वादे हैं, वादों का क्या !

0
213

अमेरिका के राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति चुनाव में जिस तरह से उम्मीदवार वादे कर रहे है उन्हें देख कर मुझे इस बात का डर लग रहा है कि चुनाव के बाद इन वादों का हश्र कहीं हमारे नेताओं के द्वारा किए गए वादों जैसा नहीं हो। जब डोनाल्ड ट्रंप पहली बार चुनाव लड़ रहे थे तब उन्होंने अमेरिका के पड़ौसी देश मैक्सिको से भारी तादाद में हो रही अवैध घुसपैठ के कारण दोनों देशों की सीमाओं पर दीवार बनाने की बात कही थी ताकि अमरीकी नागरिकों के रोजगार बचे। उनका मानना था कि बाहरी लोग कम वेतन पर ज्यादा काम करने के लिए तैयार हो जाते हैं जिससे अमेरिकी लोगों के लिए अच्छे वेतन पर काम नहीं मिलता है। अब वे अपना कार्यकाल खत्म होने पर दोबारा इस पद के लिए चुनाव लड़ने जा रहे हैं। मगर उन्होंने दीवार बनाना तो दूर उसे बनाने के लिए उसकी नींव तक नहीं खोदी। अब वे फिर नए हथकंडे अपना रहे हैं। उन्हें अमेरिका का नरेंद्र मोदी माना जाता है जो कि अति राष्ट्रवाद के प्रतीक हैं। याद दिला दे कि मोदी ने अपने पहले चुनाव प्रचार के बाद विदेशों में जमा काला धन भारत में लाने की बात कही थी। चुनाव जीतने के बाद इसके लिए एक समिति का गठन तक किया गया मगर उनका यह जुमला सही साबित करना तो दूर रहा कि अगर ऐसा होता है तो हर भारतीय के खाते में 15-15 लाख रुपए आ जाएंगे, वे आज तक एक रुपया भी ला पाने में सफल नहीं हुए। उलटे भारतीय बैंकों को चूना लगा कर अरबों रुपए लेकर भागने वाले नीरज मोदी से लेकर विजय माल्या सरीखे धनपशु हमारी गरीब जनता के हजारों करोड़ रुपए भारत से ले जाने में सफल हो गए।

हर लोकसभा व विधानसभा चुनाव के मौके पर तमाम दल व उनके उम्मीदवार जनता से तरह-तरह के वादे करते है। तब यह खबरें आती है कि उस क्षेत्र के लोग सड़क, पानी से लेकर पूलों तक के लिए तरस रहे हैं। जब बाढ़ आती है तब लोगों को अपनी जान हथेली पर रखकर रस्सी के अस्थायी पुलों से नदी पार करते हुए दिखाया जाता है। उनका कोई वादा कभी पूरा नहीं होता। दूसरे शब्दों में वे चांद सितारे तोड़ कर लाने की बातें करते हैं। कई बार मुझे लगता है कि उनके वादे प्रधानमंत्री द्वारा गुजरात व मुंबई के बीच बुलेट ट्रेन चलाने जैसे है जिन्हें पूरा कर पाना तो दूर रहा उनको पूरा करने के सपने देखना भी उचित नहीं होगा। मुझे आज जाने माने कांग्रेसी ब्रजमोहन जी की कमी बहुत सता रही है। मैं कानपुर से दिल्ली आया था तो राजनीति से कुछ लेना देना नहीं था। वे मुझे यूनाइटेड काफी हाउस बुलाकर काफी पिलाते व एक फिलासफर व गाइड की तरह मेरा मार्गदर्शन करते। वे वामपंथी कांग्रेसी थे मगर उनके विचार व सलाह निष्पक्ष होती थी। एक बार उन्होंने नेताओं के बारे में मुझे बताया कि काफी समय पहले दिल्ली में चीनी घोटाला हो गया। हंगामा होने पर मेट्रोपोलिटियन काउंसिल के तत्कालीन चीफ एक्जीक्यूटिव काउंसलर राधारमण ने कहा कि इस घोटाले में अगर मेरा बाप भी शामिल हुआ तो मैं उसको भी नहीं बख्सूगां। बाद में घोटाले में शामिल लोगों को गिरफ्तार करने के बाद उन्हें जल्दी रिहा कर दिया गया। तत्कालीन विपक्षी दल जनसंघ ने पूरी दिल्ली में लगा दिए जिनमें तस्वीर के साथ उनका यह बयान भी छपा था व नीचे लिखा था कि मैंने सभी दोषियों को बरी कर दिया क्योंकि वे मेरे बाप नहीं थे।

