कोरोना वायरस ने दुनिया में जैसा हडकंप मचाया है, वैसा मानव इतिहास में पहले कभी नहीं मचा। सवा सौ से ज्यादा देशों में यह फैल गया है। हजारों लोग मर रहे हैं और लाखों पीड़ित हो गए हैं। ऐसा क्यों हो रहा है ? क्योंकि दुनिया बहुत छोटी हो गई है। पूरी वसुधा कटुंब बन गई है। कुछ ही घंटों में आप दुनिया के एक कोने से दूसरे कोने में पहुंच जाते हैं। चीन में पैदा हुआ यह वायरस अब सारी मानवता को परेशान कर रहा है। भारत में भी एक वृद्ध व्यक्ति की मौत हुई। मौत की इस पहली घटना ने सारे देश में खतरे की घंटी बजा दी है। सरकार ने तो बहुत पहले से तगड़ा इंतजाम किया हुआ है लेकिन अब आम जनता के कान भी खड़े हो रहे हैं। स्कूल, कालेज, मेले, सभाएं, जुलूस आदि अपने आप स्थगित किए जा रहे हैं।
विदेशियों को भारत लगभग नहीं आने दिया जा रहा है। भारतीय लोगों ने भी यात्राएं आदि घटा दी हैं। आयुर्वेद, यूनानी और होम्योपेथी के डाक्टरों ने तरह-तरह के नुस्खे प्रचारित कर दिए हैं। ऐलोपेथी के डाॅक्टर भी कोरोना के मरीजों की उचित देखभाल कर रहे हैं। लोगों का मांसाहार बहुत घट गया है। मांसाहार के व्यंजन सस्ते हो गए हैं और शाकाहार के मंहगे। बाजारों में अजीब-सी ठंडक समा गई है। शेयरों के दाम गिर गए हैं। भारत में इस वायरस का प्रकोप ज्यादा नहीं होने का एक कारण यह भी है कि भारत मूल रुप से एक शाकाहारी देश है। जो देश अत्यंत स्वच्छ, स्वस्थ, समृद्ध और उन्नत माने जाते हैं, जैसे इटली, जर्मनी, अमेरिका वगैरह, वहां इस वायरस के फैलने का कारण क्या हो सकता है, इस पर आयुर्विज्ञानियों को शोध करना चाहिए।
भारत में तो मौसम भी अब गर्म होता जा रहा है। इसीलिए शायद हम बचे हुए हैं। भारत की ‘नमस्ते’ सारी दुनिया में प्रचलित हो रही है। यदि नरेंद्र मोदी दुनिया के कुछ प्रमुख नेताओं को हवन करवाने की प्रेरणा दे सकें और सभी भारतीयों को भी इसके लिए प्रेरित कर सकें तो सारे विश्व का वायुमंडल प्रदूषण रहित बन सकता है। कोरोना का रवैया भारत के प्रति अभी तक तो काफी करुणापूर्ण रहा है।
हो सकता है कि एलोपेथी की बड़ी-बड़ी प्रयोगशालाएं शीघ्र ही इस वायरस का तोड़ निकाल लेंगी वरना भारत सरकार और आम जनता अपने आयुर्वेदिक, यूनानी और होम्योपेथी के नुस्खों से अपने विदेशी मित्रों को क्यों नहीं परिचित करा देते ? यदि उनसे कुछ फायदा नहीं होगा तो नुकसान भी नहीं होगा।