ईश्वर से बहसा-बहसी के बाद मेरी आंख खुली। देखा ईशानी और पार्थ पीपीई किट पहने मेरे सामने खड़े हैं। मेरे जीने की लपलपाती लौ सामने दिखी। डॉक्टरों से बात कर बच्चों को स्थिति की भयावहता का अंदाज हो गया था। मुझे लगा कि मुझे इनके सामने जीवट दिखाना है। वरना ये घबरा जाएंगें। इसे भांप मैंने हिम्मत दिखाई और उन्हें बताया कि कोई संकट नहीं है। मैं एक दो रोज में ठीक हो जाऊंगा। लेकिन तुम लोग अब दुबारा यहां न आना। डॉटरों ने वीणा से राय की कि या इन्हें और कहीं शिफ्ट तो नहीं करना है? वीणा ने दृढ़ता से कहा वे यहीं ठीक होंगे। मेरे कृत्रिम ऑसीजन का लेवल बढ़ाया गया। दवाइयां बदली गईं। मुझे तुसली जुमैब देने की तैयारी हुई। यह यूएस का इंजशन है, जो कोरोना में अब तक की अंतिम दवा है। दूसरी तरफ प्लाज़्मा देने की भी तैयारी शुरू हुई। यह भी सेवा और कर्तव्य का चरम देखिए कि मुझे प्लाज़्मा अस्पताल में ही कार्यरत एक डॉक्टर ने दिया। मुझे कोरोना एकाएक नहीं हुआ। इसके पीछे काम की लंबी जद्दोजहद रही। चार महीने तक पूरी हिफाजत के साथ काम करते हुए बचा रहा। पर कोरोना ने लखनऊ में पकड़ लिया। 28 जुलाई को लखनऊ से लौटा। तेज बुखार आया। बदन तोडऩे वाला दर्द। छाती में भारीपन। रस मलाई और रोटी दोनों का भूसे जैसा स्वाद। जितनी रोग से परेशानी नहीं थी, उससे ज्यादा रोग की अनिश्चितता को लेकर बेचैनी थी। डॉक्टर का कहना था कि थोड़ा ऑजर्व करें। शायद वायरल होगा। पर मुझे लग गया था कि ये कोविड ही है। तीन महीने से घर में सबसे अलग नीचे रह रहा था।
जीवन पर खतरा देख तय हुआ कि अस्पताल चलना चाहिए। अस्पताल में डरावना माहौल। कोविड का दैत्य विकराल रूप ग्रहण कर चुका है। जितना दिखता है, उससे कहीं ज्यादा सुनाई देता है। अमेरिका, इटली, ब्रिटेन, ब्राजील कोविड से शांत हो चुके शरीरों के अंबार। देश के भीतर हाहाकार। कोविड यानी सहस्रबाहु। अपनी हजारों भुजाओं से विनाश करता हुआ। अजीब संयोग है। मेरी देखरेख करने वाले डॉटर बेहद जानकार थे। इतना तो निश्चित है, बाकी सब कुछ अनिश्चित। क्या होगा कुछ पता नहीं? लेकिन डॉक्टर शुला की गारंटी थी कि परेशान न हों। तीन दिन में ठीक करूंगा। डा. शुला में कोरोना के खिलाफ गजब का आत्मविश्वास है। वे नियमित इटली, स्पेन और अमेरिका में कोरोना से लड़ते डॉक्टरों से ‘वेबिनारÓ के जरिए संपर्क में रहते हैं। इसलिए उन्हें नवीनतम जानकारी है, जो उनके भरोसे को बढ़ाती है। उनका बार बार मुझसे कहना था कि कोरोना उतना डरावना नहीं है, जितना हमने और मीडिया ने उसे बना दिया गया है। अगर आप समय रहते डॉक्टर के पास पंहुच गए तो जान तो नहीं जाएगी। हमने कोरोना से निपटने के लिए न तो औज़ार गढ़े हैं, न ही संस्कृति विकसित की है। लोग डर रहे हैं। रोग छुपा रहे हैं। अस्पताल जाने से भाग रहे हैं। मैं चैतन्य होकर डॉटर की बात सुन तो रहा था मगर ज्वर के मारे चीजें कम समझ आ रही थी। अस्पताल पहुंचते ही डॉक्टरों का कहना था कि कोरोना टेस्ट की रिपोर्ट जब आएगी तब आएगी, अभी कोरोना से होने वाले नुकसान की जांच करते हैं। उसकी दवा तो शुरू होगी। सो, चेस्ट का सीटी स्कैन हुआ।
उसमें कुछ बदलाव दिखा। रत की जांच में भी संक्रमण मौजूद था। तीन तरह की रत जांच होती है जो बिना कोविड टेस्ट के ही बता देती है कि आप में कोविड की संभावना है। उनके पैरामीटर बढ़ जाते हैं। मसलन डी डाईमर, फर्टटिना, सीएमपी। डाक्टर ने कहा अगर रिपोर्ट निगेटिव भी हो तो भी इलाज शुरू होगा क्योंकि आपको परेशानी तो है ही। शुला जी अब तक दो सौ से ज्यादा लोगों को देख चुके हैं। पीपीई किट के भी वे विरोधी हैं। वे पीपीई किट नहीं पहनते। उनका कहना है कि इससे कुछ नहीं होगा। केवल मुंह और नाक