भौम प्रदोश व्रत

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भौम प्रदोष व्रत से मिलेगी ऋण से मुक्ति
भगवान शिवजी की आराधना से मिलती है सुख-समृद्धि, खुशहाली

भारतीय संस्कृति के सनातन धर्म में तैंतीस कोटि देवी-देवताओं में भगवान शिवजी ही देवाधिदेव महादेव की उपमा से अलंकृत हैं। भगवान शवजी की पूजा-अर्चना हर आस्थावान धर्मावलम्बी अपनी मनोकामना की पूर्ति एवं पुण्य अर्जित करने के लिए करते हैं। शिवजी की कृपा से जीवन में सुख-समृद्धि वैभव एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। जीवन में उन्नति के मार्ग का सुयोग बनता रहता है। भगवान शिवजी की विशेष कृपा प्राप्त करने के लिए शिवपुराण में विविध व्रतों का उल्लेख है, जिनमें प्रदोष व्रत प्रमुख है। प्रदोष व्रत मास के दोनों पक्षों की प्रदोष व्यापिनी त्रयोदशी तिथि के दिन रखा जाता है। सूर्यास्त की समाप्ति एंव रात्रि के प्रारम्भ में पड़ने वाली त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत किया जात है। प्रदोष व्रत के उपास्य देवता भगवान आशुतोष हैं। यह व्रत महिलाएं एवं पुरुष दोनों के लिए मान्य तथा सामनरुप से पुण्य फलदायी है। सायंकाल प्रदोषकाल में भगवान शिव की आशुतोष हैं। यह व्रत महिलाएं एवं पुरुष दोनों के लिए मान्य तथा समानरुप से पुण्य फलदायी है। सायंकाल प्रदोषकाल में भगवान शिव की विधि-विधान से जूपा-अर्चना करने का विधान है। प्रख्यात ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि इस बार यह प्रदोष व्रत 2 अप्रैल, मंगलवार को रखा जाएगा। चैत्र कृष्णपक्ष की त्रयोदशी तिथि 2 अप्रैल, मंगलवार को प्रातः 8 बजकर 39 मिनट पर लगेगी जो कि अगले दिन 3 अप्रैल, बुधवार को दिन में 10 बजकर 57 मिनट तक रहेगी। 2 अप्रैल मंगलवार को सायं वेला प्रदोषकाल में त्रयोदशी थिति का मान को रहेगा जिसके फलस्वरूप प्रदोष व्रत इसी दिन करनी चाहिए। प्रदोषकाल का लमय 2 घड़ी या 3 घड़ी का माना गया है। एक घड़ी का समय 24 मिनट का रहता है। सायंकाल सूर्य अस्त होने के पूर्व स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके प्रदोष बेला में भगवान शिवजी की पूजा-अर्चना आरम्भ करनी चाहिए।

हर दिन के व्रत का है अलग-अलग प्रभाव – ज्योतिषविद श्री विमल जैन जी ने बताया कि प्रत्येक दिन-वार के प्रदोष व्रत का अलग-अलग प्रभाव है। जैसे – रवि प्रदोष- आयु एवं आरोग्य लाभ, सोम प्रदोष-शान्ति एवं रक्षा, भौम प्रदोष-कर्ज से मुक्ति, बुध प्रदोष मनोकामना की पूर्ति, गुरु प्रदोष-विजय प्राप्ति, शुक्र प्रदोष-आरोग्य, सौभाग्य एवं मनोकामना की पूर्ति, शनि प्रदोष – पुत्र सुख की प्राप्ति। अभीष्ट की पूर्ति के लिए 11 प्रदोष व्रत या वर्ष के समस्त त्रयोदशी तिथियों का व्रत अथवा मनोकामना पूर्ति होने तक प्रदोष व्रत रखने का विधान है।

प्रदोष व्रत का विधान – ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि व्रतकर्ता को प्रातःकाल ब्रह्मामुहूर्त में उठकर समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त होकर स्नान-ध्यान, पूजा-अर्चना के पश्चात् अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, फल, गन्ध व कुश लेकर प्रदोष व्रत का संकल्प लेना चाहिए। दिनभर निराहार रहना चाहिए। सायंकाल पुनः स्नान करके प्रदोष काल में भगवान शिवजी की विधि-विधान पूर्वक पंचोपचार, दशोपचार अथवा षोडशोपचार पूजा-अर्चना करनी चाहिए। यथासम्भव स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूजा की जाती है। भगवान शिवजी की अभिषेक करके उन्हें वस्त्र, यज्ञोवीत, आभूषण, सुगन्धित द्रव्य के साथ बेलपत्र, कनेर, धतूरा, मदार, ऋतुपुष्प, नैवेद्य आदि अर्पित करके धूप-दीप के साथ पूजा-अर्चना करनी चाहिए। शिवजी की अनुकम्पा प्राप्त करने के लिए प्रदोष स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। शिवजी की महिमा में प्रदोष व्रत से सम्बन्धित कथाएं सुननी चाहिए। प्रदोष व्रत से शिवजी की अपार अनुकम्पा मिलती है, जिससे जीवन में सुख-समृद्धि तो मिलती ही है, साथ ही समस्त दोषों का शमन भी होता है। व्रत के दिन व्रतकर्ता को दिन में शयन नहीं करना चाहिअ, व्यर्थ के वार्तालाप व परनिन्दा से बचना चाहिए। श्रद्धा-भक्तिभाव के साथ किए गए प्रदोष व्रत से जीवन में सुख सौभाग्य बना रहता है तथा भोलेथान की कृपा से सारे काम बनते रहते हैं।

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