बुरा गया, अब अच्छे की उम्मीद

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अमंगलकारी-2020 का काला साया हमारे जीवन से हट गया है- बधाई हो। प्रभु से प्रार्थना है कि 2021 लेशमात्र भी 2020 के किसी भी संक्रमण से संक्रमित, प्रभावित न हो। 2020 ने ये हालत कर दी है कि लोग नये साल के आगमन से ज्यादा पुराने साल के चले जाने की खुशी मनाने की तैयारी में जुटे हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि नये साल में दुनिया भर को आतंकित करने वाला आतंकी कोरोना भी या तो खुद दम तोड़ देगा या फिर हम उसे मार गिराने में कामयाब हो जाएंगे। वैसे इन दोनों में से कोई भी काम जल्दी होता हुआ लग नहीं रहा है। नाश जाय कोरोना का जिसके डर से धर्मस्थल तक बंद हो गए और भक्तों को उनके हाल पर छोड़ दिया। मजे की बात यह रही कि भक्त और भगवान् कोरोना के डर से दुबक गये लेकिन नेता हजारों की भीड़ के बीच भाषण देते रहे, यहां-वहां चुनाव भी होते रहे। कोरोना प्रुफ नेताओं के निर्देश-आदेश पर बिना मास्क लगाये लोगों के घर के दरवाजे पर भी चालान होते रहे। 2020 के जीवन में कोरोना की एंट्री हुई तो ‘राजा’ ने ताली-थाली पिटवाने और बेमौसम दीवाली मनाने का टोटका देश की जनता से करवाया ताकि कोरोना डर कर भाग जाए- लेकिन ऐसा हो नहीं सका। इसके विपरीत कोरोना हर घर के दरवाजे पर दस्तक देता घूमने लगा। लोगों की नौकरियां खा गया कोरोना मगर प्राइवेट अस्पतालों को रास आ गया कोरोना।

कोरोना ने लाखों मजदूरों के हाथ का काम छीन लिया। कोलतार की तपती सड़कों पर टूटी चप्पल पहने या नंगे पांव, बच्चों को कंधों पर और सामान की गठरी को सिरों पर लादे सैकड़ों मील चले मजदूरों में से बहुत से घर पहुंचने से पहले ही रास्ते में दम तोड़ गये। अपनों के सपने तोड़ गये। कमीने कोरोना ने अकाल मृत्यु का शिकार बने अपने सगों को मुखाग्नि देने का अधिकार भी लोगों से छीन लिया। लोग एक- दूसरे के दु:ख-शोक में शामिल होने से कतराने लगे। बीवी बच्चे बाहर जाने वाले को घर में रोककर बिठाने लगे। पहले से पीडि़त बड़े-बुजुर्गों के और बुरे दिन आने लगे। कमाई घटने, आय के स्रोत सूखने से घर चलाने वाले ज्यादा ही गुस्सा खाने लगे। बच्चों का बचपन कमरों में कैद हो गया। साल 2020 वैश्विक रूप से बहुत ही बुरा साबित हुआ है। कोरोना महामारी के कारण पूरी दुनिया में जहां लाखों लोगों की जान चली गई, वहीं विश्वभर की अर्थव्यवस्था भी चौपट हो गई। बेरोजगारी अपने आप में महामारी बन गई। बहुत बुरा 2020 कुछ सीख भी देकर गया है जैसे कि कम से कम चीजों में कैसे जीवन गुजारा जा सकता है। सीमित संसाधन तथा प्रतिबंधित दायरे में कैसे खुश रहा जा सकता है। बहुत बुरे 2020 ने लोगों को परिवार का महत्व भी समझाया है।

कोरोना के चलते लंबे समय तक घर में समय बिताने के कारण उन लोगों को परिवार की भावनाओं और जरूरतों को समझने का अवसर मिला जो पैसा कमाने और भागदौड़ भरी जिन्दगी में घर-परिवार के लिए वक्त ही नहीं निकाल पाते थे।लोगों की जिन्दगी से खिलवाड़ करने वाले कोरोना संक्रमित साल 2020 में यह अच्छा संदेश तो अवश्य ही दिया कि खुद को स्वस्थ रखने के लिए किस तरह की चीजों का सेवन करना चाहिए। काढ़े का नाम सुनकर ही नाक-भौं सिकोडऩे वालों ने भी खूब काढ़ा पीया, पी रहे हैं। जिन्हें व्यायाम करना नहीं आता था, वे भी न केवल व्यायाम करने लगे अपितु दूसरों को भी व्यायाम के फायदे गिनाने लगे। तमाम लोगों ने कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करते हुए एक-दूसरे से दो गज की दूरी भी रखी और मास्क भी लगाया। परंतु सरकारी रैलियों, चुनावी सभाओं में एक दूसरे पर चढ़ी भीड़ को देखकर बहुत बड़ी आबादी के मन से कोरोना का डर भाग गया और उन्होंने भी दूरी रखना तथा मास्क लगाना छोड़ दिया।

कोरोना का राजनीति पर कोई फर्क नहीं पड़ा। कुछ बड़े तो कुछ छोटे चुनाव भी हुए। कुछ छोटे जलसे तो कुछ बड़ी रैलियां भी हुईं। वोट भी डाले गये। हार-जीत भी हुई। यह सब देखकर कोरोना अचम्भित रह गया। सरकार ने आपदा में अवसर देखा और दबंगई से कुछ बिल पास कर लिये। आपदा में अवसर का लाभ उठाकर तमाम पूंजीपति तिजोरियां भरने में सफल रहे। जो विफल रहे वो कोरोना को कोस रहे हैं। जिनके व्यापार ठप हुए वो अपने बाल नोंच रहे हैं। मध्य वर्ग का बड़ा हिस्सा गरीब हो गया है और गरीबों की बड़ी आबादी गरीबी रेखा से नीचे चली गई है। ईश्वर करे 2021 में 2020 का कोई दुर्गुण न हो, लोग और हताश-निराश न हों। लेकिन सावधान साल के साथ कोरोना ने भी रूप बदला है। सभी को बुरा साल जाने की बधाई।

राकेश शर्मा
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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