ढकिए। मेरा इलाज शुरू हुआ। मुझे सबसे पहले रत पतला करने का इंजेशन लगा। यह भी पता चला कि हमारे यहां बहुत गलत फहमियां भी हैं। यहां समझा जा रहा है कि कोविड के चलते आदमी निमोनिया और हार्ट फेल से मर रहा है। वजह यह कि मरने वाले का इस देश में पोस्टमॉर्टम नहीं हो रहा है। पश्चिम में डॉक्टर हर मौत का पोस्टमॉर्टम कर रहे हैं, जिससे पता चलता है कि मौते लड लॉटिंग से हो रही हैं। वह सभी धमनियों को चोक कर रहा है। और दम निकल जाता है। इसलिए अब यहां भी लड पतला करना शुरू किया गया ताकि खून जमने से मौत न हो। फिर वायरस के लिए ‘रेमिडिसिवर’ दी गई। यह ईबोला वायरस के लिए बनी दवा थी। पर कोरोना में कारगर है। अगर शुरुआती स्टेज में दे दी जाय तो बेहद प्रभावशाली होती है। रेमिडिसिवर दिल्ली में आठ से अस्सी हजार रुपये में बिकी। तीन डॉक्टरों की मौजूदगी में इंजशन दिया गया। हार्ट, लीवर, किडनी को मॉनिटर करते हुए। दवा के इफ्रेट उसी दिन दिखने लगे।
डॉक्टर ने बताया साइड इफेट तीन दिन बाद दिखेगा। कमज़ोरी। बेचैनी। मुंह और बेस्वाद होगा। जब इम्यूनिटी न हो तो दूसरे बैटीरिया भी सिर उठाते हैं जैसे चीन को देख कर नेपाल भी फुंफकारता है। तो इन पिद्दी वैटीरिया के लिए डॉक्टर ने ऑग्मेंटीन शुरू की ताकि सिर उठाने से पहले उसके सिर कुचले जाएं। कुछ बैटीरिया लातखोर होते हैं। वे ऑग्मेंटीन की पहुंच के बाहर होते है। डॉक्टर ने इतना सब एक साथ शुरू कर बुख़ार को तो अगले दिन से रोक दिया। डॉक्टरों का कहना था कि इसी एग्रेसिव तरीके से ही कोविड को रोका जा सकता है। ये सारी दवाइयां सब दे रहे हैं मगर फिर भी कुछ लोचा है। हो ये रहा है कि बारी बारी से जैसे जैसे मरीज की स्थिति खऱाब होती है, वैसे वैसे दवाइयां बढ़ा दी जाती हैं। इस तरह इंतज़ार करने से समय चला जाता है और गाड़ी छूट जाती है। इसलिए समय रहते सारी दवाइयां साथ साथ शुरू करना चाहिए। इस तरीक़े से सफलता भी मिल रही है। जीवन में पहली बार परिवार या दोस्तों के बिना इतने रोज रहा। मेरे लिए यह कोरोना से बड़ी बीमारी थी। मैं जीवन मे हद दर्जे का सामाजिक व्यति हूं। कोरोना ने मुझे पहले ही घर और दफ्तर के बीच समेटकर इस सामाजिकता पर करारी चोट कर दी थी।
रही सही कसर, अस्पताल में धकेलकर पूरी कर दी। अब मौत से लड़कर वापस लौटा हूं तो जेहन में अजीब तरह के अहसास जमा हो गए हैं। जिंदगी को हाथों से फिसलते देखने का अहसास कितना दर्दनाक होता है, इसका भी अनुभव कर लिया। अस्पताल से लौटने के बाद दो अनुभूतियां तीव्र हैं। हर व्यक्ति, स्पर्श, हवा, वस्तु के प्रति कृतज्ञता का ऐसा भाव उमड़ता है कि गला भर आता है। दूसरा जो जीवन 15, अगस्त 20 के बाद का है, वह अनेकानेक लोगों का दिया है। कृतज्ञता के इस भाव ने अहंकार के टनों वजन से मुत कर दिया है। हमें सबके प्रति कृतज्ञता का यह गीला भाव अपनी सीमाओं का अहसास करता है। अब जिंदगी के स्लॉग ओवर बचे हैं। कितने रन बनते हैं पता नहीं। पर खेलना तो होगा। जीवन का यह अनुभव का एक नई पहचान दे गया है। इन पहचानों के साथ तारतम्य बिठाने में अभी वत लगेगा। जितने गहरे से गुजरकर लौटा हूं, उससे उबरने के लिए भी समय चाहिए। वत तमाम घावों को भर देता है। मगर निशान बाकी रह जाते हैं। ये स्मृतियों के निशान हैं। इन निशानों को भुलाने में भी वत लगेगा। बस संतोष इसी बात का है कि इसी बहाने राम, कृष्ण और शिव से मुलाकात करके लौटा हूं। यह अविस्मरणीय है। उनका कहा अभी भी कानों में गू्ंज रहा है। यहीं मार्ग दिखाएगा। नए रास्ते का संवाहक बनेगा। नए हौसलों का वाहक बनेगा। नए संकल्पों का साधक बनेगा।
हेमंत शर्मा
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, कोरोना से ठीक होकर लौटे हैं)