राहुल के विवादित बोल

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कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी एक बार फिर विवादित बयान देकर सियासी बखेड़े की वजह बन गये हैं। संसद में रेप संबंधी बयान को लेकर बीजेपी हमलावर है और कि कांग्रेस नेता माफी मांगें। स्मृति ईरानी और राजनाथ सिंह जैसे नेताओं ने मोर्चा संभालने के बाद खुद राहुल गांधी ने 2013 में पीएम मोदी के दिल्ली को रेप कैपिटल बताने वाले बयान का विडियो क्लिप जारी कर पलटवार किया है। उनका आरोप है कि नागरिकता विधेयक पास करके बीजेपी सरकार ने देश को हिंसा की आग में झोंक दिया है। आर्थिक मोर्चे पर पहले से बदतर स्थिति है और युवा बेरोजगार घूम रहा है लिहाजा इस सबसे ध्यान बंटाने के लिए बेबात बतंगड़ बनाने की कोशिश हो रही है। राहुल का यह आरोप बेबुनियाद नहीं है कि सीएबी के पारित होने के बाद से पूर्वोत्तर सुलग रहा है और अन्य राज्यों में भी, जहां बीजेपी की सरकार नहीं है,केन्द्र से तनातनी पैदा हो गई है।

हिंसा की वजह भले ही बेबुनियाद हो लेकिन असम, मिजोरम और मेघालय में विरोध के स्वर जिस तरह तीव्र हुए हैं, उससे कानून-व्यवस्था की बड़ी समस्या पैदा हो गई है। सवाल तो है, इतनी हड़बड़ी किसलिए थी? बिल के उद्देश्य को लेकर राज्यों के स्टेक होल्डरों के बीच जाया जाता। बिल को लेकर तस्वीर पहले से साफ होती तो मौजूदा हालात से बचा जा सकता था। भले ही, भ्रम पैदा करके कुछ ताकतें एक बदतर तस्वीर देश-दुनिया के सामने पेश करने में कामयाब होती दिख रही हैं लेकिन हर हाल में जमीनी हकीकत तो यही है और इसके लिए जिम्मेदार भी सरकार ही कहलाएगी। इसी तरह अर्थव्यवस्था को लेकर जो सवाल मोदी सरकार के सामने खड़े किये जा रहे हैं, उससे भला कैसे इनकार किया जा सकता है। अभी ताजा विकास दर का अनुमान 4.3 फीसदी जताया गया है। इसका मतलब यह ट्रेंड अभी आगे भी ऐसे ही रहने वाला है।

इस स्थिति में कौन निवेश करेगा ? जाहिर है, रोजगार सृजन नहीं हो पाएंगे। पहले से ही करोड़ों युवाओं को काम चाहिए। हर साल इस कतार 60.70 लाख नये युवा जुड़ रहे हैं। तो यह समस्या भी विकराल है, वत्त्की तौर पर भी इस सरकार के पास संतोषप्रद जवाब नहीं है। जहां तक महिलाओं पर अत्याचार का मामला है तो निच्श्रित तौर पर यह समस्या पार्टी लाइन से ऊपर उठकर देखने-समझने और कुछ सार्थक करने की है। पर दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि सारी पार्टियों को इस मुद्दे पर एक-सा रवैया है। यही वजह है कि राहुल गांधी अपने विवादित बयान का बचाव मोदी के 2013 के बयान को उद्धत करके है। ये नेतागण भूल जाते हैं कि क्या कह रहे है ? ऐसे गैर जिम्मेदार बयानों से दुनिया के भीतर देश के बारे में कैसी छवि बनती है यह भी फौरी सियासी फायदे के लिए हमारे नेतागण नहीं सोचते। यह निच्श्रित तौर पर बड़ी राजनीतिक गिरावट है।

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