बौखलाया पाकिस्तान

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जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म होने से पाकिस्तान बौखलाया हुआ है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर उसकी आपत्ति दरकिनार होने से घरेलू स्तर पर स्थिति असहज हो गई है। यह उसकी बौखलाहट का ही नतीजा है कि गुरू वार को पाकिस्तान ने सुरक्षा का हवाला देते हुए समझौता एक्सप्रेस के लिए अपना ड्राइवर और गार्ड भेजने से इनकार कर दिया। ऐसा इसलिए भी कि अकेले वह समझौता एक्सप्रेस को लेकर भारत के साथ हुए करार को एक तरफा नहीं तोड़ सकता। बुधवार को उसकी तरफ से इस्लामाबाद में भारत के उच्चायुक्त अजय बिसारिया को वापस जाने को कह दिया गया। द्विपक्षीय कारोबार को रोक दिया गया। वैसे पुलवामा हमले के बाद से भारत ने पाकिस्तान से व्यापारिक रिश्ते औपचारिक तौर पर ही रखे हुए थे। साझा व्यापार की भारत से पाक को निर्यात 80 फीसदी और आयात 20 फीसदी ही है।

तो समझा जा सकता है कि उसकी यह कवायद एक तरह से हताशा ही है। अपने यहां उसने नौ स्थाई रूट में से तीन एयररूट को अस्थाई रूप से भारत के लिए बंद कर दिया है। इमरान सरकार की दिक्कत यह है कि जम्मू-कश्मीर को लेकर पाकिस्तान में दशकों से घरेलू सियासत होती रही है। एक ही झटके में भारत ने पूरी तस्वीर ही बदल दी। विशेष दर्जा खत्म होने के साथ ही शिमला समझौता से लेकर लाहौर समझौता तक इतिहास की विषय वस्तु हो गया है। एक तरह से विवाद के नाम पर प्रायोजित आतंकवाद और उसकी ओट में पैसे बनाने वाली सारी वजहों को मोदी सरकार ने संसद के जरिये नेस्तनाबूद कर दिया है। पाकिस्तान को इसकी उम्मीद ना थी। उसकी पूरी कोशिश कश्मीर मसले पर अमेरिका के जरिये भारत पर अन्तर्राष्ट्रीय दबाव बनाने की थी लेकिन सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया।

अब आर्थिक तौर पर खस्ताहाल पाकिस्तान के लिए भारत को घेरने की कोई वाजिब वजह नहीं रह गई है। यह अलग बात कि 14 अगस्त को अपनी आजादी की वर्षगांठ पर पाकिस्तान कश्मीरियों के नाम पर एक जुटता का संदेश देकर और 15 अगस्त को ब्लैक डे मनाएगा। लेकिन इससे आगे की राह मुश्किल है, यह उसे पता है। जम्मू-कश्मीर को यूनियन टेरिटेरी बनाए जाने के बाद भारत के लिए सुरक्षा पहले से कहीं ज्यादा चाक-चौबंद करने में आसानी रहेगी। इसके अलावा विकास के लिए भेजे जा रहे पैसे का आम कश्मीरियों के हक में इस्तेमाल हो पाएगा। सरकार आपरेशन कश्मीर के बाद स्थिति को सामान्य करने की दिशा में कदम उठा रही है। अलगाववादियों पर इसीलिए कड़ी नजर है। राज्य की मुख्यधारा की पार्टियां और उनके नेताओं को भी बदली परिस्थितियों से तालमेल बिठाकर चलने का संकेत दे दिया गया है।

हालांकि देश के भीतर कुछ दल अब भी विशेष दर्जा खत्म किए जाने के तरीके पर सवाल उठा रहे हैं लेकिन दूसरा तरीका क्या हो सकता है। यह नहीं बता पा रहे हैं। जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों की तैनाती और कर्फ्यू पर सियासत अब भी जारी है। जो सियासी और सामाजिक हालात हैं उसे बदलने में वक्त लगेगा लेकिन अब सच यही है कि जम्मू-कश्मीर की नई पहचान ही वास्तविकता है। पाकिस्तान की आशंका यह है कि आने वाले वर्षों में जम्मू-कश्मीर के विकास को लेकर गुलाम कश्मीर के लोग भी भारत की तरफ देख सकते हैं। भारत का तो दावा पहले से है ही। इसके अलावा पाकिस्तान के भीतर बलोच पठान और सिंध के लोग भेदभाव के खिलाफ अरसे से आंदोलित हैं उनको भारत में अपने लिए उम्मीद नजर आ सकती है। आर्थिक बदहाली के दौर में पाकिस्तान के लिए चुनौतियां चौतरफा हैं।

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