यह घटना हमारे नेताओं के राजनीतिक चरित्र को बताती है। दिवंगत राजेश पायलट एक बार मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान जब वहां प्रचार कर रहे थे तो अपनी हर सभा में किसानों को संबोधित करते हुए कहते थे कि हम सत्ता में आने पर दिल्ली की तरह उन्हें किसान कार्ड देंगे व उन्हें दिखाकर बैंकों से बिना किसी गिरवी के लाखों रुपए तक कर्ज दे देंगे। जब एक बार मैंने उनसे सफर के दौरान उन किसान कार्डों के बारे में पूछा तो वह कहने लगे कि चुनाव का माहौल है व मुझे किसानों को लुभाने के लिए कुछ न कुछ तो कहना ही है। यह तो महज एक जुमला है। मैं उनकी बातें सुनकर दंग रह गया। असल में हमारा देश महज चुनावी वादों पर चलता आया है। इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओं का नारा देकर सत्ता हासिल कर ली व जब जनता पार्टी के शासनकाल में उसके साथी दलों के बीच आपसी टकराव के कारण सरकार गिरी तो उन्होंने नारा दिया था कि चुनिए उन्हें जो सरकार चला सके और जनता पार्टी के अंदरुनी झगड़ो से आजिज आ चुके लोगों ने उन्हें पुनः सत्ता में लाना बेहतर समझा। वैसे हमारे देश में जाति व धर्म पर आधारित चुनाव होते आए हैं। दुखद बात है कि हमारे देश में शायद ही कभी विकास चुनावी मुद्दा रहा हो। चुनाव घोषणा पत्र के बारे में देवीलाल कहा करते थे कि इसका कोई अहम मतलब नहीं होता। किसी भी पार्टी का चुनाव घोषणा पत्र का पहला पन्ना फाड़कर उस पर अपनी पार्टी का नाम चिपका लो। सारे घोषण पत्र एक जैसे ही होते हैं व चुनाव के बाद इस पर कोई भी दल अमल नहीं करता है।

शायद यही वजह है कि चुनाव के दौरान एक दूसरे को गरियाते आए विभिन्न दल किसी एक को बहुमत न मिलने पर एकजुट होकर सरकार बनाने के लिए तैयार हो जाते है। महाराष्ट्र इसका नवीनतम उदाहरण है। मुझे याद है जब हरियाणा में देवीलाल न्याय युद्ध के दौरान जनसभाएं कर रहे थे तो उसमें वे बड़ी बड़ी बातें करते थे। वे कहते थे कि यह भजनलाल पूछता है कि मैं मुख्यमंत्री बनने पर किसानों का बैंक कर्ज कैसे माफ कर दूंगा? मैं उसे बताना चाहता हूं कि ये आईएएस अफसर किसलिए है जो मोटी तन्खा व मकान, गाड़ी जैसी सुविधाएं मुफ्त में पाते है। मैं मुख्यमंत्री बनते ही मुख्य सचिव को बुलाकर कहूंगा कि मेरा आदेश टाइप करके लाए कि सारे किसानों के सभी बैंक कर्ज माफ व उसके नीचे दस्तखत करुंगा कि देवीलाल। कैसे करवाना है यह काम मेरा नहीं अफसर शाही का है। हमने उन्हें किसलिए पाला हुआ है। इसी जवाब में भजनलाल ने चुनाव सभाओं में एक किस्सा सुनाया कि एक बार ताऊ देवीलाल की भैंस चोरी हो गई व उनका बेटा ओमप्रकाश चौटाला ढूंढने निकला। रास्ते में शिवजी का मंदिर आया तो देवीलाल ने हाथजोड़ कर कहा कि अगर मेरी भैंस मिल गई तो उससे एक थन का दूध आपको चढ़ाउंगा। रास्ते में हुनमानजी, लक्ष्मीजी, सरस्वती आदि के मंदिर आए व उन सभी देवी देवताओं से यही वादा किया। इस पर चौटाला ने उसे टोकते हुए कहा कि बापू यहीं से वापस मुड़े ले। तू तो चारों थनों का दूध भगवानों पर चढ़ाने का वादा कर चुका है। अगर भैंस मिल गई तो वह हमारे किस काम की। सारा दूध तो देवी देवता पी जाएंगे। इस पर देवीलाल ने उससे कहा कि तू चुपचाप भैंस ढूंढ। अगर एक बार भैंस मिल जाए तो इन भगवानों से तो मैं निपट लूंगा। कई बार मुझे आशंका होती है कि कही अमेरिका में ट्रंप व जो बाइडेन वहां के देवीलाल न साबित हो।

विवेक सक्सेना
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here