ऑटो सेक्टर मंदी की चपेट में है। यह परिस्थिति भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बेहद चिंताजनक है। इस सेक्टर से जिस तरह की रिपोर्ट हाल के दिनों में बाहर आई है, उससे अदाजा लगाया जा सकता है कि अर्थव्यवस्था किधर जा रही है। फेडरेशन ऑफइंडिया ऑटो मोबाइल डीलर एसोसिएशन ने बताया कि मंदी के कारण ऑटो सेक्टर में दो लाख लोग बेरोजगार हो गए है। सरकार की तरफ से यदि समय रहते प्रोत्साहन पैकेज नहीं दिया गया तो छंटनी का आंकड़ा आगे और बढ़ सकता है। सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटो मोबाइल मैन्युफैक्चरर्स के ऑटो कम्पोनेंट मैन्युफैक्चरर्स की भी रिपोर्ट में दस लाख लोगों की छंटनी का अंदेशा जताया गया है। तो स्पष्ट है तस्वीर भयावह है। इस सेक्टर की दुर्दशा का मतलब यह हुआ कि सीधे तौर पर देश की जीडीपी गिरेगी।
वैसै ही 5.8 फीसदी की दर पर देश की जीडीपी है।वजह यह कि ऑटो सेक्टर का देश की जीडीपी में 49 फीसदी योगदान है। इसका एक मतलब यह भी हुआ कि बड़ी तादाद में लोगों को इस क्षेत्र में काम मिलता है। देश में सबसे ज्यादा मोटर पार्ट्स और गाड़ियों की चेसिस का निर्माण चेन्नई में होता है। पर मंदी के कारण पार्ट्स और चेचिस बनाने वालों ने 35 फीसदी उत्पादन घटा दिया है। जाहिर है, गाड़ियों की मांग में कमी आई है। इस स्तिथि का सरकार को बखूबी पता है, शायद जीएसटी की दर 28 फीसदी से घटाकर 18 फीसदी कर दी जाए। लेकिन मौजूदा स्थिति में तकरीबन 35 करोड़ की गाडियां शोरुम में ग्रहाकों का इंतजार कर रही हैं। यह चिन्ताजनक तस्वीर है इस सेक्टर की।
पर्यावरण को ध्याम में रखते हुए सरकार डीजल और पेट्रोल की बजाय इलेक्ट्रिक कारों के निर्माण के लिए रास्ता बना रही है। सरकार का लक्ष्य है कि इको फ्रेंडली टेक्नालॉजी को बढ़ावा देकर पर्यावरण को साफ-सुथरा रखते हुए मानव जाति को प्रदूषण से बचाया जा सकता है। हालांकि कुछ बड़ी कंपनियों वे इस दिशा में कदम बढ़ा दिये हैं। लेकिन आधारभूत चुनौतियां बरकरार है। इसके अलावा इलेक्ट्रिक कारों को लेकर उसके दाम और मेंटनेंस को लेकर भी दुश्वारियां हैं। हाल यह है कि ढाई-चीन लाख की रेंज में कारें लोगों की पहुंच से बाहर हो गई हैं। सरकारी नौकरियां को एक तरफ रख दें तो निजी क्षेत्र और असंगठित क्षेत्र दोनों में मंदी के चलते एक अनिश्चितता का वातावरण बना है। दोतरफा चुनौतियां सामने हैं।
एकए बढ़ती महंगाई के हिसाब से तनख्वाह नहीं मिल रही है, दूसरा छंटनी की आशंका में वे लोग भी गाड़ियों की खरीदारी में रुचि नहीं दिखा पा रहे जो बड़ी पगार उठा रहे हैं। अर्थव्यवस्था में आयी अनिश्चितता से लोग रिस्क नहीं उठा रहे, वही निश्चित तौर पर एक बड़ा आम वर्ग है जो रीसेल की गाडियां खरीदकर अपने सपने को पंख देता रहा है, तो भी मन मसोज कर बैठा हुआ है। ऐसे परिदृश्य में मंहगी इलेक्ट्रिक कारें कितनों की पहुंच के ङीतर हो सकती है, इसका अदाजा लगया जा सकता है। वैसे इस सबके बीच आरबीआई गवर्नर मानते हैं कि विपरीत स्थितियां तो हैं लेकिन ऐसा भी नहीं है कि हताश और विराश हुआ जाए। अभी पिछले दिनो आरबीआई ने रेपो दर घटाई थी ताकि इद्यमियों को बैंको से कर्ज मिल सके। इसी तरह ईएमआई घट सके, इसके लिए ब्याज दर में कमी से बाजार में छायी सुस्ती कम की जा सकती है।