें भारत के भी हैं), दुनिया के लगभग आधा दर्जन प्रवासी भारतीयों के देशों में किसी न किसी रुप में यह बोली और समझी जाती है। कई देशों में विश्व हिंदी सम्मेलन आयोजित होता रहा है। 1975 में प्रथम बार यह नागपुर में आयोजित हुआ है। लगभग 50 साल इस विश्व हिंदी सम्मेलन को आयोजित होते हुए हो गए लेकिन हिंदी की दशा आज भी भारत में नौकरानी की है। अंग्रेजी आज भी भारत की महारानी है और हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाएं उसकी नौकरानियां हैं। देश में कांग्रेस और विरोधी दलों की इतनी सरकारें पिछले 72 साल में बनी लेकिन किसी प्रधानमंत्री की हिम्मत नहीं पड़ी कि इस अंग्रेजी महारानी को उसके सिंहासन से नीचे उतारे। भाजपा और नरेंद्र मोदी को 2014 में हम इसीलिए लाए थे।

उनके लिए हमने अपना सारा अस्तित्व और संबंध दांव पर लगा दिए थे लेकिन इन पिछले साढ़े पांच वर्षों में हुआ क्या? सिर्फ संयुक्तराष्ट्र में हिंदी का भाषण मोदी और सुषमा ने पढ़ दिया बाकी हर जगह आपको हिंदी वैसी ही पायदान पर बैठी मिलेगी, जैसी वह लार्ड मैकाले के जमाने में बैठी हुई थी। कानून, चिकित्सा, इंजीनियरी, अंतरराष्ट्रीय राजनीति आदि किसी विषय की उच्च शिक्षा हिंदी या किसी अन्य भारतीय भाषा में नहीं होती न कोई शोध होता है। सरकार के फैसले, संसद के कानून, अदालतों के फैसले, मरीजों का इलाज- ये सब काम अंग्रेजी में होते हैं। देश में ठगी का यह सबसे बड़ा कारोबार है। मैं अंग्रेजी या किसी विदेशी भाषा को स्वेच्छया पढ़ने-पढ़ाने का पूर्ण समर्थक हूं लेकिन जब तक स्वभाषा में काम नहीं होगा, यह भारत एक नकलची, फिसड्डी और पिछलग्गू देश बना रहेगा। हम हिंदी को विश्व भाषा तो जरुर कहते हैं लेकिन हमें यह कहते हुए जरा भी शर्म नहीं आती कि भारत के प्रांतों के बराबर जो देश हैं उनकी भाषाएं तो संयुक्त राष्ट्र संघ में मान्य है और हिंदी को वहां घुसने की भी इजाजत नहीं है।

डा. वेदप्रताप वैदिक
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं )

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