गोवा देश के सबसे छोटे राज्यों में से है लेकिन उसने देश को एक बड़ा नेता दिया है। यों तो पर्रिकर देश भर में जाने गए केंद्रीय रक्षा मंत्री बनने के बाद लेकिन चार बार वे गोवा के मुख्यमंत्री बने अपने दम पर ! वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के निष्ठावान स्वयंसेवक थे। उनकी सादगी, उनकी ईमानदारी, उनकी अनौपचारिकता के कई किस्से गोवा में वैसे ही प्रसिद्ध हैं, जैसे 60-70 साल पहले कई गांधीवादी कांग्रेसी नेताओं के होते थे।
सबसे बड़ी बात तो यह है कि वे काजल की कोठरी में 30 साल से भी ज्यादा बैठे लेकिन बेदाग निकल गए। देश की कौन सी पार्टी में कितने नेता हैं, जिनकी तुलना आप पर्रिकर से कर सकें ? एक छोटे से व्यापारी के लड़के ने मुंबई से आईआईटी की डिग्री ली और गोवा आकर जूट के थैले बनाने शुरु किए। अपनी कार्यकुशलता, मेहनत और प्रामाणिकता के दम पर शीघ्र ही उन्होंने एक बड़ी फेक्टरी कायम कर ली।
गोवा के संघ-प्रमुख सुभाष वेलिंगकर के आशीर्वाद से उन्होंने राजनीति में पदार्पण किया और फिर कभी मुड़कर पीछे नहीं देखा। सुभाषजी से मतभेद भी हुआ लेकिन उनके सम्मान में पर्रिकर ने कभी कोई कमी नहीं रखी। सुभाषजी और पर्रिकर के विवाद के दौरान कई बार मेरी भी बात हुई लेकिन उनकी तर्कशक्ति और यथार्थवादिता से मैं प्रभावित हुआ।
पर्रिकर ने हिंदुत्व को वह उदारवादी आयाम दिया, जो भारत देश में किसी भी नेता की सफलता के लिए अनिवार्य है। उनके व्यापार में भागीदार एक मुसलमान सज्जन थे और गोवा के ईसाई संप्रदाय को पर्रिकर ने जिस चतुराई के साथ भाजपा से जोड़ा था, वह विचारणीय है। जाहिर है कि वे अपनी सत्यनिष्ठा, ईमानदारी और साफगोई के चलते रक्षा जैसे मंत्रालय में ज्यादा नहीं टिक सकते थे लेकिन मुख्यमंत्री के तौर पर खनन माफिया को उन्होंने ठिकाने लगा दिया। क्या ही अच्छा हो कि उनकी प्रभावशाली जीवनी शीघ्र प्रकाशित हो ताकि भारत के नौजवानों को प्रेरणा मिल सके। मेरी हार्दिक श्रद्धाजंलि !
डा. वेद प्रताप वैदिक