रेल लेट : बेरोजगारों की परीक्षा की नकली डेट

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जब सरकार को पता रहता है कि ये बेरोजगार हैं और उनकी जेब में फूटी कौड़ी नहीं होती तो फिर रेल की भर्तियों के लिए सेंटर हजारों किमी दूर क्यों रखे जाते हैं? अगर सरकार अपनी रेलों को समय पर नहीं चला पाती तो फिर किस बिना पर बेरोजगार समय पर सेंटरों पर पहुंचे? इस बार भी ऐसा ही हुआ।।

मोदी सरकार को फैसले लेने का शौक है। सरकार है तो करने भी चाहिए। जनहित के ज्यादा करने चाहिए। जिस तरह आए दिन सरकार जश्न मनाती है उससे साफ झलकता भी है कि फैसले सही दिशा में हो रहे हैं ताकि जनता व देश की दिशा बेहतर हो। अगर सब कुछ बेहतर रो रहा है तो फिर लाख टके का सवाल यही है कि कुछ मामलों में सरकार के फैसले जमीन तक क्यों नहीं पहुंचते और कुछ फैसले सरकार बिना सोचे-समझे क्यों उठाती है?

जब सरकार को पता रहता है कि ये बेरोजगार हैं और उनकी जेब में फूटी कौड़ी नहीं होती तो फिर रेल की भर्तियों के लिए सेंटर हजारों किमी दूर क्यों रखे जाते हैं? अगर सरकार अपनी रेलों को समय पर नहीं चला पाती तो फिर किस बिना पर बेरोजगार समय पर सेंटरों पर पहुंचे? इस बार भी ऐसा ही हुआ। 21 जनवरी को रेलवे की परीक्षा थी, हजारों छात्रों को भुवनेश्वर जाना था। आनंद बिहार ट्रमिनल पर सब जमा थे।

ये आस लगाए हुए थे कि नंदनकानन एक्सप्रेस से सुबह 6:30 पर चले जाएंगे। आदतन रेल समय पर चलती नहीं। इस दिन ऐसा ही हुआ। आना था सुबह आई नौ घंटे लेट। दिल्ली से चलची गै दोपहर बाद तीन बजे। भुवनेश्वर पहुंचती है मंगलवार को सुबह 8:50 मिनट पर परीक्षा थी सुबह नौ बजे से। अब सोचिए सरकार ने क्या इनको स्पाइडरमैन समझ लिया है? जो ये उड़कर परीक्षा केन्द्र पर मिनटों में पहुंच सकते थे। वैसे भी किसी भी परीक्षा में एक घंटा पहले एंट्री लेनी होती है।

तो फिर रेलवे ने अपनी ही परीक्षा में हजारों बच्चों को वंचित क्यों किया? उनकी गुहार किसी ने भी सुनने की जहमत क्यों नहीं उठाई? क्यों नहीं ये विकल्प दिया गया कि परीक्षा फिर ले ली जाएगी? साफ है कि रेलवे जिम्मेदार है तो फिर महीनों की तैयारी और बेरोजगारी के देश में हजारों रुपए के खर्च के बावजूद परीक्षा ना देने का दंश आखिर छात्र ही क्यों झेले? क्यो रेल महकमे को इन बच्चों की परीक्षा दुबारा नहीं लेनी चाहिए? रेववे विभाग या रेल मंत्री या फिर प्रधानमंत्री क्या इस देश की जनता को बताएंगे कि इस मामले में किसकी गलती है? आखिर सेंटर हजारों किमी दूर क्यों रखे गए? इससे फायदा क्या होता है? क्या बेरोजगारों के किराए से ही रेलवे अपनी आमदनी बढ़ाएगा? ये केवल परीक्षा नहीं थी बल्कि रेलवे की वजह से बेरोजगारों की जिन्दगी ही छूट गई लेकिन जिन्दगी और भावनाओं से सरकार का क्या लेना-देना? उसे तो केवल तुगलकी फरमान सुनाने होते हैं। फिर चाहे किसी के अरमान की खत्म हो जाएं? वैसे भी ये सरकार सोशल मीडिया पर कुछ ज्यादा ही रहती है।

ज्यादा ना सही कुछ ही सोशल हो जाए तो बेहतर है। आए दिन ये सुझाव रेल मंत्री मांरते हैं कि कैसे रेलवे की आमदनी बढ़ाई जाए, रेलवे का बदलाव किया जाए? लेकिन क्या कभी रेल मंत्री को ये ख्याल नहीं आया कि रेल ही समय पर चलवा दो तो इससे बड़ा बदलाव रेलवे के इतिहास में और क्या हो सकता है? 24 घंटे रेल लेट होने से इनकी परीक्षा की जो डेट निकली है या कहा जाए कि ये परीक्षा में फेल हो गए हैं और वो भी मंत्री की वजह से तो फिर ऐसे में सरकार को क्या कहा जाए?

लेखक
डीपीएस पंवार

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