भारत : यह लोकतंत्र है या जुमलातंत्र?

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इस बात पर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है कि भारत में चुनावों की घोषणा हो चुकी है, उम्मीदवार तय हो रहे हैं और नेता लोग एक-दूसरे पर बम-वर्षा कर रहे हैं लेकिन अभी तक किसी भी पार्टी ने अपना घोषणा-पत्र जारी नहीं किया है। वे शायद इसका इंतजार कर रही हैं कि उनकी विरोधी पार्टी जारी करें, तब वे भी जारी कर देंगे। ताकि अपने घोषणा-पत्र में वे उनसे भी ज्यादा चूसनियां (लॉलीपॉप) लटका सकें या जुमले उछाल सकें। वोटरों को अपनी तरफ फिसला सकें।

फिलहाल देश की दोनों प्रमुख पार्टियों- भाजपा और कांग्रेस- के नेता जनता को अपने जाल में फंसाने के लिए तरह-तरह के फुग्गे उड़ा रहे हैं। यदि राहुल गांधी ने देश के 25 करोड़ गरीबों को छह—छह हजार रु. देने की हवाई घोषणा कर दी तो नरेंद्र मोदी ने अंतरिक्ष में घूम रहे एक निकम्मे उपग्रह को मार गिराने का श्रेय खुद लूटने की कोशिश की। एक नेता ‘चौकीदार चोर है’ का नारा लगा रहा है तो दूसरा उसे पाकिस्तान का एजेंट बता रहा है।

अंतरिक्ष में उपग्रहभेदी प्रक्षेपास्त्र छोड़ने को एक कांग्रेसी नेता ने अत्यंत ‘मूर्खतापूर्ण’ कार्य बताया है और प्रधानमंत्री पर वह यह आरोप लगा रहा है कि उन्होंने भारत की इस गोपनीय सामरिक क्षमता को जग-जाहिर कर दिया है। प्रांतीय नेता तो इससे भी आगे चले गए हैं। वे अपने प्रतिद्वंद्वियों पर ओछे और अश्लील वार भी कर रहे हैं। कोई भी नेता यह नहीं बता रहा है कि अगले पांच साल के लिए वह कैसा भारत बनाना चाहता है ? उसके दिमाग में भावी भारत का कोई वैकल्पिक नक्शा है या नहीं ?

भारत की गरीबी, बेकारी, भुखमरी, रुग्णता, अशिक्षा, असमानता, संकीर्णता आदि को मिटाने के क्या-क्या उपाय उसके पास हैं ? भारत को महाशक्ति और महासंपन्न बनाने का भी कोई सपना उसके पास है या नहीं ? चुनाव के कुछ दिन पहले प्रकाशित लंबे-चौड़े घोषणा-पत्रों को कौन पढ़ैगा ? वह मुंगेरी लाल के कच्चे चिट्ठे से ज्यादा कुछ नहीं होता है।

अभी तो देश के सभी दल और नेता एक-दूसरे की टांग खींचना ही अपना धर्म मान रहे हैं। यह भारतीय राजनीति के बौद्धिक दिवालिएपन का प्रतीक है। जनता बेचारी क्या करे ? वह मजबूर है। उसे भुलावे में फंसाकर वोट खींचने की कोशिश सभी नेता कर रहे हैं। दुनिया का यह सबसे बड़ा लोकतंत्र अब एक जुमलातंत्र बनता जा रहा है।

डॉ वेद प्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार है

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