ये भूल मतता को चटा सकती है धूल

0
344

वो ये भूल रही हैं कि 2009 से पहले उन्होंने जो जंग बंगाल में लड़ी थी वो लेफ्ट के खिलाफ थी। जनता लेफ्ट के दशकों पुराने राज से तंग आ चुकी थी लिहाजा ममता मजबूत होती चली गई लेकिन अब वो जंग लड़ रही हैं वो संविधान के खिलाफ भी है, देश के खिलाफ भी है कि ये जंग दिखाने को केवल शाह व मोदी के खिलाफ ही नहीं है।।

इंसान के पास कुछ ना हो और वो बड़ी ताकतों से टकरा जाए और जज्बे व किस्मत के सहारे खुदा ना खास्ता जीत जाए तो उसे ये मुलागता हो जाता है कि वो कुछ भी कर सकता है, किसी को भी झुका सकता है। इसी भ्रम में वो अपने से कहीं ज्यादा ताकतवर के साथ फिर उलझता है और पटखनी खा जाता है। ममता बनर्जी इसी राह पर हैं। वो ये भूल रही हैं कि 2009 से पहले उन्होंने जो जंग बंगाल में लड़ी थी वो लेफ्ट के खिलाफ थी। जनता लेफ्ट के दशकों पुराने राज से तंग आ चुकी थी लिहाजा ममता मजबूत होती चली गई लेकिन अब वो जंग लड़ रही हैं वो संविधान के खिलाफ भी है, देश के खिलाफ भी है और हकीकत ये भी है कि ये जंग दिखाने को केवल अमित शाह व नरेन्द्र मोदी खिलाफ ही नहीं बल्कि परदे के पीछे से ये उस विपक्ष के खिलाफ भी है जिसे ममता भाजपा के खिलाफ अपने पीछे देखना चाहती हैं। ममता जैसी अड़ियल नेता ही ये भूल कर सकती हैं कि वो लंबे अरसे से मुख्यमंत्री हैं और उसमें भ्रष्टाचार का गंदा नाला भी लबालब बह रहा है। जिस जनता का पैसा लूटा गया, जिसे सत्ता के सहारे ठगा गया भला वो जनता कैसे ममता के साथ इस मामले पर खड़ी हो सकती है ये साख टके का सवाल है?

जनता ये भी कैसे भूल सकती है कि इस चिटफंडिया घोटाले की जद में फंसे अपने किसी नेता या मंत्री को अगर ममता ने नहीं बचाया तो फिर किसी पुलिस अफसर के लिए ममता इस हद तक क्यों गई? क्या जनता नहीं समझ रही है कि उस घोटाले की जांच सीबीआई से पहले एसआईटी कर रही थी उसके मुखिया कोलकाता के यही पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार थे जिनके लिए ममता ने सारी हदें पार कर दी हैं। आखिर समय की धारा में ऐसा क्या मिला जिसकी वजह से एसआईटी जांच के दौरान राजीव कुमार को रगियाने वाली ममता सीबीआई जांच के तत्काल बाद राजीव कुमार पर इतना प्यार लुटाने लगी? इसका जवाब इतना कठिन नहीं है। समझने के लिए ज्यादा दिमाग भी चलाने की जरूरत नहीं है। क्या राजीव कुमार को कोलकाता का पुलिस कमिश्नर बनाने का फैसला चिटफंड के राज से जुड़ा था? सबूत राजीव कुमार के पास थे। उनका कितना इस्तेमाल इस अफसर ने सत्ता की नजदीकी के लिए फायदा उठाया ये तो वो जानें लेकिन ऐसे नाजुक मौकों पर आनन-फानन में छापे के दौरान किसी पुलिस अफसर के घर किसी सीएम का पहुंचना हिन्दी फिल्मों की याद जरूर दिला देती है।

हो सकता है कि कल कोई ऐसी फिल्म बन भी जाए जिसका प्रचार भी इसी तरह होगा-सच्ची घटना पर आधारित राजनीति का ड्रामा। बंगाल इस समय भाजपा की नंबर एक प्रयोग शाला है। ममता के साथ जितने विपक्षी नेता खड़े होंगे भाजपा उतने ही फायदे में रहेगी। मोदी और दमककर कहेंगे कि मैं चोरों के खिलाफ एक्शन लेता हूं, सारे चोर मुझे हटाना चाहते हैं। अब तो सुप्रीम कोर्ट ने भी इजाजत दे दी है कि सीबीआई कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार से पूछताछ करे तो अब क्या करेंगी ममता? अगर पूछताछ हुई तो जाहिर सी बात है कि घेरे में ममता ही आएंगी। कांग्रेस का साथ ममता को पसंद नहीं, लेफ्ट की वो दुश्मन हैं तो फिर कैसे मान लिया जाए कि भाजपा को बंगाल में आगे बढ़ने से रोका जा सकता है? अगर ऐसा हुआ तो 2009 में जो हाल लेफ्ट का हुआ था वही इस बार टीएमसी का हो सकता है तो फिर ममता को इस अडियल अंदाज से मिलेगा क्या? वो भी चिटफंड जैसी घोटाले की जांच को रोकने के नाम पर। अगर केन्द्र ने राष्ट्रपति शासन लगा दिया तो ममता के पास लड़ने को बचेगा ही क्या? कभी-कभी क्षणिक गुस्सा सर्वनाश कर जाता है और ममता इसके कगार पर है।

लेखक
डीपीएस पंवार

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here