मोदी के भाषण के दोनों पहलू पर गौर करना जरूरी

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कोरोना पर प्रधानमंत्री के संदेश से जो लोग यह आस लगाए बैठे थे कि वे तालाबंदी में ढील की घोषणा करेंगे, उन्हें निराशा जरुर हुई होगी लेकिन उन्हें संतोष भी हुआ होगा कि उन्होंने 20 अप्रैल से उसके शुरु होने का संकेत दिया है। कहां कितनी ढील दी जाएगी, यह उन्होंने स्थानीय प्रशासनों पर छोड़ दिया है। उन्होंने यह भी ठीक ही कहा है कि जैसे ही कहीं ढील के नतीजे उल्टे दिखे, वे सख्ती करेंगे।उम्मीद है कि 20 अप्रैल तक कोरोना का प्रकोप घटेगा तो ढील बढ़ेगी, जिसका फायदा लोगों को रोजमर्रा के जीवन में तो मिलेगा ही, अर्थ-व्यवस्था भी पटरी पर लौटने लगेगी। यह अच्छा हुआ कि उन्होंने ढील की घोषणा आज से ही नहीं कर दी। अगर वे कर देते तो भगदड़ मच जाती। पता नहीं, देश में क्या होता ! तालाबंदी की हड़बड़ी से उन्होंने यह सबक सीखकर खुद का और देश का भला किया।

3 मई भी शायद उन्होंने इसीलिए चुना है कि दो और तीन तारीख को शनिवार और रविवार है। कोई आश्चर्य नहीं कि तालाबंदी को जल्दी ही इतना ढीला कर दिया जाए कि स्थिति सामान्य-सी लगने लगे लेकिन यह तभी होगा जबकि तालाबंदी का प्रकोप जमाते-तबलीग के पहले-जैसा हो जाए। प्रधानमंत्री, भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने जमात की धींगामुश्ती को ज्यादा तूल नहीं दिया, यह उनकी परिपक्वता और राष्ट्रीय जिम्मेदारी का प्रमाण है।कोरोना का एक जबर्दस्त फायदा यह भी हुआ है कि नरेंद्र मोदी में एक कार्यकर्ता की विनम्रता लौट आई है। उन्होंने लोगों को हुए कष्टों के लिए जिन शब्दों में खेद जताया है और उन्हें सात सत्कर्म करने के लिए प्रेरित किया है, वह उन्हें राजनेता के पद से ऊंचा उठाकर राष्ट्रनेता बनाता है। उन्होंने भाषण में विरोधी दलों की हमेशा की तरह टांग नहीं खींची, यह भी सिद्ध करता है कि वे सबको साथ लेकर चलना चाहते हैं।

इस बीच उन्होंने सर्वदलीय बैठक बुलाई, सभी मुख्यमंत्रियों से बात की और सब निर्णय सर्वसम्मति से ले रहे हैं, यह सराहनीय है। कोरोना-विरोधी अभियान में जो सरकारी देरी हुई, उस पर उन्होंने जो लीपा-पोती की, उससे सहमत होना कठिन है लेकिन उन्होंने केंद्र और राज्य सरकार को अब कोरोना के विरुद्ध एकजुट किया है, वह अन्य पड़ौसी राष्ट्रों के लिए भी प्रेरक है।मुझे खुशी है कि मोदी ने आयुष मंत्रालय के घरेलू नुस्खों का जिक्र भी किया। इन पर उन्होंने जोर क्यों नहीं दिया ? कोरोना संबंधी अंग्रेजी शब्दों के हिंदी पर्याय मैं कई बार बता चुका हूं लेकिन फिर भी मोदी नौकरशाहों की नकल पर डटे हुए हैं। पुनश्च: मुंबई में हजारों प्रवासी मजदूरों की भीड़ देखकर मुझे दर्जनों फोन आ रहे हैं कि आपने तालाबंदी के पहले दिन और बाद में भी दो बार इस बारे में लिखा था। सरकार ने ध्यान क्यों नहीं दिया ?

डा. वेदप्रताप वैदिक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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