योगी सरकार के सरोकार

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कोविड-19 के मोर्चे पर यूपी की योगी सरकार की तत्परता और राज्य के संसाधनों का उचित समयबद्ध इस्तेमाल से देश में भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की एक अलग छवि बनी है। लॉकडाउन की शुरूआत में ही इस सरकार ने राज्य में दिहाड़ी मजदूरों के रोजगार ठप होने की दशा में उपजे आर्थिक संकट से उबारने के लिए मदद की घोषणा की। सीधे खाते में एक हजार रूपये की मदद की गई। कयुनिटी किचन के जरिए खाने-पीने का इंतजाम हुआ। मनरेगा मजदूरों के अब तक के बकाये का इस सरकार ने एकमुश्त भुगतान कर दिया। पंजीकृत मजदूरों के अलावा उनकी भी सुध ली गई। जो अब तक श्रम विभाग में पंजीकृत नहीं है। इसी कड़ी में राज्य सरकार ने शहरी इलाकों के तहत वेण्डरों, ई-रिक्षाचालकों और आटो चालकों के लिए भी अपना खजाना खोला है। ऐसे लोगों को भी उनके खाते में एक- एक हजार रूपये डालने के लिए 48.17 करोड़ रूपये का फंड जारी किया है। इससे अकेले लखनऊ में 21684 लोगों को सीधे लाभ पहुंचेगा। जिस तरह रोज इस महामारी को लेकर खुद मुख्यमंत्री मॉनीटरिंग कर रहे हैं, उसकी खूब चर्चा है। कुछ दिन पहले जब दिल्ली-यूपी और बार्डर पर हजारों की तादाद में दिहाड़ी मजदूर बसों के इंतजार में अपने गन्तव्य तक पहुंचने के लिए आतुर थे तब सीधे संज्ञान लेते हुए मुयमंत्री ने एक हजार बसों का इंतजाम किया।

ताकि लोग अपनी मंजिल तक पहुंच सकें। यही नहीं इस बात का भी ध्यान रखा गया कि बाहरी राज्यों से लौट रहे लोगों की उनके जिले की सीमा पर प्रारंभिक जांच हो और जरा भी असामान्य पाये जाने पर उन्हें 14 दिन के लिए क्वारंटाइन कराया जाए। इसलिए कि उनके चलते गांवों में कोई संक्रमण फैलने की गुंजाईश न रहे। यह उनके सरोकार का ही परिचायक है। इस लड़ाई में देश के भीतर दो राज्यों के मुख्यमंत्री चर्चा में रहे हैं। एक केरल के पी. विजयन, उन्होंने अब तक जिस तरह इस महामारी से निपटने में तत्परता दिखाई और केन्द्र सरकार के निर्देशों को भी अपने यहां बखूबी अनुपालन कराया है, वो चर्चा में है। इसी तरह यूपी के योगी आदित्यनाथ के हाल ही में लिये गये फैसलों की चर्चा है। जहां तक केरल का प्रश्न है तो इस राज्य में ज्यादातर ऐसी बड़ी आबादी है जो खाड़ी देशों में काम करती है। इसलिए ऐसे लोगों में स्वराज्य लौटने पर जिस तत्परता से उन लोगों की जांच की गई तथा क्वारंटाइन कराया गया, वो साबित करता है कि मौजूदा नेतृत्व फैसले लेने में कितना दृढ़ है।

पहला कोरोना मरीज इसी राज्य में मिला था, खाड़ी से लौटे लोगों की वापसी के बाद हालात भी बिगड़े थे। लेकिन धीरे-धीरे स्थिति इसलिए नियंत्रण में आती चली गई कि लोगों ने राज्य सरकार के निर्देशों का पालन किया। यूपी में भी मार्च के आखिरी दिनों तक कोविड-19 करे लेकर स्थिति इतने नियंत्रण में थी कि खुद योगी आदित्यनाथ की तरफ से 14 अप्रैल के बाद धीरे-धीरे लॉकडाउन उठा लेने के संकेत दिये जाने लगे थे। लेकिन तब्लीगी जमात के संदिग्ध कोरोना मरीजों के एकाएक पाये जाने की घटना के बाद राज्य का परिदृश्य ही बदल गया। पश्चिमी यूपी और लखनऊ के आस-पास इलाकों से मिली सूचनाओं ने एक बार फिर नये सिरे से सोचने पर विवश कर दिया। अब तक रणनीति के तहत यूपी सरकार राज्य के प्रभावित इलाकों की पूरी तरह घेरेबंदी करके रोग पर नियंत्रण पाने की कोशिश कर रही है। क्योंकि यह तय है कि इसका सामुदायिक विस्तार हुआ तो स्थिति काबू से बाहर हो जाएगी। कितने भी संसाधन हों, अपर्याप्त होंगे। इसलिए बचाव ही विकल्प है। इस अवधि में जिनका काम-धंधा बंद है, उनकी सुध भी लिया जाना भी जरूरी है।

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