गृहमंत्री अमित शाह ने घोषणा की है कि सारे भारत की एक राष्ट्रीय नागरिकता सूची तैयार की जाएगी लेकिन इसमें और जो नागरिकता संशोधन बिल पिछली लोकसभा में लाया गया था, उसमें काफी अंतर होगा। उस बिल में अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से यदि कोई मुसलमान भारत आकर शरण मांगे तो उसे नागरिकता नहीं दी जाएगी।
इन पड़ौसी देशों के हिंदू, सिख, ईसाई, पारसी यहूदी आदि अल्पसंख्यकों को ही नागरिकता दी जाएगी ? इसका आधार यह है कि इन गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों के साथ ये मुस्लिम राष्ट्र दुर्व्यव्यहार करते हैं। इसीलिए वे भागकर भारत आते हैं। यह उदारता तो सराहनीय ही है लेकिन हमारे गृहमंत्री, प्रधानमंत्री और सांसदों को यह जानकारी भी होनी चाहिए कि इन मुस्लिम राष्ट्रों में कई मुसलमान तबके ऐसे हैं, जो काफी परेशानी महसूस करते हैं। जैसे बर्मा के रोहिंग्या मुसलमान, अफगानिस्तान के कुछ हजारा और मू-ए- सुर्ख लोग, पाकिस्तान के कुछ सिंधी, बलूच, पठान और कादियानी तथा बांग्लादेश के तसलीमा नसरीन-जैसे लोग !
ये भारत आना चाहें तो उन्हें आप क्यों रोकना चाहते हैं ? इसके अलावा जब इन राष्ट्रों के सिर्फ अल्पसंख्यकों के लिए आप अपने दरवाजे खोल रहे हैं तो आप दुनिया को यह आधिकारिक संदेश दे रहे हैं कि ये देश अत्याचारी हैं। विदेश नीति के हिसाब से यह आत्मघाती संदेश है। बदले में ये पड़ौसी देश भी हमारे मुसलमानों, सिखों, नगा और मिजो लोगों के लिए इसी तरह का कानून बना सकते हैं और भारत को बदनाम कर सकते हैं।
इसीलिए बेहतर होगा कि नागरिकता कानून में हम मजहब, जाति, भाषा, संप्रदाय आदि का उल्लेख हटा दें। किसी को भी नागरिकता देते समय बस सावधानी बरती जाए। जहां तक राष्ट्रीय नागरिकता सूची बनाने में मज़हब आड़े नहीं आएगा, यह बहुत अच्छी बात है लेकिन जरा हम देखें कि असम-जैसे छोटे-से प्रांत में यह सूची तैयार करते वक्त कितना घपला हुआ है।
साढ़े तीन करोड़ की आबादी वाले असम में 19 लाख लोग इस सूची के बाहर कर दिए गए, जिनमें 11 लाख हिंदू बंगाली हैं। इस काम में 1200 करोड़ रु. और पांच साल लगे। पूरे भारत में पता नहीं कितने साल और कितने अरब रु. लगेंगे ?
इस घोषणा के पीछे सरकार की मंशा तो सही मालूम पड़ती है कि भारत को पड़ौसी राष्ट्रों का शरण-अड्डा नहीं बनने देना है लेकिन इस नेक इरादे को सांप्रदायिक रुप मिल जाना अच्छा नहीं है। बेहतर तो यह होगा कि विदेशी घुसपैठियों की पहचान और पकड़ के तंत्र को इतना मजबूत बनाया जाए कि जो भी उसे धोखा देना चाहे, उसकी रुह कांप-कांप जाए।
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं