आज यह खबर पढ़कर मुझे बहुत खुशी हुई कि भारत सरकार कई तरह के विदेशी माल मंगाना बंद करने वाली है। अकेले चीन से आने वाली 371 चीज़ों पर रोक लगाने वाली है। इन चीज़ों में बच्चों के खिलौने, दवाइयां, बिजली का सामान, तार, टेलीफोन, फर्नीचर, कुछ खानेपीने की चीजें आदि हैं। इन चीजों में से एक भी चीज़ ऐसी नहीं है, जिसके भारत में नहीं आने से भारतीयों का कोई बहुत बड़ा नुकसान हो जाएगा या उन्हें जान-माल की हानि हो जाएगी। ये सब चीजें अनावश्यक चीजों की श्रेणी में आती हैं। आप जानते हैं कि ये गैर-जरुरी चीजें कितने की आती हैं। कम से कम 4 लाख करोड़ रु. की यानि अरबों-खरबों रु. की। ऐसी चीजें हम अमेरिका और अन्य देशों से भी मंगाते हैं। हमारे देश की पसीने की कमाई के खरबों रु. विदेशों में बह जाते हैं। यदि इनका आयात बंद हो जाए तो यह बचा हुआ रुपया देश के खेतों और कारखानों की बेहतरी में लगाया जा सकता है। मैं तो कहता हूं कि सभी देशों से आने वाले अय्याशी के सामानों पर रोक क्यों नहीं लगाई जाती।
मुट्ठीभर लोग, जो अरबों रु. इन चीजों पर बहाते हैं, वे कौन हैं। वे लोग भारतीय नहीं हैं, वे इंडियन हैं। उनकी दुनिया ही अलग है। वे पश्चिम के उपभोक्तावादी समाज के नकलची हैं। संपूर्ण भारतीय समाज पिछले 30-35 साल से पश्चिम की नकल में बर्बाद हो रहा है। बड़ी-बड़ी कारें, खर्चीले स्कूल और अस्पताल, वातानुकूलित भवन, पांच सितारा होटलें और खर्चीली जिंदगी ने भारतीय जीवन पद्धति को डस लिया है। यदि भारत सरकार सादा जीवन और उच्च विचार के सिद्धांत पर चलकर भारत के घरों और बाजारों को नियंत्रित करेगी तो भारत का विकास समतामूलक और तीव्र होगा। हमारे लोग विदेशी वस्तुओं की टक्कर में बेहतर गुणवत्ता और कम कीमत पर अपना माल बनाने में सफ ल होंगे। भारत का निर्यात बढ़ेगा तो अर्थ-व्यवस्था को भी पटरी पर लाने में सुविधा होगी। इस मामले में भारत अगुआई करेगा तो पड़ौसी देश भी उससे कुछ सबक जरुर लेंगे।
डा़ वेदप्रताप वैदिक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)