ये बंदर अली के या बली के

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हाईकोर्ट ने फैसला दे दिया था कि राजधानी दिल्ली में बंदरों को फकड़ने और नई जगह भेजने की जिमम्दारी दक्षिणी दिल्ली नगर निगम की है। निगम ने इस आदेश को बदलने कि लिए याचिका दायर की थी लेकिन अब हाईकोर्ट ने इस याचिका को निरस्त कर दिया है। अब सोचिए, नगर निगम वाले क्या- क्या करें? मच्छर मारें, झाडू लगाएं, नाली साफ करें, शौचालय का दरवाजा बंद करें। ये काम कभी पूरे होने वाले नहीं हैं। अब ऊपर से जल- सरंक्षण आ गया। अब ‘जल-जल , कल-कल’ के कैसेट बजने शुरू हो जाएंगे। ब्रांड एम्बेसडर कटोरा लिए भाग-भाग कर वर्षा-जल इकठ्ठा करते हुए फोटो खिंचवाएंगे। अब ऊपर से यह बंदर-पकड़ प्रोग्राम और लाद दिया कोर्ट ने। खैर, वैसे तो नेता, कर्मचारी और अफसर सब इसका भी कोई न कोई तोड़ निकाल ही लेंगे, जैसे 15 लाख रुपए बैंक में जाने का उत्तर निकाल लिया गया। हालांकि हमारे पास इतना अतिरिक्त सामान ही नहीं है कि बंदरों के हाथ लगे। फिर भी हम बहुत चिंतित हैं। चिंता करना, जनता के साथ संवेदना प्रकट करना बड़प्पन और महानता का लक्षण है। तभी अकबर इलाहाबादी कहते हैं- कौम के ग़म में डिनर खाते हैं हुक्काम के साथ। रंज लीडर को बहुत है मगर आराम के साथ।। इतनी बड़ी समस्या और हम अकेले? कैसे सुलझा सकते हैं। महान लोगों की बात और है।

वे तो नोटबंदी या मेक्सिको सीमा पर दीवार बनाने जैसे फैसले तक बिना किसी की सलाह के ले सकते हैं। खैर, तोताराम आया तो हमने उसे ढंग से बैठने भी नहीं दिया और प्रश्न उछाल दिया- बंदर पकडऩा भी भला कोई काम है ? बोला- इससे महत्वपूर्ण कोई काम हो ही नहीं सकता। तुझे पता है लंका में एक बंदर गया था, जिसे पकडऩे में बहुत से राक्षस वीर मारे गए थे, इसी चक्कर में रावण का पुत्र अक्षय कुमार भी वीरगति को प्राप्त हुआ। मेघनाद भी उसे ब्रह्मपाश के बिना पकड़ नहीं सका। और अन्त: वानर ने सोने की लंका को जला दिया। मंदिर अभी तक नहीं बना, यह बात और है लेकिन राम अयोध्या वापिस तो आ ही चुके, जिसके फलस्वरूप आज भी दशहरा मनाया जाता है। योगी जी ने भी पिछली दिवाली को राम का स्वागत समारोह भी आयोजित किया था। कोई लाख दो लाख दीये जलवाकर। हनुमान, सुग्रीव, अंगद और जामवंत भी कुछ दिन राम के साथ रहक र सुग्रीव के साथ पम्पापुर लौट गए थे। युद्ध के बाद वानर-भालुओं को राम ने कहा था- अब तुम निज-निज गृह जाहू। सुमिरेहु मोहि डरपहि जनि कहू।।

अब तुम सब अपने-अपने घर ( शाखाओं पर ) जाओ, मेरा स्मरण करते रहो और किसी से मत डरो। सो राम का कहना मानकर सभी बंदर-भालू कर्क रेखा के नीचे अर्थात दक्षिण भारत में सेटल हो गए। लेकिन अब ये दिल्ली में कैसे आ गए ? हमने कहा- राम के बाद द्वापर से ही दिल्ली देश राजधानी है। यह ठीक है कि पहले इनकी राजधानी दक्षिण में थी। लेकिन 1947 के बाद ये सब सत्ता के लालच में दिल्ली आ गए। दक्षिणी दिल्ली पोश सेवकों का इलाका है, यो ये सब दक्षिण दिल्ली में सेटल हो गए। चूंकि वानर मूलत: दक्षिण से आए हैं इसलिए इन्हें पकडऩे की जिम्मेदारी भी दक्षिण दिल्ली नगर निगम की है। और फिर दक्षिण दिल्ली नगर निगम में भाजपा का दो तिहाई बहुमत है। जरूरत पड़ी तो वे संविधान में भी संशोधन कर सकते हैं और फिर बंदर रामभक्तों के ही वश में आ सकते हैं। तभी तो लंका में वे किसी के वश में नहीं आए लेकिन विभीषण से संवाद किया, मिले, मार्गदर्शन लिया,उन्हें पार्टी की सदस्यता दिलवाई। तभी तो सबके घर जला दिए लेकिन विभीषण का घर नहीं जलाया। बोला- लेकिन बंदर तो दक्षिण दिल्ली ही नहीं पाकिस्तान, बांग्लादेश में भी पाए जाते हैं।

रमेश जोशी
(लेखक वरिष्ठ व्यंगकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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