मोदी मतलब ताकत 

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किसी नेता की महानता देखी और अनदेखी घटनाओं का प्रभावी ढंग से जवाब देने की उसकी क्षमता और राष्ट्रीय नीतिगत उद्देश्यों को प्राप्त करना है। सफल होने के लिए नेता को अपने विचारों को लोगों तक पहुंचाना चाहिए और उन्हें अपने नेतृत्व का अनुपालन करने के लिए उत्साहित करना चाहिए। यह नेतृत्व के सभी स्तरों पर लागू होता है, चाहे वह कोई सैन्य प्लाटून हो या कोई देश। जितना ऊंचा पद होगा, निचले स्तरों पर काम कराने के लिए उतना ही प्रतिरोध और जड़ता का सामना करना होगा। इसलिए हमारे प्रधानमंत्री की उपलब्धि को विशेष असाधारण के रूप में देखा जाना चाहिए क्योंकि उन्होंने संस्थागत और व्यक्तिगत विरोध का बखूबी सामना किया और देश के विकास के रास्ते में आने वाली बाधाओं और अंतर को पाट दिया। उज्ज्वला, स्वच्छ भारत, जन धन, आयुष्मान भारत और कई अन्य कार्यक्रम इसके उदाहरण हैं। मोदी के दूसरे कार्यकाल में इसकी गति बढ़ गई है और कोविड के असर के बावजूद उत्साह में कोई कमी नहीं आई है। आज जब हमें कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है तो कोविड-19 के खिलाफ भारत की लड़ाई की दुनियाभर में सराहना हो रही है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की असाधारण राजनीतिक सूझबूझ, जबरदस्त व्यक्तित्व, दृढ़ संकल्प, काम को अंजाम तक पहुंचाने की क्षमता और करिश्मा भारत की विकास यात्रा में सबसे अहम कारक है। उन्हें अपने पद से जो शक्ति मिलती है, वह उनके करिश्मे और प्रभाव से कई गुना बढ़ जाती है। सही मायनों में एक विश्व नेता की तरह हमारे प्रधानमंत्री को विदेशों में बहुत सम्मान हासिल है। लेकिन उनका निर्णायक नेतृत्व सैन्य मामलों में पूरी तरह निखरकर आता है। भारत के रक्षा बलों को दुनिया में बहुत सम्मान से देखा जाता है। चाहे वह साहस, अनुशासन या युद्धकला की बात हो, उन्हें हर क्षेत्र में महारत हासिल है। अब उन्हें ऐसा नेता मिल गया है जो उन्हें अत्याधुनिक हथियारों से सुसज्जित कर रहा है, उन्हे प्रोत्साहित कर रहा है और उन्हें रोमांचित कर रहा है। चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ का पद बनाना। नैशनल सिक्योरिटी काउंसिल सचिवालय का विस्तार एंव आर्म्ड फोर्सेस के थियेटर कमांड को ताकत देने से भारत की युद्ध क्षमता और तैयारियां सदा के लिए बदल जाएंगी। वन रैंक वन पेंशन (OROP) की बात तो छोड़िए उन्होंने तो पूर्व सैनिकों के अंदर भी जोश भर दिया है।

एक सैन्य लीडर के रूप में मोदी का मतलब ताकत है और हमारे सुरक्षाबल इसको जानते हैं और दुश्मनों को भी यह बात अच्छे से पता है। अगर कोई हमें उकसाएगा तो हम उसके लिए पूरी तरह से तैयार हैं। हम किसी भी हिमाकत का जवाब देने के लिए तैयार हैं। हम अपनी रणनीति को अंजाम देने के लिए कमर कर चुके हैं। हमने रक्षा खरीदारी को नैशनल मिशन बनाया। इससे हमारी क्षमता बढ़ी और संसाधन तेजी से उपलब्ध हो रहे हैं। अगर 2014 के पहले 5 साल और बाद के 5 साल की तुलना करें तो लॉजिस्टिक तैयारियों पर हमारा खर्च बढ़कर 11 हजार करोड़ पहुंच गया है। दुर्गम इलाकों में सैनिकों के आवागमन के लिए ब्रिजों की संख्या बढ़ाई गई। सीमाई इलाकों में सड़क निर्माण का काम 33 फीसदी ज्यादा बढ़ा है।

आत्मनिर्भर भारत के जरिए रक्षा निर्माण के लिए वास्तव में बुनियादी काम हो रहा है। विश्व कूटनीति में भी पीएम ने गहरी छाप छोड़ी है। उन्होंने वैसे लोगों को करारा जवाब दिया है जो हमारी भूमि की तरफ घृणा और दुश्मनी से देखते थे। उन्होंने हर रोज अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया है। हिमालय के इलाके में हमारे पड़ोसियों ने कुछ हिमाकत की है। इस सदी की शुरुआत से पहले, जब लोगों के पास इंटरनेट और मोबाइल फोन नहीं हुआ करते थे तब एक चीनी सैन्य पेपर ने ‘Unrestricted Warfare’ (अप्रतिबंधित/असीमित युद्ध) के बारे में पेइचिंग के विचार से दुनिया को अवगत कराया। इस लेख में बताया गया था कि कैसे तकनीकी विकास के जरिए युद्ध कौशल में बदलाव आ रहा है और भविष्य के युद्ध में तकनीक और व्यवसायिक ताकत शामिल होगी।

राज्यवर्धन सिंह राठौर
(लेखक पूर्व केंद्रीय मंत्री व भाजपा सांसद हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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