रवि प्रदोष व्रत

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देवाधिदेव भगवान शिवजी
देवाधिदेव भगवान शिवजी

भगवान शिवजी की अर्चना से मिलेगा आरोग्य सुख एवं समृद्धि
रवि प्रदोष व्रत से होगी सौभाग्य की प्राप्ति

देवाधिदेव भगवान शिवजी की महिमा अपरम्पार है। भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त करने के लिए शिवपुराण में विविध व्रतों का उल्लेख है। भगवान शिवजी की प्रसन्नता के लिए किए जाने वाला प्रदोष व्रत कलियुग में अत्यन्त चमत्कारी माना गया है। प्रदोष व्रत से दुःख दारिद्र्य का नाश होता है। जीवन में सुख-समृद्धि खुशहाली आती है, साथ ही जीवन के समस्त दोषों का शमन भी होता है। प्रत्येक माह के दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि जो प्रदोष बेला में मिलती हो, उसी दिन प्रदोष व्रत रखा जाता है। अभीष्ट की पूर्ति के लिए 11 प्रदोष व्रत या वर्ष के समस्त त्रयोदशी तिथियों का व्रत अथवा मनोकामना पूर्ति होने तक प्रदोष व्रत रखने की मान्यता है। सूर्यास्त और रात्रि के सन्धिकाल को प्रदोषकाल माना जाता है। प्रदोष काल के उपास्य देव भगवान शिवजी हैं। कलियुग में हर आस्थावान व धर्मावलम्बी अपने संकटों का निवारण व मनोरथ की पूर्ति करने के लिए प्रदोष व्रत रखते हैं। प्रख्यात ज्योतिषिद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि इस बार 24 नवम्बर, रविवार को प्रदोष व्रत रखा जाएगा। मार्गशीर्ष कृष्णपक्ष की त्रयोदशी तिथि 23 नवम्बर, शनिवार को अर्द्धरात्रि के पश्चात 3 बजकर 43 मिनट पर लगेगी जो कि अगले दिन 24 नवम्बर, रविवार को अर्द्धरात्रि के पश्चात 01 बजकर 06 मिनट तक रहेगी। प्रदोष बेला में 24 नवम्बर, रविवार को त्रयोदशी तिथि मिल रही है, जिसके फलस्वरूप प्रदोष व्रत इसी दिन रखा जाएगा। प्रदोषकाल का समय सूर्यास्त से 48 मिनट या 72 मिनट तक माना गया है, इसी अवधि में भगवान शिवजी की पूजा प्रारम्भ करनी चाहिए।

ऐसे करें शिवजी को प्रसन्न – ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी के मुताबिक व्रतकर्ता को प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्ति होकर स्नान, ध्यान करके अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना के पश्चात अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, फल, गन्ध व कुश लेकर प्रदोष व्रत का संकल्प लेना चाहिए। सम्पूर्ण दिन निराहार रहते हुए सायंकाल पुनः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करके प्रदोषकाल में भगलान शिवजी की विधि-विधान पूर्वक पंचोपचार, दशोपचार अथवा षोडशोपचार पूजा-अर्चना करनी चाहिए। भगवान शिवजी का अभिषेक करके उन्हें वस्त्र, यज्ञोपवीत, आभूषण, सुगन्धित द्रव्य के साथ बेलपत्र, कनेर, धतूरा, मदार, ऋतुपुष्प, नैवेद्य आदि जो भी सुलभ हो, अर्पित करके श्रृंगार करना चाहिए। तत्पश्चात धूप-दीप प्रज्वलित करके आरती करनी चाहिए। परम्परा के अनुसार भगवान शिवजी के साथ ही जगतजननी पार्वतीजी की पूजा-अर्चना की जाती है। यथासम्भव स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूर्व दिशा या उत्तर दिशा की ओर मुख करके ही पूजा करने की मान्यता है। शिवभक्ति अपने मस्तक पर भस्म व तिलक लगाकर शिवजी की पूजा करें तो पूजा शीघ्र फलदायी होती है। भगवान शिवजी की महिमा में उनती प्रसन्नता के लिए प्रदोष स्त्रोत का पाठ एवं स्कन्दपुराण में वर्णित प्रदोषकाल कथा का पठन या श्रवण अवश्य करना चाहिए साथ ही व्रत से सम्बन्धित कथाएं सुननी चाहिए। महिलाएं एवं पुरुष दोनों के लिए समानरूप से प्रदोष व्रत फलदायी बतलाया गया है। व्रतकर्ता को दिन के समय शयन नहीं करना चाहिए। अपनी जीवनचर्या में शुचिता बरतते हुए व्रत को विधि-विधानपूर्वक करना शीघ्र फलदायी रहता है। अपनी सामर्थ्य के अनुसार ब्राह्मणों को दान करना चाहिए, साथ ही गरीबों व असहायों की सेवा व सहायता अवश्य करनी चाहिए, जिससे जीवन में भगवान शिवजी की कृपा हमेशा मिलती रहे।

वार (दिनों) के अनुसार प्रदोष व्रत का फल – ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी बनताया कि शास्त्रों के मुताबिक प्रदोष व्रत का प्रत्येक वार के अनुसार अलग-अलग फल मिलता है। जो इस प्रकार है- रवि प्रदोष – आयु, आरोग्य, सुख समृद्धि, सोम प्रदोश –शान्ति, रक्षा तथा आरोग्य व सौभाग्य में वृद्धि, भौम प्रदोष – कर्ज से मुक्ति, बुध प्रदोष – मनोकामना की पूर्ति, गुरु प्रदोष – विजय व लक्ष्य की प्राप्ति, शुक्र प्रदोष-आरोग्य, सौभाग्य एवं मनोकामना की पूर्ति, शनि प्रदोष – पुत्र सुख की प्राप्ति।

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