लाल किले के सामने दीवार

0
166

भारतीय जनता पार्टी की सरकार और उसकी पुलिस को लगता है कि दीवार खड़ी करने का बहुत शौक और अनुभव हो गया है। अमेरिका के राष्ट्रपति गुजरात के दौरे पर गए थे तो झुग्गियों को छिपाने के लिए दीवार खड़ी कर दी गई थी। आंदोलनकारी किसानों को रोकने के लिए दिल्ली पुलिस ने जो दीवार खड़ी की थी उसकी मिसाल नहीं है। भारत की सबसे विवादित सीमा पर भी वैसे बंदोबस्त नहीं हैं, जैसे किसानों को रोकने के लिए किए गए थे। अब पुलिस लाल किले की घेराबंदी कर रही है। लाल किले के सामने के हिस्से में कंटेनर खड़े करके ऐसी दीवार बनाई जा रही है कि लाल किले में घुसना तो दूर चांदनी चौक की ओर से कोई लाल किले की एक झलक भी नहीं देख पाए। ऐसा इसलिए किया जा रहा है कि कहीं किसान 26 जनवरी की तरह 15 अगस्त को भी लाल किले पर न पहुंच जाएं। हालांकि 26 जनवरी को भी किसान लाल किले तक अपने आप नहीं पहुंचे थे और न लाल किले पर हुड़दंग करने वालों का समूह किसानों का समूह था। दूसरी बात यह है कि किसानों ने 15 अगस्त को किसी कार्यक्रम या रैली वगैरह निकालने का ऐलान नहीं किया है।

फिर भी आजादी दिवस के समारोह से पहले लाल किले के सामने दिवार खड़ी की जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 15 अगस्त को आठवीं बार लाल किले से झंडा फहराएंगे। उसमें कोई खलल न हो इसके लिए पुलिस ने अभूतपूर्व सुरक्षा बंदोबस्त शुरू किए हैं। ड्रोन आदि का उडऩा पहले ही बंद कराया जा चुका है। वैसे भी मोदी राज में जो गलतियां हों- चाहे वह कोरोना महामारी को ना संभाल पाने की हो या टीकाकरण में धीमी रतार या किसी अन्य क्षेत्र में- तो उसके लिए दोषी कोई और होता है। असर राज्यों पर ठीकरा फोड़ा जाता है। तो अब केंद्र ने कहा है कि 66-ए को रद्द करने के फैसले को लागू करवाने की जिम्मेदारी राज्यों की है। अगर ओलिंपिक खेलों में खिलाड़ी उपलब्धियां हासिल करें, तो उसका श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जाता है! टोयो ओलिंपिक खेलों में जब मीराबाई चानू ने रजत पदक जीता, तो उनके स्वागत में आयोजित समारोह में लगाए गए बैनर पर इस सफलता के लिए प्रधानमंत्री का आभार जताया गया था।

लेकिन जो गलतियां हों- चाहे वह कोरोना महामारी को ना संभाल पाने की हो या टीकाकरण में धीमी रतार या किसी अन्य क्षेत्र में- तो उसके लिए दोषी कोई और होता है। कभी जवाहर लाल नेहरू होते हैं, कभी विपक्ष और असर राज्य सरकारों पर ठीकरा फोड़ा जाता है। तो अब केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा धारा 66-ए को रद्द करने के फैसले को लागू करवाने की जिम्मेदारी राज्यों की है। 2015 में रद्द की गई आईटी ऐट की धारा 66-ए के बारे में केंद्र सरकार ने कहा है कि राज्यों को बार-बार इस बारे में सलाह दी जा चुकी है कि इस धारा के तहत दर्ज किए गए सारे मामले रद्द किए जाएं। एक जन हित याचिका में सुप्रीम कोर्ट का ध्यान इस ओर दिलाया गया था कि उसके फैसले के बाद भी 66-ए के तहत हजारों मामले दर्ज हुए हैं।

मगर इतने संवेदनशील मामले पर जवाब देने के लिए केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने वैज्ञानिक नौकरशाह को कोर्ट में भेजा। उस वैज्ञानिक ने कहा कि वह गृह और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालयों से मिली जानकारी के आधार पर जवाब दाखिल कर रहे हैं। ये प्रकरण ही इस मामले में सरकार के नजरिए को स्पष्ट कर देता है। सोशल मीडिया से जुड़े तमाम मामलों में कार्रवाई के सूत्र केंद्र के हाथ में हैं। ट्विटर के खिलाफ जंग की कमान उसने संभाली हुई है। लेकिन जहां गलतियां हुईं, वो राज्यों का दोष है! सवाल है कि अगर राज्य गैरकानूनी काम कर रहे थे, तो केंद्र ने उसका संज्ञान क्यों नहीं लिया? उसने उन्हें एडवाइजरी क्यों नहीं भेजी? अगर भेजी को उसका फॉलोअप क्यों नहीं किया? आज के दौर में ऐसे सवालों के जवाब मिलेंगे, इसकी उम्मीद किसी को नहीं होगी। सुप्रीम कोर्ट की अपनी सीमाएं हैं। बाकी सब कुछ सबके सामने है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here