योगी सरकार ने प्रदर्शनों के दौरान सरकारी निजी संपत्ति के नुकसान के लिए बड़ा कदम उठाया है। नई व्यवस्था में वसूली के लिए लेम ट्रिब्यूनल, आरोपी का नाम और फोटो को प्रचारित भी किया जा सकेगा। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इसीलिए आरोपियों के पोस्टर सार्वजनिक स्थानों पर लगे होने को लेकर सख्त ऐतराज जताया था और 16 मार्च तक इस पर सरकार से कार्रवाई की प्रगति रिपोर्ट लेकर पेश होने को कहा था। इस बीच सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का भी दरवाजा खटखटाया और अपनी बात रखी, लेकिन सवाल यही था कि ऐसा कोई कानून है जिसके आधार पर वसूली के लिए सार्वजनिक स्थानों पर पोस्टर चस्पा किया जा सकता है, शायद नहीं इसीलिए सरकार ने कैबिनेट में इस आशय का पिछले दिनों प्रस्ताव पास किया। विधानसभा मे कानून बनाने की प्रक्रिया तक यह अध्यादेश के माध्यम से प्रभावी हो सकेगा। कोर्ट इस पर या रूख अपनाता है, यह देखने वाली बात होगी।
फिलहाल तो जिन प्रावधानों का उल्लेख किया गया है, उससे जाहिर है भविष्य में कोई भी दल, संगठन या समुदाय सरकारी और निजी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने से पहले सौ बार सोचेगा। लोकतंत्र मे यह किसी भी समाज और व्यवस्था की जीवंतता का सुबूत होता है। कई बार इसी रास्ते से नई बातें समाज और सरकार में स्वीकृति पाती हैं। लेकिन इसके लिए अपनी ही सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाना किसी भी दृष्टि से जायज नहीं ठहराया जा सकता है। देश में कई बार हिंसक प्रदर्शनों में अरबों की संपत्ति को नुकसान पहुंच चुका है। अगर अब तक के प्रदर्शनों में हुई क्षति का आकलन करें तो यह आंकड़ा खरबों में पहुंचता है। यह विचार किये जाने की जरूरत है कि ऐसे तबाही मचाने वाले प्रदर्शनों में हुई क्षति का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष करों के रूप में हम सबको भुगतान करना पड़ता है। सरकार दबाव में आती है या नहीं, कोई सत्ता से अपदस्थ होता है या नहीं यह महत्वपूर्ण नहीं रह जाता।
नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ यूपी समेत कई राज्यों में प्रदर्शनों का मतलब ही रहा सरकार संपत्ति को नुकसान पहुंचाना उसमें आमनागरिकों की संपत्तियां भी खाक हुईं। पर खासतौर पर यूपी में योगी सरकार की सख्ती के बाद असर यह हुआ कि कानून से असहमत वर्ग को आंदोलन का तरीका बदलना पड़ा। तो सख्ती का असर होता ही हैं। दिल्ली दंगों में हुए नुकसान को लेकर गृहमंत्री अमित शाह ने भी बीते दिनों राज्य सभा में चर्चा के दौरान साफ किया कि आरोपियों से ही नुकसान की भरपाई भी होगी। आजाद भारत में अपनी बात रखने के तरीकों पर विचार करने की जरूरत है। इसमें निश्चित तौर पर योगी सरकार की हाल में हुई साहसिक पहल मिसाल हो सकती है। दूसरे राज्य भी इस अपनाने के लिए आगे आ सकते हैं। इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि कानून-व्यवस्था की राह में हिंसा और तोडफ़ोड़ एक बड़ी चुनौती है। इससे निपटने के लिए नए कानून की दरकार थी। योगी सरकार ने इस दिशा में कदम बढ़ाया है।