भाजपा के पास 2024 के लिए क्या बचा?

0
201

भारतीय जनता पार्टी ने क्या अपना ब्रह्मास्त्र चल दिया है? अगर ऐसा है तो फिर 2024 के लिए उसके पास क्या बचेगा? यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि भाजपा ने अपने जन्मकाल से और उससे पहले भारतीय जनसंघ ने तीन मुद्दे देश के हिंदुओं के मन मस्तिष्क में बैठाए थे, नरेंद्र मोदी की सरकार उनको एक एक कर हल कर रही है। तीन तलाक को खत्म करने के साथ ही सरकार ने समान नागरिक संहिता की दिशा में एक ठोस कदम बढ़ा दिया है। उसके बाद कश्मीर की सबसे बड़ी ग्रंथि को दूर कर दिया है। उधर सुप्रीम कोर्ट में राममंदिर-बाबरी मस्जिद की विवादित जमीन को लेकर निर्णायक सुनवाई शुरू हो गई है और माना जा रहा है कि इस साल के अंत तक यह मसला भी सुलझ जाएगा।

ये तीन ब्रह्मास्त्र, जिन्हें कंधे पर लटका कर भाजपा के नेता अब तक राजनीति कर रहे थे उन्हें या तो चला दिया गया है या निकट भविष्य में चलाया जाना है। जब ये तीनों ब्रह्मास्त्र चल जाएंगे फिर भाजपा के पास क्या बचेगा? इस साल के अंत तक अगर ये सारे मसले हल हो जाएंगे तो भाजपा आगे क्या करेगी? क्या नए मुद्दे तैयार किए जाएंगे? पर इतनी जल्दी नए मुद्दे तैयार करना संभव नहीं है। समान नागरिक संहिता, अनुच्छेद 370 और राम मंदिर के मुद्दों का ब्रह्मास्त्र बनना जनसंघ और भाजपा के नेताओं की दशकों की मेहनत का प्रतिफल था।

सवाल है कि अगर देश के हिंदू मानस को उद्वेलित किए रखने वाले ये तीनों मुद्दे सुलझ जाएंगे तब देश के राजनीतिक विमर्श के केंद्र में कौन से मुद्दे होंगे? जाहिर है तब ठोस और व्यावहारिक मुद्दे विमर्श के केंद्र में होंगे। देश की आर्थिक बदहाली का मुद्दा लोगों के जेहन में होगा और रोजगार के संकट का नैरेटिव बनेगा। ये सारी चीजें आज भी देश के सामने हैं। देश अभूतपूर्व आर्थिक संकट के भंवर में फंसता दिख रहा है। बुधवार को ही भारतीय रिजर्व बैंक ने नीतिगत ब्याज दरों में 0.35 फीसदी की कमी की है और बैंकों से कहा है कि वे इसका लाभ लोगों तक पहुंचाएं। पर इसके साथ ही केंद्रीय बैंक ने सकल घरेलू उत्पाद की विकास दर का अनुमान भी कम कर दिया है। बैंक ने माना है कि अब चालू वित्त वर्ष की विकास दर सात फीसदी नहीं रहनी है। उसने अब 6.9 फीसदी विकास दर का अनुमान जाहिर किया है। इसमें आगे और भी कमी होने की संभावना है।

इस आर्थिक स्थिति का अंदाजा नरेंद्र मोदी और अमित शाह को भी होगा। उनको यह भी पता होगा कि 2022 में दुनिया में आर्थिक मंदी का अंदाजा लगाया जा रहा है। वैसी मंदी जैसी 2008 में थी। इसका मतलब होगा कि देश की आर्थिक दशा अभी से भी और खराब हो सकती है। ऐसे में क्या बिना किसी भावनात्मक मुद्दे के मोदी और शाह चुनावी वैतरणी पार कर पाएंगे? या वे इस भरोसे में हैं कि दुनिया में भले आर्थिक मंदी आए पर भारत में वे विकास की गंगा बहा देंगे?

जिस तरह से पिछले कुछ समय से आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया ठहरी है उससे लगता नहीं है कि अगले दो-तीन साल में कोई ऐसा चमत्कार होना है कि आर्थिकी जेट की रफ्तार से भागने लगे और रोजगार का संकट खत्म हो जाए। इसलिए उम्मीद करनी चाहिए कि भारतीय जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी में मोदी-शाह के पूर्वजों, अग्रजों ने जो ब्रह्मास्त्र तैयार किए थे ये दोनों उससे भी मारक अस्त्र तैयार कर देंगे। उससे भी बड़ा भावनात्मक उद्वेलन पैदा कर देंगे। संभव है कि पाक अधिकृत कश्मीर पर कब्जे का प्रयास हो, जिसके बारे में सुब्रह्मण्यम स्वामी का कहना है कि भारत के लिए दो हफ्ते का काम है। सोचें, अगर ऐसा हो गया तो क्या होगा? बहरहाल, अभी इंतजार करने और देखने का समय है कि मोदी और शाह 2024 के लिए अपने तरकश से कौन सा अस्त्र निकालते हैं! अयोध्या की झांकी के बाद मथुरा और काशी हो सकता है। कश्मीर की झांकी के बाद पाक अधिकृत कश्मीर हो सकता है और तीन तलाक के बाद निकाह हलाला और जनसंख्या नियंत्रण हो सकता है। या कुछ इससे भी बड़ा हो सकता है?

अजित द्विवेदी
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here