ये सिर्फ स्क्रीन के हीरो हैं

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जब आग लगी हो, तो न्यूट्रल रहने का मतलब ये होता है सर कि आप उनके साथ खड़े हैं, जो आग लगा रहे हैं।‘यह जाति, धर्म, समुदाय, लिंग या धर्मस्थान के आधार पर भेदभाव का विरोध करने वाली संविधान की धारा 15 पर आधारित फिल्म आर्टिकल 15 का डायलॉग है। लेकिन बॉलिवुड स्टार्स की बात करें, तो होता हमेशा यही है। देश की राजनीतिक और सामाजिक मुद्दे की बात हो, तो इंडस्ट्री के बड़े-बड़े लीजेंड्स और सुपरस्टार्स खामोश हो जाते हैं। जैसा कि अभी हो रहा है, देश में नागरिक संशोधन कानून लागू किए जाने को लेकर देश भर में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। जगह-जगह छात्र सड़कों पर हैं, उन पर लाठियां बरसाई जा रही है। लेकिन हमारे परदे के तमाम बड़े हीरोज चुप्पी साधे तमाशबीन बने हुए हैं और रोजमर्रा की तरह महज एंटरटेनमेंट, एंटरटेनमेंट, एंटरटेनमेंट में लगे हुए हैं। प्रधानमंत्री के साथ सेल्फी खिंचवाने के लिए दिल्ली और आईरिश बैंड यू 2 की शान बढ़ाने नवीं मुंबई तक पहुंच जाने वाले इन स्टार्स के पास देश के इस अहम मसले पर कुछ भी कहने के लिए न शब्द है, न वक्त। वैसे, यह पहली बार नहीं है, मीटू जैसी जरूरी मुहिम हो या कठुआ में किसी मासूम पर ज्यादती या फिर पड़ोसी देश के कलाकारों पर पाबंदी का फैसला, चर्चित फिल्मी हीरोज हमेशा न्यूट्रल रहने की ही कोशिश करते हैं।

कभी मामले की पूरी जानकारी नहीं होने की बात कहकर पल्ला झाड़ लेंगे, तो कभी ये सही मौका नहीं है कहकर बात टाल देंगे। हालांकि, इस बार उनकी खुद की इंडस्ट्री के लोग ही उन्हें अपनी रीढ़ की हड्डी याद करने की सलाह दे रहे हैं। नागरिक संशोधन कानून के विरोध में इंडस्ट्री का एक बुद्धजीवी तबका जोरशोर से आवाज उठा रहा है। अनुभव सिन्हा, अनुराग कश्यप, रिचा चड्ढा,स्वरा भास्कर, सुशांत सिंह, संध्या मृदुल, फरहान अख्तर, तिगमांशु धूलिया, अली फजल, महेश भट्ट, अश्विनी चौधरी जैसे फिल्ममेकर्स-ऐटर्स न केवल खुलकर इस भेदभावपूर्ण कानून का विरोध कर रहे हैं, बल्कि इंडस्ट्री के आइकन्स की चुप्पी पर सवाल भी उठा रहे हैं। इसके बावजूद, शाहरुख खान, सलमान खान, आमिर खान, अक्षय कुमार, अजय देवगन, रणवीर सिंह, दीपिका पादुकोण, अनुष्का शर्मा, कंगना रनौत जैसे बड़े ऐटर्स ने इस मामले में कुछ नहीं कहा है। शायद वे डरते हैं कि कहीं उन्हें सरकार के खिलाफ बोलने का खामियाजा न उठाना पड़ जाए। जैसे, ऐटर सुशांत सिंह को उठाना पड़ा। सीएए का विरोध करने वाले सुशांत सिंह को रातोंरात सावधान इंडिया के होस्ट की जिम्मेदारी से हटा दिया गया, लेकिन‘मैं टैलंट बेचता हूं, जमीर नहीं’कहने का सुशांत जैसा जिगर सभी का नहीं होता।

आमिर खान ने अपनी पिछली फिल्म के रिलीज के दौरान मीटू के मुद्दे पर यही कहते हुए बात करने से मना कर दिया था कि अभी वह इस पर नहीं बोलेंगे, क्योंकि उनकी फिल्म आ रही है। दरअसल, इनटॉलरेंस पर अपनी राय रखने पर आमिर और शाहरुख भी पहले ऐसे नुकसान उठा चुके हैं, इसलिए अब वे किसी भी राजनीतिक- सामाजिक मुद्दे पर बोलने से बचते हैं। वहीं, कई कलाकारों का स्वभाव ही चारण का होता है, सत्ता के साथ उनके हित जुड़े होते हैं, वे उनके खिलाफ बोलने की जुर्रत नहीं करते। वहीं, यह सवाल उठने पर अमिताभ बच्चन, रितिक रोशन जैसे कुछ चर्चित ऐटर्स ने एक ट्वीट करके छात्रों पर हुई हिंसा पर दुख जताकर अपने दायित्वों की पूर्ति कर दी। लेकिन सच कहा जाए, तो दबाव के चलते दिए गए समर्थन या विरोध का कोई मतलब नहीं है। बात के मायने तभी हैं, जब वह मन से कही गई हो, इसलिए नहीं कि अरे, लोग सवाल उठा रहे हैं, तो कुछ कहना ही पड़ेगा। खैर, इन मायानगरीवालों के कुछ कहने या न कहने से इतना भी कुछ अमूल-चूल परिवर्तन नहीं होने वाला, क्योंकि असल में बदलाव सरकार या स्टार नहीं, आम जनता लाती है।

उपमा सिंह
(लेखिका फिल्मी दुनिया से जुड़ी हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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