मोदी से दिल टूटा

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दइकॉनोमिस्ट दुनिया की प्रतिष्ठित पत्रिका है। यह उदारवादी अर्थव्यवस्था की समर्थक है। साथ ही साथ सामाजिक उदारवाद की भी समर्थक है। अपने इन दोनों रू झानों को जोडक़र यह विभिन्न घटनाओं पर अपना रुख तय करती है। फिर उसे बेलाग जताती है। पत्रिका की पंरपरा है कि वह हर लोक तांत्रिक देश के चुनाव के समय वहां की सियासी हालत का जायजा पेश करते हुए उस चुनाव के बारे में अपना रुख बताती है। यानी अपनी राय जताती है कि उस चुनाव में वह किसे जीतता देखना चाहती है। 2014 में उसने कहा था कि उसका दिल नरेंद्र मोदी के साथ है, दिमाग इसकी इजाजत नहीं देता कि वह उनका समर्थन करे। अब उसका दिल भी मोदी से टूट गया है।

पत्रिका ने कहा है कि मोदी के अधीन भारत की सत्तारूढ़ पार्टी लोकतंत्र के लिए खतरा है। इसलिए पत्रिका ने भारत के मतदाताओं से नरेंद्र मोदी सरकार को हटाने या कम-से-कम गठबंधन की सरकार बनाने के लिए मजबूर करने की अपील की है। ‘द इकॉनोमिस्ट’ ने क हा है कि मोदी अपने समर्थकों की उम्मीदों को भी पूरा कर पाने में नाकाम रहे हैं। मोदी के पास उपलब्धियों के नाम पर जितना कुछ है उससे कहीं अधिक उनके साथ असफ लताएं जुड़ी हैं। पत्रिका ने पाकिस्तान पर हवाई हमले को भारत सरकार का लापरवाही भरा क दम बताया गया है। कश्मीर की खराब हालात के लिए पत्रिका ने मोदी की सगत दिखावे की छवि को जिम्मेदार ठहराया है। कहा है कि सगत दिखने की नीति विवादित जम्मू-कश्मीर में आपदा बन गई है, जिसने अलगावादी विद्रोहियों को शांत करने के बजाय उन्हें भडक़ाने का काम किया है।

पत्रिका ने नोटबंदी, जीएसटी और दिवालिया कोड को सरकार की असफलता माना है। पत्रिका ने कहा है- 2016 में मोदी ने मनी लांड्रिंग पर रोक लगाने के लिए अचानक से करीब-करीब सारे नोट को अमान्य करार दिया। यह योजना फेल हुई और इसकी वजह से कि सान और छोटे व्यापारियों को भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। उन्होंने देश भर में जीएसटी और दिवालिया कोड को लागू किया। जिसका प्रभाव अर्थव्यवस्था पर पड़ा। पत्रिका ने रोजगार दे पाने में मोदी को असफ ल बताया है। संपादकीय कहता है कि पांच साल में बेरोजगारी बढ़ी है जो उनके वादों के विपरीत है। ये वही बातें हैं जो मोदी के विरोधी भी कहते रहे हैं। लेकिन गौर करने की बात यह है कि दइकॉनोमिस्ट जब कुछ कहता है तो उस बात को दुनिया भर में ध्यान से सुना जाता है।

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