मैं दुनिया के लगभग 70-80 देशों में गया हूं, उनमें रहा हूं, पढ़ा हूं और पढ़ाता रहा हूं।

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लंदन में बैठे-बैठे मैंने जैसे ही भारतीय टीवी चैनल खोले, मैंने देखा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखिया मोहन भागवत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयानों को काफी प्रमुखता मिल रही है। मोदी का कहना था कि विरोधियों में दम हो तो वे अनुच्छेद 370 और 35ए की वापसी का वादा करें। जाहिर है कि पांच अगस्त को हुए कश्मीर के पूर्ण विलय का विरोध करके कांग्रेस ने अपनी फजीहत करवा ली है। लेकिन मोहन भागवत का बयान अपने आप में अजूबा है। कुछ मुस्लिम नेता इसका डटकर विरोध भी कर रहे हैं।

भागवत ने कहा कि मुसलमान यानी अल्पसंख्यक भारत में जितने खुश हैं, उतने दुनिया में कहीं नहीं हैं। बहुत हद तक यह बात सही है, लेकिन इसकी कुछ सीमाएं भी हैं। मैं दुनिया के लगभग 70-80 देशों में गया हूं, उनमें रहा हूं, पढ़ा हूं और पढ़ाता रहा हूं। उन देशों के अल्पसंख्यकों से मेरा निकट संपर्क भी होता रहा है। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का शोध छात्र होने के नाते इनके बारे में पढ़ता और लिखता भी रहा हूं। वे चाहे ईसाई देश हों या मुस्लिम देश हों, वे चाहे पूंजीवादी देश हों या साम्यवादी देश हों, वे चाहे गरीब देश हों या अमीर देश हों, उनमें रहनेवाले अल्पसंख्यक लोग अक्सर डरे हुए, कमजोर, गरीब और पीड़ित ही दिखाई पड़ते रहे हैं। जैसे चीन में उइगर मुसलमान, कम्युनिस्ट रूस में मध्य एशिया के पांचों मुस्लिम गणतंत्रों के नागरिक, अमेरिका में नीग्रो लोग, यूरोपीय देशों के एशियाई नागरिक, नेपाल, श्रीलंका और बर्मा के मुसलमान, पाकिस्तान के शिया और हिंदू आदि!

लेकिन, भारत में तीन मुसलमान राष्ट्रपति हो चुके हैं। उपराष्ट्रपति और मुख्यमंत्री भी कई हुए हैं। केंद्रीय मंत्री, राज्यों के मंत्री, सांसदों और विधायकों की संख्या भी बड़ी रही है। एक सिख प्रधानमंत्री भी बन चुके हैं। यह ठीक है कि मुसलमानों में गरीब और अशिक्षितों की संख्या का अनुपात ज्यादा है, लेकिन इसका मूल कारण यह है कि भारत की छोटी जातियों और गरीब वर्गों के लोग ही ज्यादा करके मुसलमान बने हैं। हिंदुओं के दलितों और पिछड़ों में भी मुसलमानों से ज्यादा पिछड़ापन, गरीबी और अशिक्षा है। असली प्रश्न यह है कि भारत के अल्पसंख्यकों को हर क्षेत्र में शिखर तक पहुंचने के अवसर हैं या नहीं? अवसर हैं, लेकिन आजकल वे असुरक्षित भी महसूस कर रहे हैं, यह भी सच्चाई है।

असुरक्षा का कारण न तो सरकार है और न ही व्यापक समाज है, बल्कि वे सिरफिरे लोग हैं, जो अपने आप को गोरक्षक कहते हैं, लेकिन वे खुद नरभक्षक हैं। गोरक्षा के नाम पर वे मुसलमानों पर हमला कर देते हैं। उनकी निंदा मोदी, भाजपा, कांग्रेस, समाजवादी कम्युनिस्ट, आरएसएस, सबने एक स्वर से की है। भारत के मुसलमानों को मैंने दुबई के अपने एक भाषण में ‘दुनिया के सर्वश्रेष्ठ मुसलमान’ कह दिया था, क्योंकि भारत के हजारों सालों के संस्कार उनकी रग-रग में दौड़ रहे होते हैं। कई अरब शेख मेरी बात सुनकर अचंभे में पड़ गए। जिन्हें मैं भारतीय संस्कार कहता हूं, उन्हें ही मोहन भागवत हिंदू संस्कार कहते हैं।

डा. वेदप्रताप वैदिक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है ये उनके निजी विचार हैं)

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