योगी सरकार का सख्त फैसला

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यूपी की योगी सरकार ने बुधवार को कोरोना योद्धाओं पर हो रहे हमले को गंभीरता से लिया है। इसमें पुलिस कर्मचारियों को भी शामिल करते हुए यह स्पष्ट कर दिया गया है कि ऐसे मामलों में दोषियों को सात साल की सजा मिलेगी, संक्रमण छिपाने पर तीन साल के लिए सलाखों के पीछे जायंगे। इस बाबत अध्यादेश को कैबिनेट से मंजूरी के बाद यह तय है कि इस पूरी लड़ाई को कमजोर करने की कोशिश करने वालों से कड़ाई से निपटा जाएगा। इससे पहले डॉक्टर्स और पैरामेडिकल स्टाफ को सुरक्षा के मद्देनजर केन्द्र सरकार ने भी कड़े कदम उठाये थे। बेशक इससे कुछ फर्क तो जरूर पड़ा है। लोगों को डर रहता है कि ऐसा कुछ करने पर वे कानून की जद में आ सकते हैं। यूपी में इधर देखा गया कि खुराफाती स्वास्थ्यकर्मियों के साथ ही पुलिस स्टाफ से भी बदतमीजी से पेश आते, उन्हें दौड़ा लेते और मारपीट करते हैं। इसलिए जरूरी हो गया था कि इस महत्वपूर्ण तबके को भी कानूनी कवच दिया जाए। अब देखना होगा कि इसका कितना असर आगे से दिखाई देता है।

बहरहाल, यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकारें कोरोना संकट से जूझने के लिए हरचंद कोशिश कर रही है, इस काम में चौबीसों घंटे जुटे हमारे कोरोना योद्धा अपनी जान जोखिम में डालकर सेवा के लिए तत्पर है, ऐसे में कम से कम उनके लिए मुसीबत नहीं खड़ी की जानी चाहिए। सबको पता है कि महामारी पर रोक के लिए अब तक किसी सटीक वैसीन का ईजाद नहीं हो पाया है। हालांकि इस बाबत इसरायल समेत कई देश दावा कर रहे हैं कि उन्हें सफलता मिल चुकी है। स्थिति यह है कि कहीं-कहीं प्लाजमा थेरेपी से लड़ाई को अंजाम दिया जा रहा है। कुल मिलाकर हरचंद कोशिश चल रही है। दरअसल कोरोना की पूरी दुनिया में एक-सी प्रवृत्ति भी नहीं है। इसीलिए ऐसे किसी काम्बो इलाज की जरूरत है जिससे सभी जगह कारगर हो सके। वैज्ञानिक भी उलझे हुए हैं। पर इस सबके बीच सब्र की ही जरूरत है। ठीक है, सेहत से लेकर आर्थिक मोर्चे तक एक साथ चुनौतियां पूरी मनुष्यता के सामने है। बाकी दुनिया की तरफ भी देखने की जरूरत है, जहां भारत जैसी लोगों में बढ़ रही बेसब्री नहीं दिखती, कोरोना योद्धाओं पर हमले नहीं होते।

जांच में पूरी तरह करते दिखते हैं लेकिन मामला यहीं उलटा है। स्थिति यह है कि जरा सी लॉकडाउन में छूट मिलती है तो पिछले सारे प्रयासों पर पानी फेर भीड़ में तब्दील दिखाई देते हैं। शराब की दुकानें खुलने के बाद देश भर में शारीरिक दूरी की धज्जियां उड़ाते देखा गया। यह तब, जब पता है कि इसके उल्लंघन का मतलब कोरोना संक्रमण को न्यौता देने जैसा है। सरकार की तरफ से धीरे-धीरे अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए लॉकडाउन में बंदिशों के नये निर्देशों के साथ ढील देने की योजना है। पर दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि इस लड़ाई को कुछ लोग अकेले सरकार की मान रहे हैं। यह सिर्फ मुगालता है। इससे ऐसे लोगों को तत्काल छुटकारा पाने की जरूरत है। वरना स्थिति और बिगड़ी तो सख्ती की अवधि बढ़ाने के अलावा कोई विकल्प बचता ही नहीं। इस लिहाज से प्रथम पंक्ति के उन योद्धाओं के बारे में भी सोचा जाना चाहिए। यदि उनका असहयोग शुरू हो गया तो यह लड़ाई या मोड़ ले सकती है, इसका अंदाजा लगाया कठिन नहीं है। ऐसे मामलों में सरकारों को कानून व्यवस्था के लिए अध्यादेश का सहारा लेना पड़े, अच्छी नजीर नहीं कही जा सकती। लेकिन जब कोई चारा ही ना हो तो ऐसी सख्ती की तरफ बढऩा आवश्यक हो जाता है। योगी सरकार ने ठीक ही निर्णय लिया है उम्मीद की जानी चाहिए इससे हमारे उन पुलिस कर्मचारियों का भी मनोबल बढ़ेगा, जो एक ही तरह की ड्यूटी करते हुए नीरसता महसूस कर सकते हैं।

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